कोरोना महामारी से कैसे बचे? आज यह प्रश्न बहुुुत बडा है।
महामारी के कारण कुछ लोगो के मन में निरर्थक मरने का जो भय बैठ गया है इस भय से कैसे बचा जाए..?’
क्योंकि वायरस से बचना तो बहुत ही आसान हैं, लेकिन जो भय आपके और दुनिया के अधिकतर लोगों के भीतर बैठ गया है, उससे बचना अत्यधिक कठिन है।
अब, इस महामारी से कम लोग, लेकिन इसके भय के कारण अधिक मरेंगे।
‘भय’ से अधिक घातक इस विश्व में कोई भी वायरस नहीं है।
इस भय को समझिये, इसको मन के भीतर ही प्रवेश ना करने दें। चाहे वह किसी भी तरह का भय हो।
अन्यथा मृत्यु से पहले ही आप एक जीवित शव बनकर रह जाएँगे। भयग्रस्त शरीर कभी भी जीवन का भरपूर आनंद नही ले पाता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी भय के कारण कम हो जाती है।
यह जो भयावह माहौल आप अभी देख रहे हैं इसका वायरस से कोई लेना देना नहीं है। वायरस तो हमारी समझदारी से नष्ट हो सकता है। पर वो समझ सबमें समान ही होनी चाहिए। भयमुक्त होकर नियमों का पालन करो, सब ठीक होगा।
वैसे नियमों का पालन ना करना एक मानवीय पागलपन है, जो एक अन्तराल के बाद हमेशा घटता बढ़ता रहता है। कारण बदलते रहते हैं, लेकिन इस तरह का सामूहिक पागलपन समय-समय पर प्रगट होता रहता है। व्यक्तिगत पागलपन की तरह, कौमगत, राज्यगत, देशगत और वैश्विक पागलपन भी होता है।
इस में बहुत से लोग या तो हमेशा के लिए विक्षिप्त हो जाते हैं या फिर मर जाते हैं। ये जो भय है, ये आपके शरीर में हजारों अदृश्य रोगों की जड़ जमा देगा। जिनका हमें कभी पता भी नही चलता। आपको हर छोटी सी परेशानी में लगेगा कि कहीं मुझे भी तो कोई रोग नही हो गया ? और जैसे ही किसी रोग का नाम आपके मन में आया तो वो एक प्रभावशाली रसायन उसी समय शरीर में प्रकट करता है।
ऐसा पहले भी हजारों बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा। तब तक होता रहेगा जब तक कि हम और आप भय और भीड़’ का मनोविज्ञान नहीं समझ लेते हैं।
भय में रूचि लेना बंद कीजिए
आमतौर पर हर व्यक्ति भय में बहुत रूचि लेता है। भय में भी बहुत आनंद है, लेकिन ये आनन्द आत्मघाती है। मेरे मनोवैज्ञानिक शोध के अनुसार अगर भय में आनन्द नहीं होता तो लोग भूतहा फिल्म देखने क्यों जाते ? घरों में बैठकर भी लोग भूतहा फिल्में, धारावाहिक देखते है।
अपने भीतर की इस रूचि को, रस को समझिये,
इसको बिना समझे आप डर के मनोविज्ञान को नहीं समझ सकते हैं। भय को अपने भीतर से तुरंंत दूर कीजिए। इसे मन मष्तिष्क से हटा दीजिये।
अपने भीतर इस डरने और डराने के रस को देखिए- क्योंकि आम जिंदगी में जो हम डरने-डराने में रस लेते हैं, वो इतना अधिक नहीं होता है कि अपके अवचेतन मन को पूरी तरह से जगा दे। सामान्यतया आप अपने भय के स्वामी होते है।
लेकिन सामूहिक पागलपन के क्षण में आपकी मालकियत छिन सकती हैं। चाहे वो किसी कोरोना वायरस का पागलपन हो, लोगों का उसके प्रति अनाडीपन हो, कोई धार्मिक उन्माद हो अथवा युद्ध का साया हो। सामाजिक भय हय हो, कुछ भय और भी कई तरह के होते है।
हमारा अवचेतन मन पूरी तरह से बहुत कुछ कर सकता है। वो अपार शक्तिशाली है। उसमें अपार कार्य सिद्धि की संभावनाएं हैं। भय मुक्त रहने पर अवचेतन मन को शक्ति मिलती है वह अत्यधिक शक्तिशाली हो जाता है।
आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आप दूसरों को डराने और डरने के चक्कर में नियंत्रण खो बैठें हैं।
फिर भय आपसे कुछ भी करवा सकता है, ऐसी स्थिति में आप अपनी या दूसरों की जान भी ले सकते हैं।
आने वाले समय में ऐसा बहुत होगा। बहुत से लोग आत्महत्या करेंगे और बहुत से लोग दूसरों की हत्या करेंगे। क्योंकि अभावग्रस्त जीवन, धैर्य का अभाव, मन में शांति का अभाव, मन में सुविचारों का अभाव, विशेषकर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ही इस ओर आकर्षित करता है।
सदैव सचेत रहें
ऐसा कोई भी विडियो या न्यूज़ मत देखिये जिससे आपके भीतर भय पैदा हो। ऐसा कोई भी अखबार समाचार या पुस्तक मत पढ़िए जिसमें भय का भाव हो नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत हो।
घर में ही रहें।
महामारी के बारे में नकारात्मक बात करना बंद कर दीजिए, लेकिन घर मेंं ही रहकर अपना कीमती समय अपने रचनात्मक कार्यों की सिद्धि में अवश्य लगाओ।
किसी भी विचार को, किसी चीज़ को बार बार मन में दोहराने से आत्म-सम्मोहन पैदा होता है। भय भी एक तरह का आत्म-सम्मोहन ही है, लेकिन नकारात्मक प्रभाव का धोतक है। इसलिये हमें सदैव सकारात्मक विचारों को ही मन में रखना चाहिए। उन पर ही चिंतन और मंथन करते रहना चाहिए। असत्य से दूर रहना चाहिए।
एक ही तरह के विचार को बार-बार सोचने से शरीर के भीतर रासायनिक बदलाव होने लगता है। अगर यह नकारात्मक विचार हैं तो यह रासायनिक बदलाव कभी कभी इतना विषैला हो सकता है कि आपकी जान भी ले सकता है।
वहीं दूसरी ओर अगर यह सकारात्मक विचार हैं, किसी अच्छी बात के लिए, किसी अच्छे काम के लिए आपके मन में विचार बार-बार प्रकट हो रहे हैं, उस पर ध्यान लग रहा है, ध्यान केंद्रित हो रहा है तो उस समय आपके मन में समाधान भी निकलते हैं और उस लक्ष्य की प्राप्ति का भी रास्ता इसी से निकलता है।
चिंतन करों महामारी के उपरांत संसार का रूप क्या होगा।
हम अपनी भूमिका कैसे निभायेंगे ? आज जो हो रहा है, उन पर कम ध्यान दीजिए| केवल अपने आपको सुरक्षित रखना है। फिर अपने परिवार को, फिर अपने साथियों को, अपने पडोसियों को, अपने प्रान्त को, फिर देश को सुरक्षित करना है। लेकिन ध्यान केंद्रित करना है कि हमें इसके बाद क्या करना है ? भय मुक्त हो जाओ। चिन्तन करो, मन्थन करो, मनन करो कि मै ही समाधान हूँ, विश्व की सभी समस्याओं का समाधान मैं कर सकता हूँ।
मैं भी समाधान हूँ
इस महामारी के बाद जो संकट पैदा होने वाले हैं उसका समाधान भी मुझे अच्छे से करना है। अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने देश के लिए, अपनी पूरी पृथ्वी के लिए, मानव जाति के लिए, प्रकृति के संरक्षण के लिए यह सब समाधान मुझे करने हैं। मैं अपनी भूमिका इसमें किस तरीके से निभा पाऊंगा ? मुझे इसके लिए क्या करना होगा ? उसका चिंतन और मनन आज से ही करने की आवश्यकता है, तो समाधान निकलेगा। निश्चित ही निकलेगा। आप अपने आप को मजबूत पाएंगे और किसी भी तरह के रोग से मुक्त हो जाएंगे। भय मुक्त हो जाओ। भय से दूर हो जाओ। मन और मस्तिष्क से भय को निकाल दो, लेकिन सदैव सचेत रहो।
‘ध्यान-साधना’ से साधक के चारो तरफ एक रक्षा कवच, आभामण्डल बन जाता है। जो बाहर की नकारात्मक उर्जा को उसके भीतर प्रवेश नहीं करने देता।
अभी पूरेे विश्व में भय का आभामण्डल है।
तो क्या सारी ऊर्जा नाकारात्मक हो चुकी है?
जी हाँ, ऐसे में आप कभी भी इस ब्लैक-होल में गिर सकते हैं। इन विषमताओं के मध्य हम ध्यान की नाव में बैठ कर ही इस झंझावात से बच सकते हैं। सकारात्मक सोच ही हमारे आभामंडल को मजबूत करेगी और हम इन विषमताओं से बच जाएंगे। इसलिए हमें अपने विचारों में सकारात्मकता रखनी है और उसी ऊर्जा को आगे बढ़ाना है इसके लिए ध्यान, योग और प्राणायाम का मार्ग सर्वोत्तम है।
इस समय शास्त्रों का अध्ययन कीजिए, सतसंग सुनिए, योग व प्राणायाम कीजिये, प्रकृति के रहस्यों का अध्ययन कीजिए, प्राकृतिक चिकित्सा को जानिए और आत्म साधना कीजिए। क्योंकि स्वास्थ्य है तो सबकुछ है।
आहार व दिनचर्या का भी विशेष ध्यान रखिए- सात्विक भोजन ही लीजिए। दिनचर्या को सन्तुलित रखिये।
धीरज रखिए शीघ्र ही सब कुछ ठीक हो जाएगा।
जब तक मौत आ ही न जाए, तब तक उससे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है और जो अपरिहार्य है, उससे डरने का कोई अर्थ भी नहीं है।
भय एक प्रकार की मूढ़ता है और इस बात का साक्ष्य है कि अब तक जीवन आपने गलत ढंग से जिया है। जो अपने आज को कल पर टालते हैं, उन्ही को मौत से अधिक भय लगता है।
जो अपने जीवन को प्रति पल समग्रता से जीते हैं, उनके लिए मृत्यु कोई बडी समस्या नहीं है।
जीवन पर सकारात्मक पुनर्विचार कीजिए।
भय से कुछ भी हल नहीं होगा।
अगर इस महामारी से अभी नहीं भी मरे तो भी एक न एक दिन मरना ही होगा, और वो एक दिन कोई भी दिन हो सकता है| इसीलिए, तैयारी रखिए। हर पल का भरपूर आनंद लीजिए। घर में ही भयमुक्त सुरक्षित रहिये।
जीवन को टालिए मत… ।
सकारात्मक सीख
यह वायरस हमें सिखा रहा है कि समस्त पृथ्वी हमारा परिवार है। कोई जाति धर्म किसी भी तरह की विषमता इस पृथ्वी पर नहीं होनी चाहिए। ये ना गरीब देख रहा है, ना यह अमीर देख रहा है। इसलिए इस अदृश्य जीवाणु से, इस घातक राक्षस से हमको बचना है, अपने अपनों को बचाना है। अपने राष्ट्र को भी बचाना है। मानवता को बचाना है।
श्री गुरुजी भू
(विश्व चिंतक मुस्कान योग के प्रणेता विश्वमित्र परिवार के संस्थापक)