कर्नाटक में हिजाब, हलाल, अजान के बाद अब कैब चालकों का मुद्दा

भारत रक्षा वैदिक के अध्यक्ष भरत शेट्टी के अनुसार, “जब हम मंदिरों या पूजा स्थलों पर जाते हैं तो हम मांस नहीं खाते हैं। किसी ऐसे व्यक्ति को अपने साथ ले जाना जो हमारे देवताओं में विश्वास नहीं करता है या हमें अपने स्वयं के भोजन विकल्पों के साथ अशुद्ध करता है, हमारी संस्कृति और धर्म के लिए अपमानजनक माना जाएगा। वे हमें काफिर (गैर-आस्तिक) मानते हैं और हमारा धर्म हमारे लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उनका धर्म उनके लिए है।’

भारत रक्षा वैदिक समूह के सदस्यों ने कर्नाटक के बेंगलुरु सहित कई क्षेत्रों की यात्रा की, लोगों से मुस्लिम कैब ड्राइवरों की सेवाएं नहीं लेने का आग्रह किया, खासकर हिंदू मंदिरों या तीर्थों में जाने के लिए।

हिजाब विवाद के बाद कर्नाटक में इस तरह की खबरें आम हो गई हैं। कभी ‘हलाल मीट’ को लेकर विवाद होता है तो कभी मंदिर परिसर में गैर हिंदुओं को व्यापार के लिए प्रतिबंधित करने पर विवाद होता है।

भरत शेट्टी के मुताबिक, कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के दौरान आर्थिक चुनौतियों के चलते कई हिंदुओं को अपनी कैब बेचनी पड़ी। बहुसंख्यक समुदाय का यह कर्तव्य था कि वे पहले अपने लोगों की देखभाल करें। कर्नाटक की 70 मिलियन की आबादी का लगभग 13% मुसलमान हैं।

कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने हिजाब विवाद के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि जब हिजाब विवाद शुरू हुआ तो एक स्कूल में 96 मुस्लिम छात्र थे जो हमेशा से स्कूल ड्रेस पहनते थे।

उनमें से केवल छह ने प्रदर्शन में भाग लिया और पोशाक के बजाय हिजाब पहनने पर जोर दिया, यह कहते हुए कि वे शिक्षा छोड़ देंगे लेकिन कांग्रेस ने उस दिन समझाया होता तो विवाद इतना नहीं बढ़ता।

केएस ईश्वरप्पा ने आगे कहा कि हिंदू और मुसलमान एक साथ रहना चाहते हैं लेकिन कांग्रेस नहीं चाहती कि दोनों समुदाय एक साथ रहें। ये सब हिजाब, हलाल आदि कांग्रेस के काम हैं।

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