– कम और अधिक उम्र में गर्भधारण और एनीमिया है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की बड़ी वजह- सुरक्षित और सामान्य प्रसव के लिए पौष्टिक और आयरन युक्त खान-पान का सेवन गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी
खगड़िया-
सुरक्षित और सामान्य प्रसव हर गर्भवती महिला की पहली चाहत होती है। किन्तु, यह आसान नहीं, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान थोड़ी सी लापरवाही बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है। इसलिए, हर गर्भवती महिला को स्वास्थ्य के प्रति विशेष सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है।
वैसे तो गर्भावस्था के दौरान गर्भवती को तरह-तरह की शारीरिक परेशानी से गुजरना पड़ता है। किन्तु, इसमें एक परेशानी हाई रिस्क प्रेग्नेंसी (उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था) भी है। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से पीड़ित होने के कई कारण हैं । किन्तु, कम और अधिक उम्र में गर्भधारण होना और एनीमिया इसकी बड़ी वजह है। इससे बचाव के लिए समय पर आवश्यक प्रसव पूर्व जाँच और सतर्कता बेहद जरूरी है।
दरअसल, प्रसव पूर्व जाँच हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की पहचान में काफी सहायक होती और शुरुआती दौर में हीं परेशानी का पता चल जाता है। समय पर पता चलने से इस परेशानी से आवश्यक उपचार की बदौलत बचाव किया जा सकता है।
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए गर्भावस्था के दौरान प्रसव जाँच और सतर्कता बेहद जरूरी : सिविल सर्जन डाॅ अमरनाथ झा ने बताया, हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान प्रसव पूर्व जाँच और सतर्क रहना बेहद जरूरी है। इसलिए, हर गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार बार प्रसव पूर्व जाँच जरूर करानी चाहिए।
इसके अलावा किसी प्रकार की कोई शारीरिक परेशानी होने पर भी तुरंत योग्य चिकित्सकों से जाँच करानी चाहिए और जाँच के पश्चात चिकित्सा परामर्श का पालन करना चाहिए। दरअसल, शुरुआती दौर में परेशानी का पता लगने पर समय रहते आवश्यक पहल से परेशानी को दूर किया जा सकता है।
वहीं, उन्होंने बताया, हर माह नौ तारीख को जिले के सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में शिविर आयोजित कर प्रसव पूर्व जाँच की जाती है।
कम और अधिक उम्र में भी गर्भधारण से होती है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की समस्या : वैसे तो हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की समस्या किसी भी गर्भवती महिला को हो सकती है। किन्तु, कम यानी 19 वर्ष आयु के पूर्व और अधिक यानी 35 वर्ष से अधिक आयु वर्ग की गर्भवती महिलाओं में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की समस्या होने की प्रबल संभावना रहती है।
इसलिए, ऐसी महिलाओं को निश्चित रूप से गर्भधारण के पूर्व और गर्भावस्था के दौरान लगातार नियमित तौर पर स्वास्थ्य जाँच कराते रहना चाहिए। साथ ही इससे बचाव के लिए चिकित्सा परामर्श का पालन, खान-पान का विशेष ख्याल, गर्भावस्था के दौरान बरती जाने वाली सतर्कता समेत अन्य बातों का ध्यान रखना चाहिए।
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के लगातार बुखार रहना, सिर दर्द होना, आराम करते समय भी साँस फूलना, पेट में दर्द होना,त्वचा पर लाल चकते होना, वजन बढ़ना, सूजन होना,आदि मुख्य लक्षण हैं ।
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए पौष्टिक और आयरन युक्त खान-पान का सेवन करें गर्भवती महिलाएं :हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए गर्भवती महिलाओं को खान-पान, साफ-सफाई समेत अन्य जरूरी सावधानी को लेकर सतर्क रहना चाहिए। पौष्टिक और आयरन युक्त खाना का सेवन हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से बचाव के लिए काफी कारगर है। इसलिए, खासकर गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक और आयरन युक्त आहार का सेवन करना चाहिए।