मकर संक्रांति पर बौद्धिक स्नान – पार्थसारथि थपलियाल

 

मकर संक्रांति के अवसर पर गुरुवार, 14 जनवरी को देशभर में विभिन्न तीर्थों, पुण्य क्षेत्रों, पवित्र नदियों और सरोवरों में लोगों ने पुण्यस्नान किया, उत्तरायण के सूर्य को अर्घ्यदान कर प्रणाम किया, दान- दक्षिणा भी दी गई। भारतीय जीवन में पर्वों पर दान देने की एक परंपरा है। इस तरह गरीबों और जरूरत मंदों को दान देने के पीछे पुण्य अर्जन का भाव भी रहता है।
ज्योतिषियों की भाषा मे कहें तो बारह राशियों में यात्रा करते हुए सूर्य भगवान जब धनु राशि से मकर राशि मे आते हैं तो वह संधिकाल, पुण्यकाल माना जाता है। पर्व का प्रभाव पूरे दिन रहता है। इस अवसर पर देवप्रयाग से लेकर गंगासागर तक गंगा तट पर जितने भी तीर्थ हैं वहां पर लोग आस्था की डुबकी लगाने जरूर जाते हैं। यह माना जाता है कि राजा भगीरथ के प्रयास से पवित्र गंगा इसी दिन धरती पर उतरी थी। अतः यह पर्व कई कोणों से महत्वपूर्ण बन जाता है।
इस अवसर पर विश्व मित्र परिवार द्वारा बौद्धिक विमर्श के पुण्यस्नान के लिए “मकर संक्रान्ति- पुण्य पर्व से लोकोत्सव तक” का ऑन लाइन संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी में – फलोदी (राजस्थान) से त्रिकालस्वामी, ज्योतिषगुरु और कथा वाचक व्यास शिविर कुमार बोहरा, धार (मध्यप्रदेश) से ओज के कवि शरद जोशी “शलभ”, दिल्ली से भारतीय संस्कृति के संपोषक, गुरुजी भू त्यागी, लखनऊ से सैलानी, भूपेश पांडे और लेखिका, प्रेमा पांडे, नोएडा से संस्कृति चिंतक एवं रेडियो ब्रॉडकास्टर पार्थसारथि थपलियाल, कोटा (राजस्थान) से आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. रघुनन्दन शर्मा, रायपुर (छत्तीसगढ़) से डॉ. संगीता ठाकुर, फरीदाबाद (हरियाणा) से विद्या चौहान और नागपुर (महाराष्ट्र) से रति चौबे आमंत्रित थे।
संगोष्ठी का आरंभ शरद जोशी “शलभ” द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। ज्योतिषगुरु शिविर कुमार बोहरा ने बताया कि प्राचीन काल मे सौरवर्ष की काल गणना इसी पर्व से आरंभ होती थी। इस दिन का महत्व गंगा अवतरण के साथ भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि बाद में प्रतापी राजा विक्रमादित्य के वंशजों ने चैत्र प्रतिपदा विक्रमादित्य के राज्यारोहण से विक्रम संवत चलाया। उन्होंने सूर्य के धनु राशि से मकर राशि मे आने के सांस्कृतिक महत्व, गंगा स्नान और दान की महत्ता पर सविस्तार अपने ज्ञान को रखा। गुरुजी भू त्यागी ने भारतीय सनातन परंपरा में पुण्यस्नानों को हमारे प्राचीन ऋषियों की उस सोच का प्रतिफल बताया जिस कारण आज सांस्कृतिक रूप से भारत एक सूत्र में बंधा हुआ है। उन्होंने इस दिन खिचड़ी बनाने और दान देने के पक्ष को भी उजागर किया।
पार्थसारथि थपलियाल ने कार्यक्रम के संचालन करते हुए इस बात पर चर्चा की कि भारत की अनेकता में एकता के प्रतीक यह पर्व भारत के अधिकतर भागों में मकरसंक्रांति के नाम से मनाया जाता है जबकि पंजाब में एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है और देश के अन्य भागों में जैसे कश्मीर में शिशुर सेंकरात,, पंजाब और हरियाणा में माघी उत्त्तराखंड के गढ़वाल में मकरैणी और कुमाऊं में उत्तरेणी, गुजरात मे उत्तरायणी, कर्नाटक में मकर संक्रमण, केरल में ओणम, तमिलनाडु में ताई पोंगल, उड़ीसा में मकर चौला, असम में भोगली विहु बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। डॉ. रघुनंदन शर्मा ने खिचड़ी खाने के महत्व, तिल के लड्डू-पापड़ी के खाने पर अपना आयुर्वेदिक दृष्टिकोण रखा और ऋतु चर्या के अंतर्गत भक्ष्य अभक्ष्य पदार्थों की चर्चा की। विद्या चौहान ने माहिया सुनाकर कार्यक्रम को उत्सवी बना दिया। भूपेश पांडे जिन्हें तीर्थों की यात्रा का अच्छा अनुभव है उन्होंने अपने संस्मरणों के माध्यम से तीर्थों का पुण्यस्नान कराया। उत्त्तराखंड कि सुप्रसिद्ध लेखिका प्रेमा पांडे ने कुमाऊं में उत्तरेणी के दिन स्थानीय घुघतिया के कई पक्षों पर अपनी बात रखी। इस अवसर को और खुशनुमा बनाया भगवती पंत ने जिन्होंने एक कुमाउनी गीत सुनाया। इस प्रकार विश्व मित्र परिवार द्वारा आयोजित यह गोष्ठी अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंची। पार्थसारथि थपलियाल ने सभी प्रतिभागियों के धन्यवाद व्यक्त किया। इस संगोष्ठी का सजीव प्रसारण तरंग न्यूज़ चैनल पर किया गया।

इस तरह मकर संक्रांति पर बौद्धिक स्नान किया ।
पार्थसारथि थपलियाल

 

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