ईश्वर का संविधान

*भारतीय संविधान और ईश्वर का संविधान*
एक भारत का संविधान है जिसे संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने स्वयं दो बार जलाने की बात कही है। हमारा संविधान मकड़ी के उस झाले के समान है जिसमें छोटे कीट पतंगे तो फंस जाते हैं परंतु बड़े जानवर इसे ही तोड़ देते हैं।अतः इस संविधान में फैसले तो हो सकते हैं परंतु न्याय नही होता।यहाँ अपराधी भी बच सकता है और निर्दोष भी फंस सकता है।
*परंतु इस संविधान से ऊपर उस सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, सर्वोपरि ईश्वर का संविधान है जिसका उलंघन कोई जीव कर ही नही सकता।* उसके न्यायालय में किसी गवाह की आवश्यकता नही पड़ती क्योंकि वह सर्वज्ञ होने के कारण सबकुछ जानता है। उसके न्यायालय में किसी वकील की आवश्यकता नही होती क्योंकि वह सर्वव्यापक है। उसके न्यायालय में रिश्वत नही चलती क्योंकि वह निरपक्ष और निस्वार्थी है।
*अतः वह सर्वशक्तिमान ईश्वर पूरा पूरा न्याय ही करता है।* वह अपराध करने वालों की सहायता करने वालों को भी कठोर दण्ड देता है। उसकी व्यवस्था भी ऐसी है कि संसार में प्रतिदिन लाखों लोग आते हैं और जाते हैं। अरबों खरबों की सम्पत्तियां यहां भरी पड़ी हैं फिर भी एक तिल्ली यहां से कोई ले नही जा सकता।
बड़ा दुख होता है जब कोई इस धन सम्पत्ति के लिये पाप कर बैठता है और ईश्वर के दण्ड का भागी बनता है।
बड़ा दुख होता है जब कोई *अधिवक्ता/ पिता / माता/पति/ पत्नी/ बच्चे/ भाई/ बहन/ मित्र/ साथी* किसी को पाप करने से नही रोकते हैं बल्कि उसका सहयोग करके ईश्वर के दण्ड के भागी बनते हैं।
अतः आइए जानते हैं ईश्वर और ईश्वर के संविधान को गुरुकुल के आचार्यों से दो दिवसीय सत्रों के माध्यम से।
*आर्य विजय पाल सिंह अध्यक्ष आर्य निर्मात्री सभा उत्तराखंड* 9410395336

SHARE