कोरोना  टीकाकरण से अधिक चुनौतीपूर्ण  गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए नियमित टीकाकरण 

  – नियमित टीकाकरण के लिए गुजरनी पड़ती है एक लंबी प्रक्रिया से- कोरोना टीकाकरण का लक्ष्य विशेष अभियान चलाकर भी किया जा सकता पूरा 

मुंगेर, 20 अगस्त- पिछले दो साल से राज्य भर में कोरोना संक्रमण का दौर चल रहा है। इससे बचाव के लिए लोग मास्क और हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने के साथ – साथ सोशल डिस्टेंसिंग का  पालन और नियमित साफ – सफाई पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। अब सबसे अच्छी बात यह है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए कोरोना का टीका भी आ गया है। जो लाभार्थी  18 वर्ष से अधिक के हैं व कोरोना टीका की  तीनों डोज और वैसे लाभार्थी जो 12- 17 वर्ष के हैं व वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके हैं, वे काफी हद तक सुरक्षित हैं। यदि वो कोरोना संक्रमित हो भी गए तो वे आसानी से इससे उबर जाएंगे। इसके साथ ही उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की नौबत भी कम ही आएगी। इससे अलग नियमित टीकाकरण ज्यादा महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है। नियमित टीकाकरण से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है जिससे कई प्रकार कि बीमारियों से उसका बचाव होता  । तुलनात्मक तौर पर यदि देखा जाय तो नियमित और कोरोना टीकाकरण में बहुत अंतर है।अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी (एसीएमओ) डॉ. आनंद शंकर शरण सिंह ने बताया कि कोरोना टीकाकरण का लक्ष्य विशेष अभियान चलाकर पूरा किया जा सकता है लेकिन नियमित टीकाकरण के लिए एक लंबी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता । इस नियमित प्रक्रिया का पालन करने के लिए बच्चे के परिजन से लेकर स्वास्थ्यकर्मियों तक को काफी सजग रहना होता है। तब जाकर यह प्रक्रिया पूरी होती है। यह प्रकिया महिला के गर्भधारण करने के साथ ही शुरू हो जाती है। बच्चे के बेहतर स्वस्थ्य को लेकर जैसे ही माता के गर्भधारण का पता चलता है इसके तुरंत बाद माता का टीकाकरण शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि जैसे ही पता चलता है कि महिला गर्भवती है तो उसे टीडी टीका की पहली खुराक दी जाती है। इसके एक महीने के बाद टीडी टीका की दूसरी खुराक दी जानी चाहिए। अगर महिला टीडी प्रथम और द्वितीय खुराक लेने के तीन साल के अंदर गर्भवती हुई हो तो उसे टीडी की एक बूस्टर डोज दी जाती है। बच्चे का टीकाकरण जन्म लेने के साथ ही हो जाता है शुरूः उन्होंने बताया कि जैसे ही बच्चा जन्म लेता है उसे तत्काल जीरो/बर्थ डोज के अंतर्गत, सबसे पहले हेपेटाइटिस बी का टीका दिया जाता है। यदि माता को   हेपेटाइटिस बी है तो बच्चे में हेपेटाइटिस बी न हो, इसलिए जन्म के तुरंत बाद हेपेटाइटिस बी का टीका दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही बीसीजी और पोलियो की बर्थ डोज की खुराक भी दी जानी चाहिए। शुरू में बच्चे की  सुरक्षा कवच मां के दूध से प्राप्त होता है, लेकिन डेढ़ माह के बाद सुरक्षा कवच धीरे-धीरे कम होने लगती  इसलिए टीकाकरण डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह में किया जाता है। बच्चा जब डेढ़ माह का हो जाता  तो उसे रोटा- 1, पोलियो-1, एफआईपीवी-1, पीसीवी-1 और पेंटावेलेंट-1 दिया जाता है। बच्चा जब ढाई माह का हो जाता  तो उसे पोलियो-2, रोटा-2 और पेंटावेलेंट-2 की खुराक दी जाती है। इसी तरह बच्चा जब साढ़े तीन माह का हो जाता है तो उसे पोलियो-3, रोटा-3, एफआईपीवी-3, पीसीवी-2 और पेंटावेलेट-3 की खुराक दी जाती । इसके बाद जब बच्चा नौ महीने का हो जाता  तो पीसीवी की बूस्टर डोज, खसरा एवं रूबेला और जेई का प्रथम टीका दिया जाता है। बच्चे के टीकाकरण की ये पूरी प्रक्रिया एक साल के अंदर पूरी हो जाती  तो इसको पूर्ण टीकाकरण कहते हैं। इसके अंतर्गत आशा कार्यकर्ता को मानदेय भी प्राप्त होता है। इसके अलावा बच्चे को विटामिन ए की  खुराक नौ महीने से लेकर पांच वर्ष तक दी  जाती  है।

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