• जीवन के पहले 1000 दिन की महत्ता पर वेबिनार का हुआ आयोजन
• आईसीडीएस एवं पाथ के तत्वावधान में वेबिनार का हुआ आयोजन
पटना।
जीवन के प्रथम हजार दिन में सही व पर्याप्त पोषण स्वस्थ एवं सुखी जीवन की कुंजी है. शिशु के विकास, प्रतिरोधक क्षमता एवं स्वस्थ जीवन की नीव प्रथम हजार दिनों में ही तय हो जाती है। प्रथम हजार दिनों में ही शिशु के मस्तिष्क का विकास प्रारंभ हो जाता है और इसी समय उसके जीवन भर के स्वास्थ्य की नीव पड़ती है।
प्रथम हजार दिनों की महत्ता को उजागर करने एवं मातृ एवं शिशु पोषण की जरुरत को उजागर करने के लिए आईसीडीएस एवं पाथ संस्था के तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन किया गया. वेबिनार में निदेशक, समेकित बाल विकास सेवाएं, डॉ. कौशल किशोर, पाथ के राज्य प्रमुख अजीत कुमार सिंह, एम्स जोधपुर के नियोनेटोलोजी विभाग के प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह, सभी जिला प्रोग्राम पदाधिकारी, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी सहित कई स्वयंसेवी संस्था के सदस्य तथा विशेषग्य शामिल रहे. कार्यक्रम का संचालन पाथ के राज्य प्रमुख अजीत कुमार सिंह ने किया।
गर्भवती माता का तनावग्रस्त रहना उसके गर्भस्थ शिशु के लिए घातक:
वेबिनार में मुख्य वक्ता के रूप में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए एम्स जोधपुर के नियोनेटोलोजी विभाग के प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह ने बताया कि गर्भस्थ शिशु का अपने माँ के साथ मानसिक और शारीरिक दोनों जुड़ाव होता है। गर्भकाल में माता का तनावग्रस्त होना उसके गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास में अवरोधक साबित होता है। डॉ. सिंह ने बताया कि 30 प्रतिशत समय से पहले जन्मे शिशु के पीछे नवजात की माँ का तनाव में रहना होता है। एक तनावग्रस्त माता का नवजात अल्पवजनी एवं मानसिक रूप से कमजोर होता है।
40 माह तक विकसित होता है गर्भस्थ शिशु के दिमाग:
डॉ. अरुण कुमार सिंह ने बताया कि अक्सर आज के समय में चिकित्सक माता के गर्भधारण के 9 माह पूरे होते ही प्रसव कराने का प्रयास करते हैं।यह सही नहीं है क्यूंकि एक बच्चा अपने जन्म का समय और दिन खुद तय करता है। गर्भस्थ शिशु का मानसिक विकास माँ के गर्भ में 40 हफ़्तों तक होता है। उन्होंने बताया कि सभी चिकिसकों को बच्चे के जन्म के लिए 40 हफ़्तों तक इंतजार करना चाहिए अगर माता के साथ कोई गम्भित स्थिति नहीं हो।
माँ के भोजन से तय होता बच्चे के भविष्य में खानपान में रूचि:
डॉ. सिंह ने बताया कि गर्भकाल में एक महिला क्या भोजन करती है इसका सीधा असर उसके होने वाले बच्चे के खानपान की ओर झुकाव पर पड़ता है। गर्भकाल के तीसरी तिमाही से गर्भस्थ शिशु के मष्तिष्क का जुड़ाव सीधा उसकी माँ से होता है। डॉ. सिंह ने बताया कि इस समय माँ का तनाव में होना अथवा उससे रुखा व्यवहार शिशु के मष्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालता है जिसे हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि घर में उपलब्ध वस्तुओं से पोषण पाया जा सकता है।उन्होंने प्रतिभागियों को भोजन में पोषण को बरक़रार रखने के टिप्स भी बताये।