रामायण या महाभारत में जो भी अस्त्र-शस्त्र या जो कुछ दिखाई गई है वह कोई भी कपोल कल्पित नहीं है।
हां कुछ लेखकों सीरियल बनाने वालों और अन्य फिल्म बनाने वालों ने अपने अपने काल और अपने अपने विचारों के अनुसार उनको फिल्मांकन किया। वो जो फिल्मांकन हुआ उसमें ऋषि लेखकों और वर्तमान लेखकों के बीच में कुछ अंतर अवश्य आया जिस को नजरअंदाज करना ही उचित होगा। इन लेखकों के कारण जो कुछ गलत संवाद या अन्य कोई कुरीति जैसे जातिवाद या जुए को बढ़ावा देने जैसी परिकल्पनाएं वह निरर्थक हैं। गलत है। उनका प्रस्तुतीकरण गलत है। उसका हमें खेद है।
मेरा मानना है कि जो विज्ञान यंत्र, मंत्र, तंत्र के रुप में त्रेता युग में था उतना उन्नत द्वापर युग में नहीं हो पाया। कलयुग में तो हम बहुत पीछे हैं। राम का रामायण काल और महाभारत काल में जो एक विशेष अंतर देखने को मिलता है वह कुछ बड़ा अंतर यह है कि रामायण काल में यंत्र, मंत्र, तंत्र विज्ञान पर अधिक जोर दिया गया। इन्हीं विज्ञान से ही अधिक शस्त्र बनाए जाते थे। तंत्र का प्रयोग भी भरपूर हुआ क्योंकि रामायण में मेघनाथ तंत्र विज्ञान के मास्टर थे। तांत्रिक थे। उस समय पर तंत्र विद्या का भी प्रयोग व तंत्र शस्त्रों का भी प्रयोग हुआ, लेकिन इन सभी विद्वानों में सबसे बड़े विद्वान जो कुंभकरण थे। वो रावण के भाई थे। उनका बहुत बड़ा योगदान है वह परमाणु वैज्ञानिक थे। परमाणु विज्ञान के उस समय पर हनुमान जी और कुंभकरण और श्री गणेश जी यह केवल मात्र तीन ही परमाणु वैज्ञानिक थे। वह बहुत बड़े वैज्ञानिक थे, लेकिन कुंभकरण अपने आपको परमाणुवाद में समाहित नहीं कर पाए। श्री गणेश और श्री हनुमान जी ने अपने आपको सृष्टि के परमाणु वाद में और एक सही दिशा में सेवा की भावना से उन्होंने समाहित किया। इसलिए वह दोनों आज भी प्रत्यक्ष देवता हैं। कुंभकरण देवता नहीं बन पाए राक्षस जाति में थे और बीच में ही उनका परमाणुवाद समाप्त हो गया क्योंकि उनको रावण के अहंकार ने मार डाला।
कुछ वैज्ञानिक मानव हवा में उड़ने की तकनीक जानते थे। ये हो सकता था और यह बात वर्तमान में तकनीकी ने सिद्ध किया है। आजकल ऐसा गैजेट बन रहे है जिसे आप पहन लेंगे तब आप जब चाहे बटन दबाते ही हवा में उड़ने लगेंगे।
पुष्पक विमान, ब्रह्मास्त्र यह भी कपोल कल्पित नहीं है। जिसे भी सनातन संस्कृति की पुराने जमाने की टेक्नोलॉजी के शक हो वह एक बार अजंता एलोरा की मंदिर और कंबोडिया के अंकोरवाट के मंदिर को देख ले।
अमेरिका के भी बड़े-बड़े आर्किटेक्ट और बड़ी-बड़ी कंपनियों ने कहा है आज के समय में भी हमारे पास ऐसी टेक्नोलॉजी नहीं है कि हम ऐसा भव्य निर्माण कार्य कर सकें।
अजंता, एलोरा के मंदिरों को एक विशाल पहाड़ को ऊपर से काटकर नीचे की तरफ बनाया गया है और आज भी पूरी दुनिया में ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नहीं है जो किसी विशाल पहाड़ को इस तरह से काटे कि उसमें मंदिर गलियारा मूर्ति चबूतरा नंदी बैल शिवलिंग खंभे इत्यादि बन सके।
हमें एक बार और अपनी सनातन संस्कृति पर गर्वित होना ही होगा। हमें समझना होगा और अपने बच्चों को भी यह शिक्षा देनी होगी। वर्तमान टेक्नोलॉजी से हमारी प्राचीन तकनीक को मिलाकर अगर हम एक बार अध्ययन कर लेंगे तो यह सब सामने आ जाएगा। वर्तमान तकनीक से आगे हम अति शीघ्र निकल जाएंगे। बस एक बार और हमें विश्वास करना होगा कि हमारी संस्कृति संपूर्ण वैज्ञानिक है।
सबसे आश्चर्य की बात यह कि अमेरिका के कई वैज्ञानिकों का एक रिसर्च में यह बताया गया है इन मंदिरों, गुफाओं, मूर्तियों को बनाने में कम से कम 20 लाख टन मलबा निकला होगा। वह मलबा कहीं तो फेंका गया होगा। लेकिन दूर दूर तक मलबा फेंकने के कोई चिन्ह नहीं है। आस पास कहीं तो उसके अवशेष मिलने चाहिए थे। जो नही मिले। (ये हिस्ट्री चैनल पर दिखाया गया था वह आप जरूर देखिएगा)
अर्थात यह मंदिर एक अलग टेक्नोलॉजी से बना है और दूसरी बात यह है कि उन्होंने इसी रिसर्च में यह भी साबित किया है यदि आज के टेक्नालॉजी के अनुसार भी यह मंदिर बनाया जाए तो कम से कम इसे बनाने में 100 साल लग जाएंगे। जाहिर सी बात है क्योंकि आज के जमाने में बहुत एडवांस टेक्नोलॉजी है तो यदि यह मंदिर पारंपरिक तरीके से बने होंगे तब उस जमाने में इसे बनाने में कम से कम 5000 साल लगे होंगे। जो संभव नहीं है और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने हिंदू धर्म का अध्ययन करके यह साबित किया कि जैसे आज के जमाने में जो प्लाज्मा कटर होता है। हो सकता है यह मशीन उस प्लाज्मा कटर से बनाई गई है।
सनातन संस्कृति में एक यंत्र का जिक्र आता है जिसे भस्माशस्त्र कहते हैं। भस्माशस्त्र यानी कि एक ऐसी प्लाज्मा कटर टेक्नोलॉजी जिसमें आप प्लाज्मा के द्वारा कोई भी स्ट्रक्चर बना देंगे। जो मलबा होगा वह प्लाज्मा की गर्मी से भाप बनकर उड़ जाएगा। यह पूरी बात अमेरिका के वैज्ञानिकों के रिसर्च से सिद्ध हुई है।
ऐसे ही अंकोरवाट के मंदिर को आज के जमाने में भी दुनिया की कोई कंपनी नहीं बना सकती। मिकोंग नदी के विशाल दलदल को पाट कर इतना विशाल चबूतरा बनाना और जिन पत्थरों से वह मंदिर बना है वह पत्थर वहां से 1500 किलोमीटर दूर चीन में मिलते हैं वहां से पत्थरों को लाकर बिना सीमेंट के कट एंड फिक्स मेथड के द्वारा जोड़कर इतना विशाल मंदिर बनाना यह आज ही संभव नहीं है।
हमें गर्व है अपने सनातन संस्कृति पर, अपने सनातन धर्म के विज्ञान पर जो आज भी विश्व का कल्याण कर रहा है। जो आज विश्व के वैज्ञानिक कल्पना कर रहे है वह हमारे सनातन संस्कृति में पहले विद्यमान था। जो हमारे ऋषियों, मुनियों के शोध व अनुसंधान से धर्म में पहले उपलब्ध था। जिसका प्रमाण आज है। और ऐसी टेक्नोलॉजी अभी भी विश्व के पास भी नहीं है
हमें गर्व है कि हम विश्वगुरु सनातन संस्कृति में जन्में हैं।
आज एक छोटे से विषाणु ने विश्व सभ्यताओं को मानव के अहंकार की क्षमताओं का ज्ञान करा दिया है।
श्री गुरुजी भू
(लेखक: भारतीय संस्कृति के शोधार्थी, मुस्कान योग के प्रणेता, विश्व चिंतक, विश्व मित्र परिवार के संस्थापक, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक है।)