उत्तर प्रदेश के बरेली में 29 से 31अगस्त तक उर्स-ऐ-रजवी होने जा रहा है लेकिन पाकिस्तान और बंगलादेश के लोग इसमें शामिल नहीं हो सकेंगें। क्योंकि उनके टिकट बुक नहीं हो पा रहे हैं और वीजा मिलने में भी दिक्कत आ रही है। इसलिए वहां के जायरीन अपनी ही जगह से उर्स-ऐ-रजवी मानने के लिए दुआ करेंगें।
दरगाह आला हजरत के संगठन जमात रजा-ए-मुस्तफा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं उर्स प्रभारी सलमान हसन खान ने कहा कि आला हजरत ने इसकी स्थापना 1920 में की थी। उस समय देश पर अंग्रेजों का शासन हुआ करता था। उस वक्त आला हजरत ने 7,500 से ज्यादा फतवे देकर 1,100 से अधिक किताबें लिखी थीं। आला हजरत ने जो किताबें लिखीं वह आज भी देश और दुनिया में उनके मुरीद व दूसरे मजहब के लोगों के द्वारा पढ़ी जा रही हैं। आला हजरत के उर्स को दुनियाभर में उर्स- ए- रजवी के नाम से भी जाना जाता है।
उर्स-ए-रजवी की तैयारियों में दरगाह की गलियां पूरी तरह सज चुकी हैं और काफी रौनक भी नजर आ रही है। इस अवसर पर देश विदेश से आए जायरीन के लिए शहर के होटलों में कमरे बुक हो चुके हैं। कुछ जायरीन आने में असमर्थ हैं क्योंकि उनकी टिकट बुक नहीं हो पा रही हैं जिनमें पाकिस्तान और बंगलादेश से आने वाले लोग भी हैं।