सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों के बाद एक घंटे के अंदर कराएँ नवजात को स्तनपान 

 – जन्म के शुरुआती 2 घंटों तक शिशु होते हैं अधिक सक्रिय, जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान जरूरी 

 – सिर्फ स्तनपान से एक साल में 8 लाख से अधिक शिशुओं की जान जाने से बचाव संभव  

मुंगेर- 

मां के गर्भ में 9 महीने रहने के बाद शिशु का माता के साथ गहरा जुड़ाव कायम हो जाता है।  इसलिए जन्म के तुरंत बाद शिशु को प्राकृतिक रूप से स्तनपान का वरदान प्राप्त होता है। जन्म के शुरुआती 2 घंटों तक शिशु अधिक सक्रिय रहते हैं इसलिए शुरुआती 1 घंटे के भीतर ही स्तनपान शुरू कराने की सलाह दी जाती । इससे शिशु सक्रिय रूप से स्तनपान करने में सक्षम होते हैं । इसके साथ ही छह माह तक केवल स्तनपान ही शिशु के सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी होता है। 

सिजेरियन प्रसव में भी 1 घंटे के अंदर स्तनपान कराना है आवश्यक-  जिला के अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. आनंद शंकर शरण सिंह ने बताया कि जन्म के शुरुआती 1 घंटे के भीतर शिशुओं के लिए स्तनपान अमृत समान होता है। यह अवधि दो मायनों में अधिक महत्वपूर्ण है। पहला यह कि शुरुआती 2 घंटे तक शिशु सर्वाधिक सक्रिय अवस्था में होता है। इस दौरान स्तनपान की शुरुआत कराने से शिशु आसानी से स्तनपान कर पाता है। सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों ही स्थितियों में एक घंटे के भीतर ही स्तनपान कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु के रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। इसकी वजह से बच्चे का निमोनिया एवं डायरिया जैसे गंभीर रोगों में भी बचाव होता है। 

भ्रांतियों से रहें दूर : उन्होंने बताया कि माताओं के शरीर में शुरुआती समय में गाढ़ा एवं पीला दूध बनता है, जिसे कोलोस्ट्रम  कहा जाता है। इसके सेवन करने से शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। लेकिन अभी भी लोगों में इसे लेकर भ्रांतियां है। कुछ लोग इसे गंदा या बेकार दूध समझकर शिशु को नहीं देने की सलाह देते हैं। दूसरी तरफ़ शुरुआती समय में कम दूध बनने के कारण कुछ लोग यह भी मान लेते हैं कि मां का दूध नहीं बन रहा है। यह मानकर बच्चे को बाहर का दूध पिलाना शुरू कर देते हैं। जबकि यह केवल सामाजिक भ्रांति है।

बच्चे के लिए यही गाढ़ा पीला दूध जरूरी होता एवं मां का शुरुआती समय में कम दूध बनना भी एक प्राकृतिक प्रक्रिया ही है। उन्होंने बताया कि लेसेंट 2008 की रिपोर्ट के अनुसार 6 माह तक केवल स्तनपान नहीं करने वाले बच्चों में 6 माह तक केवल स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में पहले 6 महीने में 14 गुना अधिक मृत्यु की सम्भावना होती है। वहीं संक्रमण से होने वाले 88 प्रतिशत बाल मृत्यु दर में स्तनपान से बचाव होता है । इसके साथ ही सम्पूर्ण स्तनपान से शिशुओं में 54 प्रतिशत डायरिया के मामलों में भी कमी आती है।छह महीने तक सिर्फ और सिर्फ स्तनपान से शिशुओं में 32 प्रतिशत श्वसन संक्रमण के मामलों में कमी आती है और  शिशुओं में डायरिया के कारण अस्पताल में भर्ती होने के 72 प्रतिशत मामलों में भी स्तनपान बचाव करता है। इसके साथ ही शिशुओं में श्वसन संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होने के 57 प्रतिशत मामलों में स्तनपान बचाव करता है।

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