भू-गर्भ जल “जीवन दायनी प्रक्रिया” का आधार है    

भूगर्भ जलजीवन दायनी प्रक्रियाका आधार है         

 

शुद्ध पेय जल मानव जाती एवं जीव जंतु सभी के  लिए एक आवश्यक तत्व है|इसको प्रकृति द्वारा एक नियत समय पर, नियत मात्रा में हम प्राप्त करते हैं|अतः इसका संरक्षण करना हमारे लिए अति आवश्यक प्रक्रिया होनी चाहिए|हमारे  प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद मोदी जी ने देश भर के ग्राम प्रधानों एवं मुखिया को पत्र लिख के वर्षा जल संगृहीत करने की अपील की|यह पहला मौका है जब ग्राम प्रधानों को किसी प्रधानमंत्री ने जल संचयन के लिए पत्र लिखा है|संरक्षण  के आभाव में वर्षा से प्राप्त जल बह जाता है या वाष्पित हो के उड़ जाता है |

हमारे देश में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है|फिर भी हम पानी का संकट झेलते हैं|एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के लगभग १.४ अरब लोगों  को शुद्ध – पेयजल उपलब्ध नहीं है|पिछले साल नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधंन सूचकांक (C W  M I )रिपोर्ट के अनुसार देश में ६० करोड़ लोग पानी की गंभीर  किल्लत का सामना कर रहे हैं|करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी ना मिल पाने के वजह से हर साल जान गवां  देते हैं | रिपोर्ट के मुताबिक २०३० ई. तक देश में पानी की मांग , उपलब्ध  जल  वितरड़ की दुगनी हो जाएगी | जिसका  मतलब है की करोङो  लोगो में पानी का गंभीर  संकट पैदा हो जायेगा और देश में जीडीपी में ६ प्रतिशत की कमी देखी जाएगी | स्वंतंत्र  संस्थाओ द्वारा जुटाए गए डाटा का उद्धरण देते हुए रिपोर्ट में दर्शाया  गया है  कि  करीब ७० प्रतिशत प्रदूषित पानी के  साथ भारत जल गुड़वत्ता  सूचकांक में १२२ देशो में १२० नंबर पर  है |  भारत के विभिन्न क्षेत्रों  की भौगोलिक  स्थितियां  अलग हैं | वर्षा काल में जहां   भारत के एक हिस्से  में बाढ़ के हालात होते हैं  वहीँ  दूसरे हिस्से में भयंकर सूखा की स्थिति होती है | कई क्षेत्रों  में मूसलाधार वर्षा होने के बावजूद लोग एक – एक बूँद पानी के लिए  तरसते हैं | कई स्थानों में तो संघर्ष की स्थिति हो जाती है |

इसका प्रमुख कारण है वर्षा के  जल का सही प्रकार से संचयन न करना | जिससे पानी बह कर प्रदूषित  हो जाता है |  प्रकृति  के संसाधनों को लेकर हम यह सोचते हैं की यह  कभी ख़त्म नहीं होगा | जिससे जल भण्डारण धीरे धीरे ख़त्म होने की कगार पर है |  इसलिए यह आवश्यक हो गया है की हम जितना पानी प्रकृति से जल भण्डारण के  रूप में लेते हैं  उतना उसको वापस भी करें | गावों  व शहरों  में जल भण्डारण ख़त्म होने की कगार पे है | लगातार हो रहे औधोगिक निर्माण और शहरीकरण से  जल का स्तर बहुत  नीचे पहुँच गया है | जल के स्तर को उसकी उपलब्धता के  आधार पर कई ज़ोन में बाटा गया है | जिससे यह अनुमान लगाया जा सके कि किस एरिया का पानी किस लेबल पर जा चुका है जिस हिस्से में शहरीकरण जितना ज्यादा हुआ है | उस हिस्से की  भूमि का जल उतना ही नीचले स्तर पर चला गया है | इसलिए जितने भी मेट्रो- पोलिटन सिटी हैं , उनको वाटर हार्वेस्टिंग की आवश्यकता पड़ती है |  मुंबई ,दिल्ली. अहमदाबाद आदि सिटी में लोग अपने घरो में वाटरहार्वेस्टिंग प्लांट लगवाते हैं | राजस्थान में घरों के नीचे  टैंक बना के पानी को संगृहीत करना पड़ता है | यह स्थिति और भी भयावह हो जाएगी अगर प्रकृति के जल भण्डारण का  केवल दोहन होगा संचयन नहीं | इस समस्या का सबसे अच्छा उपाय रेन वाटर हार्वेस्टिंग ही है | वर्षा जल का संचयन कर उसका सही ढंग  से प्रबंधन किया जाना चाहिए | इसको जरूरत के अनुसार सप्लाई किया जा सकता है | वर्षा के जल का संरक्षण का इतिहास भारत में बहुत  पुराना है | हमारे देश में जल संचयन की समृद्ध परंपरा प्राचीन कल से ही विधमान रही है | विश्व विरासत में सम्मिलित जार्डन के पेट्रा में की गई पुरातात्विक खुदाई में , सातवीं शताब्दी पूर्व में बनाये गए ऐसे हौज निकले है जिनका प्रयोग वर्षा के जल का संग्रहण करने में किया जाता था |  इसी प्रकार श्रीलंका के सिजिरिया में भी बारिश के  पानी को एकत्र करने क लिए रॉक कैचमेंट सिस्टम बना हुआ था यह सिस्टम  ४२५ ई.पूर्व. में बनाया गया था | इसको विश्व विरासत में शामिल किया गया है | भारत में राजस्थान के  थार में पानी को एकत्र करने के प्रमाण , अवशेष के रूप में  हड़प्पा क खुदाई में पाए गए हैं |

प्राचीन समय में भारत में वर्षा के जल को संचयन के लिए विभिन्न प्रकार के उपाए अपनाये जाते थे | जिससे भू जल का स्तर ऊपर हो जाता था एवं पानी का स्तर समय रहते रिचार्ज हो जाता  था |  नहर – कुवां  नदी पोखर पानी से लबालब रहते थे | परन्तु वर्तमान  में लापरवाही  एवं इसकी अनदेखी की वजह से पानी का घोर संकट पैदा हो गया है |

इज़राइल, सिंगापूर , चीन , ऑस्ट्रेलिया कई देशो में इस पे काफी समय से काम हो रहा है, और अब समय आ गया की भारत में भी इसको अनिवार्य रूप से लागू  कर दिया जाये | भारत में औसत वर्षा १२५ सेंटी मीटर  होती है | मानसून की प्रकृति  ही ऐसी है की वर्षा का  दर हर वर्ष बदलता रहता है | वर्षा जब तीव्र दर से  होती है तो अत्यधिक मात्रा में पानी होने की वजह से भूगर्भ में इसका संचयन नहीं हो पता है | जल संचयन क्षेत्र  में अत्यधिक अतिक्रमण होने से कैच मेन्ट  एरिया अतिक्रमित हो गया है |  जिससे पानी सही प्रकार से नीचे नहीं जा पाता | रास्ते  बंद हो गए हैं | ६०-७० प्रतिशत आबादी घरेलू  उपयोग हेतु  भू – गर्भ जल पर ही निर्भर है जिस की  वजह से शहर  दोहरी समस्या से जूझ  रहा है |

शहर कंकरीट  के  जंगल में तब्दील हो रहें  हैं | इससे भूगर्भ जल के  संचयन का  रास्ता  भी बंद हो गया  है | गावों  में टूबवेल जैसे साधनो क इस्तेमाल  से भू -जल के संग्रहण ख़त्म  होने क कगार पे है | इस वजह से कई टूबवेल तो सूख गए हैं | किटें राजये में तो नए  टूबवेल को लगाने पर रोक तक लगाने की भी कोशिश  सरकार द्वारा हो रही  है | इसमें कोई दो राय नहीं की वर्षा का जल प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक  अनमोल उपहार है | जो सम्पूर्ण धरती को हर साल बिना रोक टोक बिना भेद भाव के प्रकृति द्वारा धरती को प्राप्त होता है |  परन्तु समुचित प्रबंधन न होने के कारण, यह बह कर नदी नालों  एवं नदियों के द्वारा बहता हुआ समुद्र के  खारे  पानी में मिल के खारा  हो जाता है | अतः हमारा कर्त्तव्य है कि इस अनमोल उपहार की एक – एक  बूँद को भी जाया  न जाने दे | इससे हमारे जल का  भण्डारण भी होगा एवं पानी का स्तर भी ऊपर हो जायेगा |

 

प्रकृति ने हमें जल को एक चक्र के रूप में प्रदान किया है और हम उस चक्र का अभिन्न अंग हैं | इस चक्र का निरंतर गतिमान रहना अत्यंत आवश्यक है | प्रकृति के  ख़ज़ाने से हमें जो प्राप्त हुआ है , उसको हमें प्रकृति को वापस लौटना होगा क्यों की हम पानी को बना नहीं सकते | अतः हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम इसको बचाएं |

रेवअप और होवर रोबॉटिक्स द्वारा भारत का पहला बच्चों का पब्लिक स्पीकिंग और टेक कनेक्ट दिल्ली में आयोजित

रेन वाटर हार्वेस्टिंग में भू – जल को पुनः भरा जाता है | यह एक आसान प्रक्रिया है इसके अंतर्गत वर्षा के जल को नालियों पाइप लाइन  के माध्यम  से संगृहीत करते हैं | जिससे इसका उपयोग पुनः किया जा सके | इससे भू – गर्भ जल के स्तर  को बढ़ाया जा सकता है  एवं भू जल की गुद्वात्ता  में भी सुधार  होता है |

 

वर्त्तमान समय में यह  अत्यंत आवश्यक  और  सस्ता साधन  है | जो हमारे   और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी काफी फायदेमंद  है |  हम अपना वर्तमान  सुरक्षित  करेंगे  तो ही हमारा कल सुरक्षित  होगा | इसके अलावा  बड़ी  संख्या  में वृक्ष  लगा  के भी वर्षा के जल का संग्रहण किया जा सकता है | क्यों की पेड़  जल चक्र का अभिन्न हिस्सा  है, ये वर्षा  होने के  बाद, जल को अपनी  जड़ो के  द्वारा धरती क अंदर  पहुंचने  में अभिन्न भूमिका  अदा  करते हैं | इसके अतिरिक्त  यदि हम अपनी  धरती को प्रदूषण  मुक्त  करने का प्रयास  करते हैं तो मानसून कि स्थिति  मजबूत  होती है और वर्षा का जल हमे  समय पर और प्रचुर  मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है | दुनिया के  अन्य  देशो की  अपेक्षा  भारत में पानी की उतनी कमी नहीं है  जितनी  भारत में इसकी प्रबंधन की कमी है | यदि इस प्रबंधन को सही कर लिया  जाये हो भूजल संग्रहण का स्तर नित्य  बढ़ता  जायेगा |

सही मायने में प्रधानमंत्री जी के इस पहल का  बढ़ – चढ़  कर स्वागत  करना चाहिए | वर्षा जल संरक्षण  से हमारा आज सुरक्षित  होगा | अगर आज सुरक्षित हैं  तो हमारा कल भी सुरक्षित  होगा |

 

 

 

लेखक

डॉ शंकर सुवन सिंह

असिस्टेंट प्रोफेसर & प्रॉक्टर

वार्नर कॉलेज ऑफ़ डेयरी  टेक्नोलॉजी

शुएट्स, नैनी ,प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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