कोरोना जनित ये शब्द हिंदी के ‘पंचशील’ होंगे या ‘ ‘पंचक’ ?

कोरोना जनित ये शब्द हिंदी के ‘पंचशील’ होंगे या ‘ ‘पंचक’ ?
अजय बोकिल
कोरोना से जारी वैश्विक युद्ध के दौरान ही कई लोग इस बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं कि उत्तर कोरोना ( पोस्ट कोरोना) दुनिया कैसी होगी? कोरोना हमे क्या देकर जाएगा? कोरोना हमसे क्या लेकर जाएगा? अगर यही सवाल भाषा के संदर्भ में करें तो कोरोना ने अभी तक हिंदी ( कुछ हद तक अन्य भारतीय भाषाअों को भी) पांच नए शब्द दिए हैं या फिर पुराने शब्द को ही नया अर्थ, तेवर और भाव दिए हैं। एक नए सामाजिक आचरण का आग्रह दिया है, जिसका दूरगामी परिणाम हमारी सामाजिक सोच और अभिव्यक्ति के तरीके पर भी होना अवश्यंभावी है। क्योंकि मीडिया के माध्यम से ये नए शब्द काफी हद तक प्रचलन में आ गए हैं। लोग इनकी अर्थव्याप्ति भी समझने लगे हैं। इसकी प्रतिछाया साहित्य में भी दिखने लगी है। आज जरा इन्हीं पंचाक्षरों पर एक नजर-
कोरोना: मूलत: लेटिन भाषा के ‘कोरोना’ से उद्भुत इस शब्द का अर्थ मुकुट (क्राउन) है। वायरस को यह नाम उसके आकार प्रकार को देखकर दिया गया था। दरअसल वायरस ऐसे अति सूक्ष्म जीव होते हैं, जिनमें कोशिकाएं नहीं होतीं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से बने होते हैं और प्राणियों के शरीर में पड़े रहते हैं। वैसे तो ये बेजान ही होते हैं, लेकिन प्राणी कोशिका के संपर्क में आते ही अपना रंग दिखाने लगते हैं। ये नुकसानदेह भी होते हैं और फायदेमंद भी। दुनिया में मनुष्यों में इस वायरस की खोज सबसे पहले महिला डाॅक्टर जून अलमेडा ने 1964 में लंदन के सेंट थाॅमस अस्पताल की लैब में की थी। जून अलमेडा ने ही इस वायरस को कोरोना वायरस नाम दिया, क्योंकि वह पूर्व में खोजे गए इनफ्लू एंजा वायरस से कुछ अलग दिखता था। मजे की बात यह है कि जून का पहला रिसर्च पेपर इस बिना पर खारिज कर दिया गया था कि उन्होंने इनफ्लूिएंजा वायरस की ही ‘खराब तस्वीरें’ पेश कर दी हैं। लेकिन बाद में जून के शोध को मान्यता मिली। वर्तमान खतरनाक कोविद 19 वायरस उसी कोरोना का करीबी रिश्तेदार है। भविष्य में हमारे यहां कोरोना शब्द का इस्तेमाल कैसे होगा, यह देखने की बात है। संभवत: इस शब्द का उपयोग एक अवांछित आतंक के संदर्भ में ज्यादा होगा।
लाॅक डाउन: हमारे देश में यह शब्द पहले औद्योगिक विवादों के संदर्भ में और ट्रेड यूनियन शब्दावली में ज्यादा इस्तेमाल होता रहा है। लिहाजा इसका हिंदी समानार्थी शब्द ‘तालाबंदी’ प्रचलन में था। लेकिन कोरोना के चलते अब ‘लाॅक डाउन’ बहुत व्यापक अर्थों में व्यवह्रत हो रहा है। मूलत: इस अंग्रेजी शब्द का अर्थ एक क्षेत्र विशेष को सुरक्षित करना है। इसके तहत क्षेत्र में स्थित सभी मकानो, इमारतों के दरवाजों पर ताला डाल दिया जाता है ताकि कोई गैर या अवांछित व्यक्ति न भीतर आ सके न बाहर जा सके। कम्प्यूटर जगत में भी यह शब्द प्रयुक्त होता रहा है। लेकिन एक संपूर्ण देश को लाॅक डाउन कर देना, भारत तो क्या संभवत: विश्व इतिहास में पहली बार हो रहा है। इससे संपूर्णलाॅक डाउन की स्थिति है, जिससे लाॅक डाउन के मायने और विस्तृत तथा ऐसी अति असाधारण स्थिति हो गए हैं, जो अभूतपूर्व है। यानी सब कुछ थम जाना।
क्वारेंटाइन: उच्चारण में कठिन- सा लगने वाला यह मूल रूप से इतालवी शब्द अब अंग्रेजी के मार्फत हिंदी में भी आ गया है। दरअसल क्वारेंटाइन (क्वारेंटींन) भी लाॅक डाउन का ही व्यक्तिगत पहलू है। यह किसी भी आपदा से बचने की एहतियाती स्थिति है। यह स्वैच्छिक भी हो सकती है और बलपूर्वक भी। उत्तर कोरोना समाज में यह शब्द शायद एक ‘अनिवार्य स्थिति’ भी हो सकती है।
सोशल डिस्टेंसिंग: इसके पहले दिलों की दूरी अथवा जातीय घृणा के कारण शारीरिक अस्पृश्यता का सामाजिक दुराग्रह इस देश में था। लेकिन ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ एकदम नया लेकिन अर्थवत्ता की दृष्टि से अपूर्ण शब्द है। वास्तव में यह किसी संभावित आपदा अथवा संक्रमण को रोकने के लिए दिया गया परामर्श है। शाब्दिक रूप से इसका अर्थ सामाजिक दूरी है, जो कि इसके मूल भाव से मेल नहीं खाता। इसकी जगह ‘फिजिकल ‍डिस्टेंसिंग’ होना चाहिए। यानी शारीरिक या जिस्मानी दूरी। लेकिन गलत होते हुए भी सोशल ‍िडस्टेंसिंग शब्द उस मनुष्य की दैनंदिन बोलचाल में आ गया है, जिसका मूल स्वभाव ही ‘सोशल’ होना है। सोशल ‍िडस्टेंसिंग का भी हिंदी समानार्थी खोजने की कोशिशें हुई हैं। एक सुझाव ‘सूतक’ शब्द का भी आया है।
मास्क: ग्रीक थियेटर और भारतीय लोक नृत्य परंपरा में इसका अर्थ मुखौटे से रहा है। हमारे यहां भी स्वांग रचने के लिए मुखौटे लगाए जाते रहे हैं। लेकिन कोरोना ने मास्क का वो अर्थ प्रचलित कर दिया है, जो अभी तक चिकित्सा जगत में ही प्रयुक्त होता रहा है। इसके अलावा भारत में श्वेतांबर जैन साधु और साध्वियां जीव हत्या से बचने के ‍िलए मुंह पर एक सफेद पट्टी लगाती आई हैं। जिसे मुंह पट्टी कहा जाता है। मास्क का हिंदी अनुवाद करने की कोशिश भी हुई है। कुछ ने इसे ‘मुख लंगोट’ अथवा ‘मुख पोश’ भी कहा है। लेकिन लगता है कि कोरोना के हल्ले में मास्क अब संक्रमण से बचने नाक और मुंह को ढंकने वाले मास्क के रूप में रूढ़ होगा।
दरअसल किसी भी भाषा को कोई नया अनुभव अपने ढंग से समृद्ध करता है। अनुभूति के स्तर पर और अभिव्यक्ति के स्तर पर भी। कोरोना आपदा होते हुए भी हमे नए किस्म के तजुर्बे से रूबरू करा रही है। ऐसा तजुर्बा जो एक आरोुपित एकांत है, जिसमें मनुष्य की मनुष्य से जबरिया दूरी है, जिसमें परस्पर अविश्वास को कानूनी मान्यता है, जिसमें रोकथाम ही आत्म रक्षा है और जिसमें शत्रु दिख तो रहा है, लेकिन उसे मारने का शर्तिया मंतर किसी के पास नहीं है। जब तक वह मंत्र सिद्ध नहीं हो जाता, पूरे वैश्विक समाज को इसी तरह अधर में और दूरियों में बंटकर जीना है। हिंदी में ये नए पांच शब्द आगे किस रूप में रूढ़ होंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। ‘पंचशील’ के रूप में अथवा ‘पंचक’ के रूप में? क्योंकि पंचशील का अर्थ बौद्धथ धर्म में सदाचार के पांच सिद्धांत हैं ताकि मनुष्य सदाचारी बनें। जबकि हिंदू धर्म में पंचक का अर्थ उन पांच अशुभ नक्षत्रों के मेल से है, जिनके विशेष योग को पंचक काल कहा जाता है। मान्यता है कि इस काल में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। फिलहाल तो इतना ही कहा जा सकता है कि यदि कोरोना के कारण के मनुष्य, मनुष्य में बढ़ी दूरी धीरे मिट सकी तो ये शब्द ‘पंचशील’ की तरह होंगे अन्यथा उनकी स्थिति उस ‘पंचक’ की तरह होगी, जिन्हें लोग याद नहीं करना चाहेंगे। कोरोना हमारी लोक स्मृति में कैसे पैठेगा, यह भी अभी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि पूरी दुनिया आज जिस दौर से गुजर रही है, वह महायुद्ध से भी भयावह है। लिहाजा कोरोना जनित शब्द पंचशील ही बनें तो बहुत बेहतर होगा। आप क्या सोचते हैं?

वरिष्ठ संपादक
‘राइट क्लिक’
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 17 अप्रैल 2020 को प्रकाशित)

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