भ्रामक मुलनिवासी संकल्पना थोपने का कुप्रयास

 

*जनजाती समाज पर थोपने का कुप्रयास*

👉भारत के अनुसूचित जनजातियों को भारतीय संविधान में”” मुलनिवासी””इस नाम से परिभाषित करें इस प्रकार का आंदोलन कुछ संगठन चला रहे हैं। कहा जाता है कि जिन को आदिवासी इस शब्द से संबोधित किया जाता है, ये लोग ही भारत के मालिक है, मूल निवासी है, जिन पर भारत के बाहर से आए लोगों ने, अर्थात आर्यों ने आक्रमण किया और उनको बलपूर्वक जंगल में भगा दिया।

👉भारतीयों में फूट डालने के लिए ही एबोरिजंस आदिवासी, मूलनिवासी आदि शब्दों की योजना ”फूट डालो और राज करो” इस कुटिल नीति के अंतर्गत अंग्रेजों ने की थी, यह समझना आवश्यक है।

👉इस षड्यंत्र की झलक बंगाल के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर रिचर्ड टेंपल द्वारा अप्रैल १८८३ में बेप्टीस्ट सोसाइटी में दीए गये भाषण में मिलती है। सर रिचर्ड टेंपल अपने भाषण में कहते हैं। ”भारत के वनजंगलों में रहने वाले समाज को ( वर्तमान का जनजाति समाज )एबोरिजंस (अर्थात आदिवासी) इस नाम से संबोधित करने से इस समाज को शेष भारतीय समाज से अलग किया जा सकता है। यह एबोरिजंस क्रिश्चियन धर्म अनुकूल बनने से अंग्रेजी सत्ता के लिए वरदान सिध्ध होगे, जिससे अंग्रेजी सत्ता मजबूत बनेगी।

👉अंग्रेज भारत आते ही उनके विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ हुआ था। पहला व्यापक स्वतंत्रा संग्राम 1857 में हुआ। उस संग्राम में जनजाति बंधुओं ने अद्भुत पराक्रम दिखाया, जिसके कारण अंग्रेजी शासन भी हिल गया था। इस समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी थे। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को पत्र भेजा। वह लिखते हैं “”भारत के जनजाति बंधुओं से शत्रुता अंग्रेजी शासन के लिए महंगा सौदा साबित साबित होगा।
जनजाति समाज वन जंगलों में रहता है, गरीब है। उनसे अंग्रेजी शासन को रेवन्यू भी नहीं मिलता इसलिए इस समाज की ओर ध्यान न देकर अन्य भारतीय समाज से उनको तोड़ना ही अंग्रेजी शासन को स्थिर करने का योग्य मार्ग होगा। इसी कारण से पराक्रमी, देशभक्त जनजाति समाज को शेष भारतीय समाज से तोड़ने के लिए एबोरिजंस, आदिवासी, मूलनिवासी, आदि शब्दों की योजना अंग्रेजों ने की। की। यही की अंग्रेजी की। कुटिल नीति फूट डालो ओर राज करो।

“👉” मूलनिवासी”” शब्द को अमलीजामा पहनाने के लिए आर्य आक्रमण एवं आर्य द्रविड़ संघर्ष की मनगढ़ंत कहानी अंग्रेजों ने बनाई। स्वामी विवेकानंद से लेकर डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर जी तक अनेक महापुरुषों ने उपरोक्त मनगढ़ंत कहानी का जोरदार विरोध किया। आर्य बाहर से भारत में नहीं आए आर्य शब्द वंश वाचक शब्द नहि है। आर्य का अर्थ होता है “”श्रेष्ठ”” । ईसी अर्थ से आर्य शब्द का प्रयोग अनेक भारतीय प्राचीन साहित्य में किया गया था, यह सभी महापुरुषों ने सम प्रमाण सिद्ध किया था। डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर जी की पुस्तक “”” हु वेअर शुद्राज””में लोकमान्य तिलक जी के आर्य आगमन का डॉक्टर बाबासाहेब ने समप्रमाण खंडन किया था।

👉उनके साथ ही आधुनिक विज्ञान ने डीएनए टेस्ट द्वारा आर्यों के आक्रमण तथा आर्य द्रविड़ संकल्पना का खंडन ही किया है। विज्ञान के अनुसार भारत के बाहर से आए व्यक्तियों के डीएनए में और भारत में रहने वाले व्यक्तियों के डीएनए में काफी मात्रा में अंतर होना चाहिए। परंतु वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिखाया कि भारत में रहने वाले सभी भारतीयों के जनुकिय तत्व अर्थात डीएनए समान है । इस अर्थ यह होता है कि भारत में कोई भी व्यक्ति या व्यक्ति या व्यक्तियों का समुह बाहर से आया ही नहीं । वैज्ञानिकों ने यह भी सिद्ध किया थी कि पिछले ६० हजार सालों में भारतीय के डीएनए में किसी तरह का बदलाव नहीं पाया गया।
विदेशों के मूल निवासी और भारत की अनुसूचित जनजाति उनको समान मानकर, उनकी कुछ समस्याओं की समानता के आधार पर,दोनो को समकक्ष मानकर, भारत की जनजातियों को”” मूल निवासी”” कहना गलत है। वास्तव में यह आदिवासी और गैर आदिवासी समाज में झगड़े लगाकर भारत को अशांत करने का षड्यंत्र है।

👉दुनिया के अन्य राष्ट्र एवं वहां के मूल निवासी और भारत के अनुसूचित जनजातियों की स्थिति संपूर्ण दृष्टि से भिन्न भिन्न है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों को मान्यता है। अमेरिका में ऐझटेक, माया ,और इन्का संस्कृति का अस्तित्व था। कोलंबस के अमेरिका जाने के बाद पोर्टुगीज,डज,स्पेनीश,फ्रेच, अंग्रेज आदि यूरोपियन लॉग इस नए भुप्रदेश में ( जहां कोलंबस गया था) बसने लगे । इन यूरोपीयन राष्ट्रों ने अमेरिका में सत्ता स्थापित की । सत्ता स्थापित करते समय वहां के मूल निवासियों की संस्कृति नष्ट की । उन पर कुर्र्ता से आक्रमण किया, जिसके कारण अमेरिका के मूल निवासियों को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए जंगलों ,पहाड़ों में छिपना पड़ा।
👉इन मूल निवासियों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी सन 1993 को मूल निवासी वर्ष घोषित कर मूलनिवासी कानून बने यूनो के मूलनिवासी कानून से अधिक सुविधाएं भारत के जनजातियों को भारतीय संविधान ने दिए हैं। उसकी जानकारी नीचे दी गई है🙏👇 उसके संबंध में जागरण होना आवश्यक है।

👉भारत में कोई भी अलग से मूलनिवासी नहीं है, यही भूमिका भारत सरकार की 1947 में रही है। यह बात बार-बार यूनो में कहीं भी गई है। सितंबर 2001 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से मूलनिवासी विषय पर अंतरराष्ट्रीय चर्चा सत्र हुआ था।
👉भारत का प्रतिनिधित्व करने वालों में तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला कांग्रेस के श्री सुशील कुमार शिंदे आदि सांसद थे भारत में कोई भी अलग से मूलनिवासी नहीं है। यही बात प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने रखी थी। यही भारत सरकार का भी अधिकृत मत है , यह समझना आवश्यक है।

👉इसलिए ब्राह्मक मूलनिवासी संकल्पना भारत के जनजाति समाज पर थोपना पूर्णता: गलत है। वास्तव में भारत में रहने वाले सभी भारतीय भारत के मूल निवासी हैं।

राष्ट्रहित मे जारी – जनजाती चेतना से साभार प्रस्तुत।

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*धन्यवाद*

अखिल भारतीय जनजाती सुरक्षा मंच।🚩
जनजाती सुरक्षा मंच गुजरात प्रांत ।🚩
जनजाती कल्याण आश्रम गुजरात प्रांत 🚩
राष्ट्रीय आदिवासी मंच . गुजरात. राजस्थान. महाराष्ट्र . झारखंड. मध्यप्रदेश. ।🚩

जय देवलीमाडी 🙏
भारत माता की जय 🙏
वंदे मातरम्🙏

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