विश्व मित्र परिवार के वृक्षारोपण महाभियान में वृक्ष अवश्य लगायें – गुरुजी भू

 

वृक्षारोपण महाभियान में कौन से वृक्ष लगायें ?

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पर्यावरण प्रदूषण से आजकल जन सामान्य अत्यधिक चिन्तित है। प्रदूषण रोकने हेतु शासन, प्रशासन स्तर से तथा सामाजिक स्तरों से निरन्तर प्रयास हो रहे हैं। विश्व मित्र परिवार सहित देश विदेश की विभिन्न सामाजिक संस्था, संगठन, विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन करके बड़े स्तर पर वृक्षारोपण कर रहे हैं। इन वृक्षारोपण आयोजन में यदि हम सोच समझकर वृक्ष लगायें तो समाज का अत्यधिक लाभ होगा है। कोई भी वृक्ष हानिकारक नहीं है, परन्तु कुछ वृक्षों से तुलनात्मक अधिक लाभ पहुँचता है। वृक्ष हमें शुुद्ध वायु, फल, फूल, काष्ठ, इंधन, चारा, छाया तो देते ही हैं परन्तु साथ ही साथ कई कुटीर व लघु उद्योगों को कच्चा माल भी उपलब्ध कराते हैं, जैसे मधु, चटनी, अचार, मुरब्बा, औषधि इत्यादि। अनेकों उद्योग इस प्रकार के हैं जिनसे जन सामान्य बड़े पैमाने पर लाभान्वित होता है। वृक्ष से मिलने वाला लाभ हम रूपयों में नहीं माप सकते। यदि एक वृक्ष से निकलने वाली आक्सीजन की कीमत को ही आंकें तो यह करोड़ों रूपयों में आयेगी। वृक्ष मनुष्यों व जीवों के लिए बहुउपयोगी होते हैं इसलिए मनुस्मृति तथा वेदों में वन व वृक्षों को बहुत अधिक महत्व दिया गया है तथा इनके द्वारा प्रदत्त लाभों को देखते हुए इन वृ़क्षों को देवता तक का दर्जा प्रदान कर पूज्यनीय बनाया गया है। वृक्ष हमेशा कुछ न कुछ देते हैं, लेते नहीं हैं। वृक्ष भूमि क्षरण, कटाव तो रोकते ही हैं साथ ही साथ भूमि को मरूस्थल बनने से भी रोकते हैं। भूमि को उपजाऊ भी वृक्ष ही बनाते हैं। प्रत्येक वृक्ष का विशेष महत्व होता है परन्तु कुछ वृक्ष ऐसे हैं जो भारतीय मूल के हैं तथा भारतीय जन तथा जलवायु के लिए विशेष महत्व रखते हैं। वे वृक्ष भारतीय भूमि व जलवायु में भली प्रकार पनपते हैं तथा जीव जन्तुओं को फल, फूल के साथ साथ आश्रय भी प्रदान करते हैं।

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सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत आम, आँवला, जामुन, बेल, कैंध, लसोड़ा, शहतूत, इमली, खिरनी, महुआ, नीम, पीपल, बरगद, गुलर आदि वृक्षों को यदि रोपित किया जाय तो वृक्ष भारतीय वातावरण के लिए अधिक उपयोगी हो सकते हैं। कुछ वृक्षों के महत्त्व का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है:-
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नीम (अजाउरिचटा इण्डिका): इस बहुउपयोगी वृक्ष पर अमेरिका की नजर है तथा वह इस पर किसी न किसी पेटेण्ट अधिनियम को लागू कर भारत के अधिकार को छीनना चाहता है। नीम के वृक्ष के सभी अंग उपयोगी हैं। इससे कीटनाशी गुण के साथ इसके तेल से अनेकों औषधियों का निर्माण होता है। इसके फलों से तेल निकाला जाता है तथा खली का उपयोग उवर्रक के रूप में होता है। इसकी लकड़ी फर्नीचर बनाने के काम आती है। पहाड़ी क्षेत्रों को छोडकर सम्पूर्ण भारत में इसे लगाया जा सकता है। यही वृक्ष शीघ्र बढ़ता है। नीम वृक्ष का पौधा वर्षा ऋतु में किसी भी स्थान पर आसानी से रोपा जा सकता हैं इसके फल पक्षियों को बहुत पसन्द हैं तथा औषधीय उपयोगिता रखते हैं।
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बेल (एगिल भारमलस): इस धार्मिक वृक्ष का औषधीय महत्त्व भी कम नही है। सहिष्णु शुष्क व अर्धशुष्क प्रदेशों में यह वृक्ष बहुत पल्लवित होता है। रेलवे लाइन, नहरों के किनारे, अनुपयोगी जमीनों में लगाने हेतु यह एक महत्वपूर्ण फल वृक्ष है। मुरब्बा, शीतल शर्बत, बेलगिरी (इसबवेल) आदि औषधीय महत्व के उत्पादन इसके फलों से होते हैं यह फल पौषक तत्वों से भरपूर है। वर्षा ऋतु में बेल के पौधे रोपे जा सकते हैं।
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आँवला (फाइलेन्थस इम्बिलका): इसके फलों में विटामिन सी की सर्वाधिक अधिकता पायी जाती है। अधिक ऊंचाई और जलमग्न क्षेत्रों को छोडक़र सभी शुष्क स्थानों में यह वृक्ष रोपा जा सकता है। नहरों के किनारों, रेलवे लाइन, अनुपयोगी व हल्की ऊसर, सडकों के किनारे आँवला लगाया जा सकता है। आँवले के वृक्ष की पूजा भी की जाती है। छोटे फलों से लेकर आखिरी तुड़ाई तक इसके फल बेहद उपयोगी होते हैं। इसके सूखे फलों में भी भरपूर विटामिन सी पाया जाता है। च्यवनप्राश त्रिफला, केशनिखारने के शैम्पू, तेल आदि में इसकी उपयोगिता है। पौषक तत्वों से भरपूर, औषधीय महत्त्व का जलाऊ व इमारती लकड़ी देने वाला यह वृक्ष आसानी से वर्षा ऋतु मेें रोपा जा सकता है।
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आम (मैंगीफेरा इण्डिका): यह फलों में राजा कहलाने का मान रखने वाला फल वृक्ष है। ज्यादा ऊंचाई तथा जलमग्न क्षेत्र को छोडक़र सभी स्थानों पर वर्षा ऋतु में रोपा जा सकता है। नहरों के किनारे, रेलवे लाइनों व सडक़ों के सहारे इस वृक्ष को लगाया जा सकता है। इसके फल कच्चे से लेकर पकने तक उपयोग में आते हैं। अचार, चटनी, मुरब्बा, आमचूर, आम पापड़ आदि उद्योगों के लिए कच्चा माल इसी वृक्ष से प्राप्त होता है। इसमें पौषक तत्वों के साथ-साथ औषधीय गुण भी हैं। इसकी लकड़ी फर्नीचर बनाने के साथ-साथ जलाने के काम भी आती है।
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जामुन (सिजीजियम क्यूमिनाई): यह भी एक फल वृक्ष है तथा इसके फल व फल की गुठलियां मधुमेह रोगियों के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हैं। औषधीय महत्व व पोषक गुणों से भरपूर यह वृक्ष जलमग्न व नम भूमियों में भी रोपा जा सकता है। यह पर्वतों को छोड़ कर सम्पूर्ण भारत में लगाया जा सकता है। इसकी लकड़ी से फर्नीचर बनाया जाता है तथा लकड़ी जलाने के काम भी आती हैं। यह सडक़ों, रेल लाइन, नहरों के किनारे तथा नम स्थानों पर वर्षा ऋतु में रोपा जा सकता है।
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कैंथ (लिमोनिया एसीडीसीमा): नींबू के परिवार का यह वृक्ष विटामिन सी से भरपूर है तथा स्वाभाविक रूप से शुष्क स्थानों व जंगलों में उगने वाला यह वृक्ष बुन्देलखण्ड व मध्य भारत के क्षेत्रों में अधिक लोकप्रिय है। इसके फल, अचार, चटनी, जैम, जैली आदि बनाने में उपयोगी होते हैं। साधारण लोगों को सहज प्राप्य यह फल वृक्ष वर्षा ऋतु में रोपा जा सकता है। जंगली क्षेत्रों में अधिक लगाये जाने वाले इस वृक्ष की लकड़ी जलाने में काम में लायी जाती है।
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लसोड़ा (कार्डिया भिखसा): यह दो प्रकार का होता है। छोटे फलों वाला व बड़े फलों वाला। यह वृक्ष बडे पत्तों वाला होता हैं। यह बृज प्रदेश में होने वाला शुष्क क्षेत्रीय फल वृक्ष है। यह फल वृक्ष वर्षा ऋतु में रेगिस्तान व शुष्क भूमियों में रोपा जा सकता है। इसका अचार सम्पूर्ण देश में अन्य अचारों के साथ अकेला या मिक्स रूप से बेचा जाता हैै। इसकी लकड़ी जलाऊ होती है।
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इमली (इम्बिलका आफीसिनेलिस): यह सम्पूर्ण भारत में वर्षा ऋतु में रोपा जाने वाला लम्बी आयु का विशाल फल वृक्ष होता है। मध्य भारत के जंगलों में यह स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। इसकी लकड़ी जलाऊ होती है तथा इसके फल चटनी, मुरब्बा बनाने के काम आते हैं। सूखे फल का उपयोग चाट वगैरा बनाने में होता है।
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खिरनी (मोनेलकारा हैक्जेण्ड्रा): छोटे छोटे फल देने वाला यह वृक्ष दीर्घजीवी होता है तथा शुष्क क्षेत्रों में आसानी से रोपा जा सकता हैै। राजस्थान, मध्य भारत, गुजरात आदि अपेक्षाकृत शुष्क क्षेत्रों में लगने वाले इस वृक्ष की देख रेख भी कम करनी पड़ती है तथा यह धीरे बढऩे वाला विशाल वृक्ष है। छाया भी अधिक देता है।
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महुआ (मधूका इण्डिका): यह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बुन्देलखण्ड, मध्यभारत में वर्षा ऋतु में रोपा जाने वाला फल वृक्ष हैं। इसके सूखे फल खाने में स्वादिष्ट व पौष्टिक होते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में आम जनता में महुआ अधिक लोकप्रिय वृक्ष है। इसके फलों से तेल साबुन व औषधियां बनायी जाती हैं। जंगलों में स्वाभाविक रूप से यह पाया जाता है। इसकी लकड़ी का फर्नीचर बनाया जाता है तथा लकड़ी जलाने के काम लायी जाती हैै।

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