आर्य समाज रीति की शादियां अवैध तो बच्चे भी वैध नहीं माने जाएंगे?
HC का फैसला, आर्य समाज का प्रमाणपत्र विवाह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आर्य समाज मंदिर द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र शादी को प्रमाणित करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रमाण पत्र के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि दोनों पक्षों के बीच में विवाह हुआ है।
आर्यसमाजी रीति-रिवाज से विवाह पूरी एक रात में अनुष्ठापित हो पाता है। यजुर्वेद के मंत्रों से विवाह होता है। शास्त्री जी उस विवाह को सम्पन्न करते हैं और जिन-जिन का विवाह हुआ है, उनका नाम रजिस्टर में दर्ज किया जाता है। रजिस्ट्रार को समझाया गया कि आप मैरिज को आर्यसमाजी रीति-रिवाज से विवाह करने की वजह से रजिस्टर्ड नही कर रहे। इस लिहाज से तो अब तक इस रीति से हुई सारी शादियाँ अवैध हुईं और उनके बच्चे अवैध संतानें।
इसका ताजा मामला एडवोकेट शिवानी के एक क्लाइंट का है। उनके क्लाइंट ने शादी को रजिस्टर्ड कराने के लिए ऑन लाइन आवेदन किया था। बताया गया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने शादी का प्रमाण पत्र देने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि शादी का प्रमाण पत्र आर्य समाज ने जारी किया था। इस संदर्भ में एडवोकेट शिवानी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अपने क्लाइंट के हवाले से लिखा है कि मैं जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में ऑनलाइन मैरिज रजिस्ट्रेशन के बाद रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट लेने गयी तो वहां मुझसे रजिस्ट्रार ने साफ कह दिया कि हम आर्य समाज रीति-रिवाज से की गयी शादियों को वैलिड नहीं मानते हैं। आर्य समाज में कोई शादी-वादी नही होती।
एडवोकेट शिवानी ने बताया कि हम आर्य समाज प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश, लखनऊ के समक्ष एक प्रत्यावेदन प्रस्तुत करने जा रहे हैं कि हमारे माता-पिता का विवाह 15 जून 1986 को अलीगढ़ में आर्यसमाज रीति-रिवाज के द्वारा अनुष्ठापित हुआ था, जो टिपिकल अरेंज मैरिज थी। ऐसी स्थिति में इनके विवाह को विवाह वैधानिक समझा जाए? या नहीं? और यदि आर्यसमाज रीति-रिवाज से किया गया विवाह वैध है तो आर्य समाज प्रतिनिधि सभा ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष क्यों नही रखा? सरकार के समक्ष अपना पक्ष क्यों नही रखा? क्यों आपने आर्यसमाज मैरिज वैलिडेशन का हवाला नही दिया? क्यों आर्य समाज मत का अनुसरण किया जाए? जब आपके पास एक सही विज़न नही है। आपके पास करैक्ट लीडरशिप नही है।
आर्य समाज पद्धति से विवाह को मान्यता 1937 में मिल गई थी। अंग्रेजों ने तब आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट बनाया था। इस कानून के तहत अलग-अलग जातियों के युगल परस्पर शादी कर सकते थे।साथ ही अलग-अलग धर्मों के लोग भी आर्य समाज मंदिर में इस पद्धति से शादी कर सकते थे। इस तरह की शादियों को वैधानिक मान्यता थी। आर्य समाज शादी का रिकार्ड रखता है तथा एक प्रमाण पत्र भी जारी करता है।