मुस्कान योग से करें तनाव मुक्ति
(आत्महत्या, अपराध एवं भयानक रोगों का आधार हैः तनाव)
तनाव शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। तन + आव तन का तात्पर्य शरीर से है, और आव का तात्पर्य आवेश या घाव से है। अर्थात वह ‘शरीर’ जिसमे घाव हैं। अर्थात तनाव एक भयानक मानसिक रोग है। जो दिखाई नहीं देता है। शरीर का ऐसा घाव जो दिखाई न दे, तनाव कहलाता है। मनीषियों व मनस्वियों को यह स्पर्श नहीं कर पाता है। तनाव जन्य मनोविकारों का आक्रमण केवल दुर्बल व कमजोर मानसिकताओं पर होता है। परिस्थिति तो सबके लिए समान होती है। एक ही परिस्थिति में रहने वालों में से संकल्पवान अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। वही तनावग्रस्त व्यक्ति विकल्प तलाशते रह जाता है।
तनाव मुख्य रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता (नर्वस सिस्टम) को प्रभावित करता है। तनाव से तंत्रिकातंत्र अत्यंत सक्रिय हो जाता है। इसकी सक्रियता हृदयगति एवं शर्करा के स्तर को बढ़ाने में सहायक होती है। तनाव की अवधि में श्वेत रूधिर कोशिकाओं की सहज सक्रियता कम हो जाती है। इससे घबराहट होती है एवं सिर भारी रहता है. ऐसी अवस्था में नकारात्मक विचार उठते हैं और मन में अकारण ही निराशा-हताशा होने लगते हैं। तनाव मन में उत्पन्न होता है। अतः तनाव से मन अत्यधिक प्रभावित होता है। तनावजन्य नकारात्मक एवं निषेधात्मक विचारों से शरीर की प्रतिरक्षात्मक प्रणाली पर भी विपरीत असर पड़ता है। ये कोशिकाएँ शरीर की रोगों से रक्षा करती हैं तथा शरीर को स्वस्थ एवं निरोग बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं, परन्तु तनाव इस प्रतिरक्षात्मक प्रणाली की सक्रियता को कम करके रोगों को प्रवेश करने का अवसर प्रदान करने लगता है। तनाव से मन में कई प्रकार के मनोविकार, रोग अपना स्थायी आवास बना लेते हैं। तनाव से चिड़चिड़ापन पैदा हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों का मानसिक संतुलन लगभग गड़बड़ा जाता है। परिणाम स्वरूप नींद न आना, हताशा-निराशा, कल्पनाओं में खोए रहना, डरना आदि मनोरोगों का प्रादुर्भाव होता है। तनावग्रस्त लोगों में निर्णय करने की क्षमता धीरे धीरे क्षीण होने लगती है। पिफर निकट भविष्य में ये तनाव ही अवसाद का भयंकर रूप धारण कर लेता है। तनाव तक तो उपचार आसान है, लेकिन अवसाद में तो बहुत ही कठिन होता है। तब रोगी को कुछ भी नही समझाया जा सकता। एसे में रोगी अपने आपको रोगी मानने को ही तैयार नही होता। वो दवा या योगासन करने से भी मना कर देता है। उसे कोई दवाई नही दी जा सकती।
तनाव से ग्रसित मानव को सारा समाज पागल दिखाई देता है। तनाव वो बीमारी है जिसमे मानव हीन भावना से ग्रसित होता है। तनाव मूल रूप से विचारों का नकारात्मक होना या मन का कमजोर हो जाना है। अतएव तनाव मनोविकार है। तनाव नकारात्मकता का पर्यायवाची है। जब हम स्वयं का आदर व सम्मान करते हैं तभी हम देश और समाज की सेवा कर सकते हैं। तनाव से ग्रसित व्यक्ति जो स्वयं रोगी है वो दूसरों को भी बीमार करता है। तनाव से ग्रसित व्यक्ति दूसरों को भी तनाव में डालता ही रहता है। ऐसे नकारात्मक लोगों उपचार अीसान तो है, लेकिन आसानी से सम्भव नही है। जब तक ये स्वयं ना चाहे तब तक इनका उपचार सम्भव नही होता।
नकारात्मकता के विशेष लक्षणः अपने स्वार्थ के लिए दूसरों पर आरोप लगाना।
अपने को सही और दूसरों को गलत समझना।
हमेशा नकारात्मक चीजों पर बात करना।
सकारात्मक विचार और सकारात्मक लोगों से दूरी बनाना।
दूसरे की सपफलता से ईष्या करना।
ऊपर दिए गए लक्षणों से बचना ही तनाव से मुक्ति का कारण है। तनाव में ही मानव अपराध करता है। तनाव अंधकार का कारक है। समाज की अवनति का कारण है। सकारात्मकता से तनाव पर विजय पाई जा सकती है। अतएव हमारे rishiषि, मुनियों ने मानवोत्थान हेतु असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय। अर्थात- हे प्रभु मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। जैसे मंत्रों की रचना की।
यही अवधारणा समाज को चिंतामुक्त और तनाव मुक्त बना सकती है।
आज के समय में तनाव लोगों के लिए बहुत ही सामान्य अनुभव बन चुका है, जो कि अधिसंख्य दैहिक और मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं द्वारा व्यक्त होता है। तनाव की पारंपरिक परिभाषा दैहिक प्रतिक्रिया पर केंद्रित है। अधिकतर असंयमित, अतार्किक या अवांछित तनाव है। दूसरे शब्दों में कहें तो हम तनाव खरीदते है। प्राकृतिक तनाव तो बहुत ही कम होता है।
हमने मुस्कान योग से तनाव मुक्ति का मार्ग खोज लिया है। हमारा ये सफलतम् प्रयोग सभी के लिये लाभदायक है।
श्री गुरूजी भू