रक्त से जुड़ा जेनेटिक रोग है थैलेसीमिया

विश्व थैलेसीमिया दिवस: जागरूकता से दें थैलेसीमिया को मात

रक्त से जुड़ा जेनेटिक रोग है थैलेसीमिया

खून जांच से ही हो सकती है इसकी पहचान

 

लखीसराय, 7 मई

 

थैलेसीमिया एक जैनेटिक रोग है, जो बच्चों को माता-पिता से मिलता है। यह रोग होने से शरीर में हीमोग्लोबीन बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। अगर सही तरीके से इसका इलाज नहीं हो तो बच्चे की मौत भी हो सकती है। सदर अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रूपा का कहना है कि माता-पिता के जागरूक होने से थैलेसीमिया से बचा जा सकता है। गर्भधारण के वक्त ही जांच कराने से इससे बचाव हो सकता है।  थैलिसिमिया के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 8 मई को विश्व थैलिसिमिया दिवस मनाया जाता है. इस वर्ष वर्ल्ड थैलेसीमिया डे 2020 का थीम ‘थैलिसीमिया के लिए नए युग की शुरुआत: रोगियों के लिए नवीन चिकित्सा सुलभ और सस्ती बनाने के वैश्विक प्रयासों के लिए समय’’ है।

 

डॉ. रूपा ने बताया थैलेसीमिया अनुवांशिक रोग है। इस बीमारी में लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक एक प्रोटीन नहीं बनता है। ये लाल रक्त कोशिकाएं शरीर की सभी कोशिकाओं तक आॅक्सीजन ले जाने का काम करती हैं। खून में पर्याप्त स्वस्थ्य लाल रक्त कोशिकाएं नहीं होने के कारण शरीर के अन्य सभी हिस्सों में पर्याप्त ऑक्सीजन भी नहीं पहुंच पाता है। इससे पीड़ित बहुत जल्द थक जाता है। उसे सांस की कमी महसूस होती है।

 

दो तरह का होता है थैलेसीमिया:

डॉ. रूपा बताती है कि थैलेसीमिया दो तरह का होता है, माइनर व मेजर। इनके हीमोग्लोबिन का स्तर 10 एमजी रहता है, इन्हें ब्लड चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। ध्यान रहे अगर माता-पिता दोनों माइनर थैलेसीमिया से पीडि़त हैं तो बच्चे के मेजर थैलेसीमिया हो सकता है।

 

जानिए क्या होते हैं लक्षण:

खून की कमी

शरीर पीला पडऩा

भूख न लगना

थकान महसूस होना, चिड़चिड़ापन

शारीरिक विकास न होना

चेहरा सूखा लगना

सांस लेने में तकलीफ

 

 

सालाना 10 हजार थैलिसीमिया ग्रस्त बच्चे लेते हैं जन्म: 

केयर इंडिया के मातृ स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद ने बताया थैलेसीमिया एक गंभीर रोग है जो वंशानुगत बीमारियों की सूची में शामिल है. इससे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है जो हीमोग्लोबिन के दोनों चेन (अल्फा और बीटा) के कम बनने के कारण होता है. अभी भारत में लगभग 1 लाख थैलेसीमिया मेजर के मरीज है और प्रत्येक वर्ष लगभग 10000 थैलिसीमिया से ग्रस्त बच्चे का जन्म होता है। बिहार की बात करें तो लगभग 2000 थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त मरीज है जो नियमित ब्लड ट्रांसफयूजन पर है। जिन्हे ऊचित समय पर ऊचित खून न मिलने एवं ब्लड ट्रांसफयूजन से शरीर में होने वाले आयरन ओवरलोड से परेशानी रहती है और इस बीमारी के निदान के लिए होने वाले बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के महंगे होने के कारण इसका लाभ नहीं ऊठा पाते हैं। इसलिए खून संबंधित किसी भी तरह की समस्या पति, पत्नी या रिश्तेदार में कहीं हो तो सावधानी के तौर पर शिशु जन्म के पहले थैलेसीमिया की जांच जरूर करायें।

 

शादी से पहले दंपति अपने खून की जांच अवश्य करायें: 

ज़्यादातर लोगों को पता नहीं होता है कि उन्हें थैलेसीमिया है। चूंकि थैलेसीमिया अनुवांशिक रोग है इसलिए शादी से पहले दंपतियों को एक बार रक्त की जांच करा लेना बेहद जरूरी है। यदि पति या पत्नी दोनों में से किसी को भी थैलेसीमिया है तो डॉक्टर से बात कर परिवार बढ़ाने की योजना की जानी चाहिए। इससे बच्चों में यह बीमारी होने की संभावना कम हो जाती है।

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