चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान जयंती पर चलो एक आशा का दीप जलाये
सम्राट अशोक
जैसा कि आप सबको पता है कि आज समूचा विश्व कोरोना महामारी से लड़ रहा है। हमारा देश भारत भी 21 दिन के लॉक डाउन में है।
इसी सप्ताह में सम्राट अशोक की जयन्ती भी है।
भारत देश का एक गौरवशाली इतिहास रहा है , इस देश मे कई महान विभूतियों का जन्म हुआ। उन महान विभूतियों में कुछ ऐसी विभूतियां थीं जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया तो कुछ विभूतियां ऐसी भी थीं जिन से देश को नई पहचान मिली। यह बात अलग है कि तथाकथित मुख्यधारा के इतिहासकारों ने जो स्वयं एक विशिष्ठ संस्कृति व विचारधारा के पोषक होने के कारण इन विभूतियों को इतिहास में स्थान दिया ही नही या फिर दिया भी तो समुचित महत्व नही दिया। इन्ही विभूतियों में से सबसे बड़ा नाम जिस पर हर भारतीय को जिन का नाम आते ही अत्यधिक गर्व महसूस होता है, वह नाम है “सम्राट अशोक महान “का।
आपके पास जो भी भारतीय मुद्रा है चाहे वह रुपिया हो कागज के नोट के रूप में या धातु के सिक्के के रूप में हो उसमें तीन शेर का चिन्ह दिखाई देता है। वह तीन नही चार शेर है जो हर एक कोण से देखने पर तीन शेर ही दिखाई देते है, यह सम्राट अशोक महान के राज्य का प्रतीक चिन्ह है । सम्राट अशोक का चार शेर का प्रतीक का क्या अर्थ है?
सत्य, अहिंसा, बंधुत्व और न्याय के सिद्धांतों का द्योतक है। जो हमारे भारतीय संविधान की आत्मा, उसकी “प्रस्तावना” की मूल भावना है। वही सम्राट अशोक महान के चार शेर का गूढ़ रहस्य है।
हमारे देश का हर देशवासी हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के सम्मान की रक्षा के लिये अपने प्राणों का बलिदान कर देता है। क्यों?
क्या है इसके पीछे का प्रेरणा श्रोत?
क्या हमने कभी इस पर एक पल के लिये भी गंभीरता से सोचा है? इसका उत्तर शायद हाँ हो और शायद नही भी हो सकता है ।
जो लोग इस पर सोचते है वे जानते है कि तिरंगा पर हम अपने जान क्यो न्योछवार करने के लिये तैयार रहते है।यह भी सम्राट अशोक महान के राज्य चिन्ह “अशोक चक्र ” से ही प्रेरणा मिलती है जिसमे 24 धारियां होती हैं। यही वह प्रेरणाश्रोत है जो हमे राष्ट्रीय ध्वज के अपमान को एक पल के लिये भी बर्दास्त नही होने देता। हम हर युद्ध को इसी तिरंगा के सहारे जीतते है। हमे हमारा तिरंगा अपने प्राणों से भी प्यारा क्यो लगता है?
सम्राट अशोक महान का साम्राज्य काबुल से लेकर बर्मा देश तक फैला हुआ था तब हमारे पूर्वज गर्व से कहते थे हमारा एक शक्तिशाली देश है। सम्राट अशोक महान के कार्यकाल को ही “स्वर्ण युग ” कहा जाता था। तब देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसी कालखंड में विश्व प्रसिद्ध नालंदा और तक्षशिला जैसे कई विश्वविद्यालय थे जिनके कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था।
हमारे बहुजन आन्दोलन के महापुरुषों और नायक समय समय पर कहते आ रहे है कि हम सम्राट अशोक का भारत बनाना चाहते है।
राम राज की इच्छा भी यही से पूरी होगी।
वे ऐसा क्यो सोचते थे?
यह सपना पूरा होना तो दूर की बात है। आज भारत की जो स्थिति है उसमें हम भविष्य में कैसे जीवन यापन कर पायेंगे यह एक सोचनीय विषय है। कल के लिये घर मे राशन व् दाल चावल का इंतजाम कैसे हो पायेगा? इसकी चिन्ता करते हुए रात में सोते है और सुबह उसी चिन्ता को लेकर जागते है। जब हम रोजी रोटी की तलाश में निकलते है तो हमारे सामने निरर्थक सा धर्म और जाति का मुद्दा मुंह बाए खड़ा हो जाता है। अब सवाल सामने आता है कि अपने और अपने बाल बच्चों के पेट की चिंता बाद में करना पहले इन मुद्दों की चिन्ता करो। इस संकट से पहले उबारो। बस और क्या है अपने धर्म , जाति और स्वाभिमान के लिये हम सड़को पर उतर जाते है। प्रकृति में चींटी से लेकर हाथी तक हर एक प्राणी सबसे पहले अपने पेट की चिंता करता है। जिसको दूर करने के लिए वह दिन भर मेहनत करता है। जब पेट भर जाता है। तब वह दूसरे मुद्दों के बारे में सोचता है। आप पेड़ पौधों को देखते है जब उसको खाद पानी और हवा मिलता है तब वह मस्ती में झूमता है, लहराता है। क्या आप कभी मुरझाये, मरे हुये पेड़ पौधों को देखकर खुश होते है? आपको भूखा पेट मस्ती करने के लिये कहा जाये गाने, नाचने और झूमने के के लिए तो आप यह कर पाएंगे ? शायद नही ! इसलिये हमारे महापुरुष कबीर साहेब कहते थे कि भूखे पेट भजन न होई गोपाला , ले लो अपनी कंठी माला। इस दर्शन पर चिन्तन करके तो देखिए जब पेट भरा होगा तो हम प्रेम, बंधुत्व, न्याय और समानता की बात कर सकते है। हमारे देश को विश्व गुरु बनना है तो पहले हर पेट के लिए भोजन भोजन की ब्यवस्था करनी होगी, उसके लिए रोज़गार चाहिए , उसके साथ ही साथ तरक्की के लिए देश मे अमन चैन का वातावरण हो। जब चारों तरफ धर्म, जाति का विद्वेष , नफरत, घृणा, हिंसा फैली हो चारो तरफ हाहाकार मचा हो ऐसे वातावरण में यह आपको कहा जाये कि पढ़ाई कर लो, मस्ती में नाच गा लो तो क्या यह सम्भव हो पाएगा ?
एक षड्यंत्र के अन्तर्गत पिछली सरकारों नें जातियों के ठप्पे लगाकर भारतीय समाज को घृणा में बांट दिया। देश की हालात भी कुछ ऐसे ही बना दिए गए है और कहते है कि हमे देश को विश्व गुरु बनाना है। आरक्षण व अल्पसंख्यक के लोलीपॉप ने देश को घृणित समाज में बांट दिया। जब देश में गरीबी , भुखमरी , बेरोज़गारी , उत्पीड़न , मोब लॉन्चिंग , बलात्कार , हत्या , धार्मिक व जातीय भेदभाव , नफरत , हिंसा , घृणा , धार्मिक उन्माद , झूठ , फरेब , भ्रष्टाचार , लूट , धर्मान्धता और पाखंड से भरा जहरीला वातावरण ब्याप्त हो तो विश्व गुरु बनने का सपना भला कैसे पूरा होगा ?
एक क्रूर और हिंसक राजा अशोक ने जब आधी दुनिया को जीत लिया तो उसके बाद उसने कलिंग राज्य पर आक्रमण कर दिया, कलिंग को जीतकर जब वह वापस लौट रहा था तब उसने रास्ते मे युद्ध मे मारे गए लाखों लोगों के लाशों को देखा , हृदयविदारक दृश्य को देखकर उसका हृदय करुणा और आत्मग्लानि से भर गया। ये सोचकर उसका मन ब्याकुल हो गया कि मुझे लाखों लोगों को मार कर क्या मिला? उसे इस सत्य का एहसास हो गया कि किसी ब्यक्ति को शारीरिक रूप से जीतने की बजाय उसके दिल को जीतना अधिक श्रेयस्कर है। तब उसे अहिंसा की भावना की ताकत का बोध हुआ।
जो श्रीराम से प्रेरित विचार था। श्रीराम त्याग, तपस्या, संयम, मर्यादा, वचनबद्धता, राजनीतिज्ञ संकल्प, राज धर्म व परिवार प्रेम की पराकाष्ठा प्रस्तुत कर चुके थे। उसी प्रेरणा के वशीभूत होकर व्यथित हो गये।
तत्पश्चात सम्राट अशोक दया, करुणा, अहिंसा, और सत्य के सिद्धांतों से वशीभूत होकर तथागत बुद्ध के विचारों की शरण मे चले गये। तब कहीं जाकर वह महान कहलाये। जब वह सम्राट अशोक ” महान” बना तब देश को पुनः सोने की चिड़िया में बदल दिया’ , सम्राट अशोक महान ने ही इस अखण्ड भारत को पुन: विश्वगुरु बनाया था , उन्होंने नालंदा, तक्ष शिला जैसे विश्व प्रसिद्ध विश्व विद्यालय बनवाए जिसमे दुनिया के विद्यार्थी पढ़ने, शोध करने आते थे। विशाल अखंड भारत मे 84000 हज़ार स्तूप और बौद्ध विहार बनवाए जहाँ शैक्षणिक संस्थाएं संचालित होती थीं और बुद्ध के ज्ञान , दर्शन , विज्ञान व गणित की पढ़ाई होती थी। सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को अन्य देशों में भेजकर बुद्ध के धम्म , ज्ञान एवं संदेशों का प्रचार प्रसार करवाया। इससे स्पष्ट होता है कि
सत्य , अहिंसा , समता , बंधुत्व और शांति के मार्ग पर चलकर ही कोई देश विश्व गुरु बन सकता है।
इस पृथ्वी पर दो सभ्यताओं के बीच वर्चस्व व अस्तित्व की लड़ाइयां हज़ारों वर्षों से होती रही हैं , इस विडम्बना से हमारी सभ्यता भी अछूती नही रही। मुगल आक्रान्ताओं, आतताइयों द्वारा अपनी विचारधारा के विस्तार के लिए सुनियोजित तरीके से तक्षशिला , नालंदा आदि विश्विद्यालयों को जलाया गया। नरसंहार किया गया अशोक स्तंभ तोड़े गए। 84 हजार बौद्ध विहार तोड़ दिए गए। शिक्षण केंद्रों को तहस नहस कर दिया गया। कुछ बौद्ध विहार मस्जिद में बदल दिये गये। तोड़े गए एक अशोक स्तंभ को अंग्रेजो ने पुनः निर्माण कराया था। इतना विशाल था हमारे महानायक चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का ब्यक्तित्व और कृतित्व। काश हमारे देश के मुख्यधारा के इतिहासकारों ने तटस्थ होकर ईमानदारी से इतिहास लिखा होता तो इस अद्वितीय सम्राट अशोक महान की पूरी कहानी आज हर बच्चे की ज़ुबान पर होती। साथ ही साथ अन्य हमारे अन्य नायकों की प्रेरणादायक जीवनी भी इतिहास में असल रूप में आज दर्ज मिलती।
आज़ादी के 70 साल तक जब हमारा देश संघर्ष और मेहनत से सम्राट अशोक कालीन प्रतिष्ठा और समृद्धि को हासिल कर सकता था। बहुत आगे बढ़ सकता था लेकिन 70 वर्ष पहले ही देश पर सत्ता के एक भूखे भेडिये ने देश से छल करके जनता से सत्ता हथिया ली। उन ताकतों ने सम्राट अशोक महान की थाती को उनकी महान , भब्य व प्रगतिशील परम्परा और उनकी पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया।
अब किसी सरकार में ये विषैली जातिवाद की बेल काटने का साहस नही बचा।
वही विध्वंशकारी नीति, विचारधारा हमारे आज के भारत को तहस नहस करने में लगी हुई हैं।
इतिहास में क्रांति और प्रतिक्रांति चलती रहती है। कोई विनाश करता है तो कोई सृजन करता है। सकारात्मक और प्रगति शील सोच रखने वाले निर्माण करते है, विश्वविद्यालय बनाते है, ज्ञान विज्ञान के विकास के लिये प्रयोग शाला स्थापित करते है। तब हम चंद्रमा और मंगल ग्रह तक पहुँच पाते है जबकि नकारात्मक व अवैज्ञानिक सोच वाले हिंसा और विध्वंस पर विश्वास करते हैं । यह आप पर निर्भर करता है कि आप विकास को चुनते है या विध्वंस और विनाश को ?
छत्तीसगढ़ की धरती पर यहाँ सिरपुर में 25 सौ साल पहले सिरपुर में जो भव्य सभ्यता विकसित हुई। उसे सम्राट अशोक महान ने विकसित किया था। सिरपुर में विश्वविद्यालय के साथ ही साथ विश्व व्यापार के लिये बंदरगाह भी था जिसमे जलमार्ग से अन्य देशों जुड़े होने के कारण ब्यापार का बड़ा केंद्र था । लगभग 15 किलोमीटर में फैला हुआ था हमारे सिरपुर का विकसित नगर जो दक्षिण कोशल की राजधानी हुआ करता था।यहाँ सम्राट अशोक महान और तथागत बुद्ध का आगमन भी हुआ था।
आज समूचा विश्व कोरोना से लड़ रहा है ऐसी स्थिति में हो सके तो हम इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदीजी के आवाह्न पर एक आशा की दीप ज्योति रविवार 5 अप्रैल को रात्रि ठीक 9 बजे प्रकाशित करे।
श्री गुरुजी भू