कार्यकर्ताओं की अनदेखी, पदासीन अधिकारियों का अहंकार पडा भारी

 

मैंने अटल जी के राज में कहा था कि भाजपा के कार्यकर्ता भाजपा के कार्यकाल में भूखे मरते हैं। आज भी यह सत्य है। उस समय हम त्याग और तपस्या के लिए तैयार थे उस समय हमारी मानसिकता कुछ अलग तरह की थी। क्योंकि आज जैसे देशद्रोही नेता कम थे आज कुछ अधिक हो गए हैं। लेकिन आज कार्यकर्ताओं की मानसिकता और कार्यकर्ताओं की इच्छाओं का ध्यान रखना किसी भी पार्टी के लिए अति आवश्यक है। जो यह चूक करेगा वह दिल्ली जैसे परिणाम जो आज भाजपा ने दिल्ली में देखें हैं। ऐसे ही परिणाम आगे भी देखने को मिलेंगे, इसलिए कार्यकर्ताओं का सम्मान सर्वप्रथम है। बडे नेताओं का मान सम्मान हो अच्छी बात है। वो ये कैसे भूल जाते है कि क्षेत्र में हजारों कार्यकर्ताओंं मे से कभी एक आप भी थे। आपको टिकट मिला लेकिन जिताया उन्होंने ही। वो ये कैसे भूल जाते है कि क्षेत्र में हजारों कार्यकर्ताओंं मे से एक आप भी थे। आपको टिकट मिला लेकिन जिताया उन्होंने ही। आपको उन कार्यकर्ताओ के कारण ही आप बडे नेता बनें।  जिनके कारण आप जो चुनाव जीत गए हैं।

एक बड़े नेता हैं भाजपा के सांसद हैं। नए नए बने हैं इस बार उनके कार्यालय के सामने। एक बोर्ड लगा है। पर लिखा है ना फोटो प्लीज। जब वहां जाता है जब कार्यकर्ता वहां जाता है और वह एक फोटो की इच्छा अगर अपने सांसद के साथ रखता है तो इसमें क्या अपराध है उन भाई साहब ने लगा दिया है 9 फोटो प्लीज इसका अर्थ है कि कोई हिम्मत ही न दुआएं उनके साथ फोटो खिंचवाने कि उनके क्षेत्र में कुछ मतदाताओं ने अपना यह देखा तो इसके कारण नाराज हुए और उन्होंने कहा नो वोट प्लीज कि हमसे वोट भी मत मांगो। सांसद बनने से पहले तो सबके हाथ जोडते रहे। बनने के तुरन्त बाद  कार्यालय के सामने बोर्ड लगा दिया नो फोटो प्लीज। तो बताईये कि कार्यकर्ता की अपने सांसद के साथ एक फोटो भी खिचाने की क्षमता नही।

दिल्ली में मेरी नजरों में बीजेपी के हार के कारण:-

1:- दिल्ली में सर्वमान्य चेहरे का अभाव

बीजेपी पिछले 5 सालों में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं बना सकी ना ही किसी स्थानीय नेतृत्व को उभरने दिया। याद रखिए क्षेत्रीय चुनाव सिर्फ मोदी और अमित शाह के चेहरे के आधार पर नहीं लड़ा जा सकता।

2:- कार्यकर्ताओं की भारी अनदेखी

आम आदमी पार्टी का हर कार्यकर्ता उनकी सिस्टम का एक हिस्सा है.. केजरीवाल ने लगभग सभी कार्यकर्ताओं को उनके क्षमता के आधार पर पूरे इकोसिस्टम में कहीं ना कहीं सेट कर दिया है।

और जो कार्यकर्ता कहीं नहीं सेट हो पाते तब केजरीवाल उन्हें बीच-बीच में ऑड इवन लागू करके उन्हें वालंटियर बनाकर उन्हें सरकारी खजाने से भुगतान कर देता है।

आम आदमी पार्टी के कई सौ कार्यकर्ताओं ने अपने घरों में मोहल्ला क्लीनिक खोलकर भाड़े की खूब कमाई की है। जिस मकान का भाड़ा ₹10000 है। वही मकान दिल्ली सरकार ₹25000 भाड़ा दे रही है।

वहीं बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को सूफियाना, आदर्शवादी और नैतिकता की बड़ी-बड़ी बातें बोलकर कहती है कि तुम हवा पानी पीकर हमारे लिए काम करते रहो। मंदी की मार काम की कमी ने पहले ही कार्यकर्ताओं की कमर तोड़ दी है। उनके उत्साह में कमी आई है। इसी कारण उनके कार्य करने की क्षमता भी कम हुई है। उदासीनता का प्रभाव।

इतना ही नहीं दिल्ली डायलॉग कमीशन में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को 40,000 से लेकर डेढ़ लाख रुपए तक की सैलरी दी जाती है। मत भूलिए कि कार्यकर्ता खुद भी सिस्टम का एक हिस्सा बनना चाहता है। अफसोस बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को कभी सिस्टम का हिस्सा नहीं मानती।

3:- बीजेपी के नेताओं का दिल्ली की जनता से दूर रहना।

दिल्ली के सभी बीजेपी नेता दिल्ली की आम जनता से बहुत दूर जा चुके हैं। कोई भी अब जमीन पर उतर कर जनता के बीच में जाकर काम नहीं करना चाहता। बल्कि सब सत्ता की मलाई चाटना चाहते हैं।

पार्षदों का अहंकार, काम ना करना, क्षेत्र के लोगों की अनदेखी करना।

सीलिंग में केवल भाजपाइयों का ही नुकसान हुआ। केजरीवाल के वोटर तो सडकों पर दुकान लगये बैठे है। उन्हे कोई अधिकारी छेडकर दिखाएं।

4:- केजरीवाल द्वारा हर एक कार्यकर्ता को उचित सम्मान दिया जाना।

अरविंद केजरीवाल कि एक नीति यह है कि वह अपने हर कार्यकर्ता के सुख दुख में शामिल होता है। वह कई कार्यकर्ताओं के घर शादियों में भी जाता है यदि किसी कार्यकर्ताओं के घर निधन होता है तब वहां भी जाता है। इस वजह से उसने अपने कार्यकर्ताओं की एक ऐसी निष्ठावान फौज तैयार कर ली है जिसे तोड़ पाना अब बीजेपी के लिए बेहद मुश्किल है। क्योंकि बीजेपी के नेता पिछले कुछ सालों में सत्ता का स्वाद मिलने के बाद बहुत घमंडी हो चुके हैं।

5:- केजरीवाल द्वारा सभी स्कीम में कोई भी जातिभेद ना लागू करना।

बीजेपी की केंद्र सरकार हो या बीजेपी की कोई भी राज्य सरकार हो जब भी कोई स्कीम लागू करती है तब वह उसमें अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अन्य पिछड़ा वर्ग इत्यादि का कोटा लगा देती है। जबकि सबको पता है कि बीजेपी के कोर वोटर वह लोग हैं जिन्हें बीजेपी कभी कोई स्कीम का फायदा नहीं देती।

केजरीवाल ने इसी कमजोरी का फायदा उठाया और दिल्ली में उसने जितनी भी स्कीमें लांच की उन्हें आरक्षण से दूर रखा

मेट्रो और डीटीसी में महिलाओं के लिए फ्री यात्रा की तो सभी वर्ग की महिलाओं के लिए फ्री हुए। मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी में भी उसने कोई आरक्षण सिस्टम नहीं लागू किया।

6:- अपने वोटर का पूरा ध्यान रखना।

केजरीवाल को यह पता है कि दिल्ली के मुस्लिम वोटर अब आम आदमी पार्टी के कोर वोटर बन चुके हैं। इसलिए उसने मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए बहुत सी योजनाएं लागू की जिसमें हर मस्जिद के मुयज्जिम यानी जो अजान पढ़ता है उन्हें सरकारी खजाने से ₹18000 सैलरी देना। मुस्लिम लड़कियों के लिए कई योजनाएं लागू करना और हर मस्जिद में सरकारी खजाने से साफ-सफाई और रंग रोशन करने के लिए पैसा देना।

इतना ही नहीं दिल्ली वक्फ बोर्ड पूरे भारत में मुस्लिमों के साथ खड़ा रहा चाहे वह बाइक चोर तबरेज अंसारी को दिल्ली वक्फ बोर्ड के खजाने से 20 लाख देना हो या फिर राजस्थान के पहलू खान को दिल्ली के सरकारी खजाने से 20 लाख देना हो, केजरीवाल ने अपने मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी

जबकि बीजेपी को यह पता है कि उसके कोर वोटर कौन हैं लेकिन वह उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसी कोई योजना नहीं बना रही है।

 

अंत मे देखने को मिला कि छोटे मीडिया की अनदेखी की । कार्यकर्ताओं की अनदेखी के साथ-साथ भाजपा ने छोटे मीडिया की भी अनदेखी की। छोटे मीडियाकर्मी, छोटे मीडिया हाउस जिनको बहुत ज्यादा लालच नहीं होता है। बड़ी कंपनियों को बड़े बड़े चैनलों को सबको मोटा पैसा दिया गया होगा, लेकिन छोटी की तरफ सोचा ही नहीं या तो गली-गली जाकर भाजपा के मतदाताओं को भाजपा ने छोटे मीडिया की भी अनदेखी की। बड़ी कंपनियों को बड़े बड़े चैनलों को सबको मोटा पैसा दिया गया होगा तभी लेकिन छोटी की तरफ सोचा ही नहीं या तो गली-गली जाकर भाजपा के मतदाताओं को उनकी नीतियों को समझा पाने में सफल था लेकिन उसकी अनदेखी की गई और केजरीवाल में छोटे मीडिया के द्वारा सोशल मीडिया के द्वारा ही अपने पूरे कार्यक्रम को अंजाम दिया और जनता तक अपनी झूठी सच्ची सभी बातों को मनवाया। उसके बाद सारा खेल ही पलट गया और भाजपा कार्यकर्ता केवल बड़े नेताओं के भरोसे अहंकार में चूर रहे। घरों में पहुंचे ही नहीं अपने मतदाताओं को निकाल पाने में पूरी तरह विफल रहे।

 

श्री गुरुजी भू

(प्रकृति प्रेमी, विश्व चिन्तक)

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