गाय मानव जीवन का आधार
श्री गुरुजी भू
गाय मानव जीवन का आधार:
*ईश्वर का वरदान है गाय, अर्थात प्रकृति की अद्भुत कृति है कामधेनु:*
*कामधेनु उत्पत्ति:*
आदिकाल में एक बार समुद्र मंथन किया गया था। वैसे तो पृथ्वी को भी समुद्र कहते हैं, क्योंकि समुद्र पृथ्वी पर ही है। पुरानी कहानी है एक कथा है कि एक बार देवता और राक्षस अर्थात अच्छी प्रवृत्ति के लोग और दुष्ट प्रवृत्ति के लोग आपस में लड़ रहे थे। निरंतर लड़ते ही जा रहे थे। तो ईश्वर ने ईश्वरीय ऊजा ने, ब्रम्हांडीय ऊर्जा ने, ईश्वरीय शक्ति का रूप धारण करके उन दोनों को समझाने का प्रयास किया कि आप आपस में लड़ना छोड़ो। जिन लक्ष्यों के लिए, जिन उद्देश्यों के लिए, जिन बातों पर आप लड़ रहे हो यह पृथ्वी उससे भी सुंदर है। आपका जीवन उससे भी अधिक मूल्यवान है। आप सबसे अधिक धनवान है। बहुत सी चीजें इस वसुन्धरा पर है। आप उन्हें खोजो, शोध करो, अनुसंधान करो, मन्थन करो अर्थात समुद्र मंथन करो। पृथ्वी के जल व जंगलों का मंथन करो। समस्त पृथ्वी लोक पर खोजो कि कहां क्या मानवता के लिए उपयोगी है। मानव के लिए उपयोगी है। जीवन के लिए उपयोगी है। मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। शिक्षा के लिए उपयोगी है। मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए हम क्या करें ? क्या सोचे ? क्या क्या हमारी आवश्यकता है? वह सब इस पृथ्वी पर खोजने मात्र से मिल जाएगी जब ऐसा प्रावधान हुआ दोनों पक्ष मान गए तब प्रारंभ हुआ सागर मंथन समुद्र मंथन अर्थात पृथ्वी पर वस्तुओं की खोज करो। जीवो की खोज, शोध करो उपयोगी जीवो पर। शोध, अनुसन्धान, खोज करो, तब यह विवादित ऊर्जा जो आज आप आपस में लड़ने में लग रही थी वह पृथ्वी पर शोध और अनुसंधान कार्य में लग गई। जैसा कि आज भी हम देखते हैं कि धार्मिक उन्माद में युवा भटक जाते हैं। किसी भी निरर्थक आंदोलन में युवा भटक कर चले जाते हैं। युवाओं की ऊर्जा का सदुपयोग होना चाहिए। ना कि दुरुपयोग इसलिए उस समय पर, उस काल में भी इस विषय पर चर्चा हुई। देवता तो आसानी से मान गए। लेकिन राक्षस बड़ी कठिनाई से माने। वह ऊर्जा समुद्र मंथन के लिए लगाई गई जब अच्छी और बुरी दोनों शक्तियां किसी शोध और अनुसंधान में लगती है तब कोई ना कोई समाधान या शुभ शोध और अनुसंधान का सार्थक पहलू , सकारात्मक परिणाम सामने आता ही है। क्योंकि दोनों ऊर्जा उस कार्य में लगी और उस उर्जा के सदुपयोग का परिणाम ही उस सागर मंथन का परिणाम हुआ। उन्होंने इस पृथ्वी पर समुंद्र मंथन से उस समय 14 रत्नों की खोज की। उन 14 रत्नों में एक है कामधेनु, धेनु विभिन्न नामों से जानी गयी गाय। कामधेनु की भी हमारे देश में बहुत सारी प्रजातियां हैं। कुछ प्रजाति तो बहुत अच्छी मानी जाती है, जैसे गिर गाय है, साहिवाल आदि कई नस्लें हमारे देश में मिलती है। कुल मिलाकर 46 नस्लें हमारे भारत में है।
यह बात हुई गो उत्पत्ति की। गाय को कैसे खोजा गया। गाय कैसे मिली? गाय के बारे में किस तरीके की सोच है? हमारे भारतीय शास्त्रों में क्या लिखा है। इस बारे में बात करना भी अत्यंत आवश्यक है। शास्त्र कहते हैं कि गाय सागर मंथन अर्थात समुद्र मंथन से प्राप्त हुई। यह सच है कि मंथन तो हुआ। मंथन का अर्थ है शोध अनुसंधान आविष्कार, तो गाय का अविष्कार तो नहीं हुआ लेकिन शोध हुआ खोज हुई और पृथ्वी पर एक ऐसा प्राणी मिला जिसको हम गाय कहते हैं। गऊ कहते हैं, गौ माता कहते हैं, उस प्राणी में बहुत से गुण थे औषधीय गुण थे और आज भी है। बहुत से खाद्य पदार्थ दूध, दही, मक्खन इस तरह की चीजें से आज भी हमें प्राप्त होती हैं। गोबर से खाद बनती है। गोमूत्र से औषधियां बनती हैं। यह शोध 1 दिन में नहीं हुआ। अगर कोई यह मानता है कि सागर मंथन 1 दिन में हो गया या कुछ महीनों में होगया होगा या कुछ वर्षों में हो गया होगा तो यह उसकी गलत धारणा है। यह सागर मंथन वर्षों वर्ष चला। सैकड़ों वर्ष चला, हजारों वर्ष चला तब जाकर परिणाम आये। आज तक भी चल रहा है। आज हम उसी स्थिति में है कि गो मंथन करके, गो चिंतन करके गाय के ऊपर कार्य करके आज हम गोबर से कपड़ा बना रहे हैं। गोमूत्र से विभिन्न तरह की औषधियां बना रहे हैं। गाय के घी से हम बहुत सारी स्वस्थ्य वर्धक खाद्य पदार्थ भी बना रहे है। आज गोबर से पेंट बनाया जा रहा है, जो की दीवारों को रंगने में, सौन्दर्य बढ़ाने में काम आता है। पहले यह गोबर हमारी कच्ची दीवारों को लीपने के काम आता था। कच्चे घरों को नीचे से जमीन को फर्श को लीपने के काम आता था। आज वही गोबार दीवारों पर पेंट के रूप में काम आ रहा है। गोबर से कपड़ा बनाने की तैयारियां चल रही है। गोबर से खाद तो बनती ही है लेकिन अब गोबर से और भी विभिन्न दवाइयों में उसको प्रयोग किया जाने की तैयारियां चल रही है। स्थिति यह है कि आज गाय हमारे जीवन का बहुमूल्य अंग जो हमारे शास्त्रों में लिखा था वह सिद्ध हो रही है।
कभी-कभी मैं सोचता हूं कि सागर मंथन का उद्देश्य क्या रहा होगा? तो मेरे चिंतन में आता है कि सागर मंथन उस उर्जा का सदुपयोग करने के लिए सुझाया गया एक मंत्र था जिस ऊर्जा का केवल विवाद में और लड़ाई में दुरुपयोग हो रहा था। सागर मंथन इसलिए आवश्यक था क्योंकि देवताओ एवं राक्षसों व मनुष्य ने कुछ हत्यार तो प्राप्त कर लिए थे। मनुष्य ने अपने पास विद्या और बुद्धि का भंडार तो करना शुरू कर दिया था लेकिन उसका सदुपयोग ना करना उसका शोध और अनुसंधान पर सदुपयोग न करके लड़ाई, झगड़ा व मारकाट करने लगे थे। शोध और अनुसंधान मानव के चिंतन से बाहर होने लगा था। हम सब सोचते हैं कि उस समय के ऋषि मुनि और जो भी उस समय महान लोग थे उन्होंने किस तरीके से कहानियों के माध्यम से इस बात को वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाया? यह भी एक अद्भुत कार्य है और कुछ अद्भुत कार्य में जो वस्तुएं खोजी गई, जिन चीजों का उसमें विवरण है उन सब में गाय सर्वोपरि मानी गई है। अर्थात कामधेनु , धेनु , गौ माता, गौ, गाय, सुरभि इस तरीके से बहुत सारे नामों से यह जानी जाती है। हम यह देख पाते हैं कि गाय अपने आप में ईश्वर का साक्षात वरदान है। मानव के लिए और कृषि क्रांति के लिए भी गाय वरदान सिद्ध हुई है। हमारे स्वास्थ्य हेतु हमारे खाद्य पदार्थ में, हमारे भोजन के लिए अत्यंत आवश्यक पोषक तत्व देने वाली गाय संपूर्ण शाकाहारी होती है। ऐसे शाकाहारी जीव से जो भी हमें प्राप्त होता है वह हमारे शरीर के लिए अत्यंत ही लाभदायक है। औषधीय गुणों से भरपूर है तभी इसको हमारे ऋषि, मुनि, मनस्वी, तपस्वियों ने एक मात्र ऐसे जीव को माता कहकर पुकारा था। क्योंकि मां के बाद अगर कोई पोषक तत्वों से भरपूर दूध पिलाती है तो वह है गाय। अगर कोई प्राणी बहुत ही अच्छा शुद्ध प्राकृतिक तरीके से हमें बहुत से पदार्थ, खाद्य पदार्थ देती है और संपूर्ण आहार के रूप में देती है वह है गाय। इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने गाय को बहुत ही महत्व दिया। उसको मानव की माता के रूप में प्रस्तुत किया। अर्थात एक जन्म देने वाली मां और एक पालन करने वाली मां। गाय हमारी पालन करने वाली माँ है।
जनसाधारण की भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है गौ विज्ञान
आज इस गाय को बचाने का संकट है। इसका एक मात्रा उपाय गौ पालन ही है। गमरी पालन हारी है। इसलिए गाय को माता के रूप में पूछना हमारे शास्त्रों में लिखा गया है। हमारे ऋषि-मुनियों ने निरंतर यह प्रयास किया कि जो भी अच्छी बातें हैं जो भी अच्छे लक्षण है उनको बहुत ही सहज आसान भाषा में सही तरीके से समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाने के लिए कुछ कथा कहानियां लिख दी जाए जिससे कि समाज को प्रेरणा मिले। प्रेरित होकर समाज अच्छे कार्य करें। उसी में से कुछ कहानियां इस विषय पर भी लिखी गई है। कहानियां वैज्ञानिक आधार पर लिखी जाती थी। भारतीय संस्कृति का एकमात्र मूल मंत्र है विज्ञान। उस विज्ञान पर आधारित जो चीज खरी उतरती थी उसे घ समाज को देते थे। हमारे ऋषि मुनि मनस्वी तपस्वी सभी शोध अनुसंधान करते थे। विभिन्न विषयों पर शोध व अनुसंधान करते थे। विज्ञान के आधार पर जो भी चीज खरी उतरती उसके गुण दोष वह शास्त्र में लिखते थे। वैज्ञानिक विवरण साधारण भाषा में देते थे। कथा कहानियों के माध्यम से जनसाधारण को समझाने का भरपूर प्रयास करते थे। शास्त्र अर्थात शोधपत्र, विज्ञानं की पुस्तक फिर वही संविधान की तरह काम करता था। लोग स्वेच्छा से निसंकोच उसका पालन करते थे। उस समय का जनसाधारण जनमानस समझता भी था आज विज्ञान अत्यधिक उन्नति कर गया है। गाय बचेगी तो हमारी अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी।
जनमानस में शोध और अनुसंधान का अभाव, ऊर्जा का सदुपयोग हो
लेकिन जनमानस में आज भी शोध और अनुसंधान का अभाव है जब तक जनमानस शोध और अनुसंधान पर कार्य नहीं करेगा तब तक मानवीय मूल्यों का ह्रास होता ही रहेगा। मानवीय ऊर्जा निरर्थक आंदोलनों में, धार्मिक उन्माद में, जातीय उन्माद में या किसी अन्य उन्माद में निरर्थक होती रहेगी। उस उर्जा का सदुपयोग होना अत्यंत ही आवश्यक है अन्यथा ऊर्जा का दुरुपयोग होना सुनिश्चित हो जाता है|
तो इस मंथन का हमारे ऋषि-मुनियों का मुख्य उद्देश्य यह रहा होगा कि हम अपने देवों व राक्षसों की ऊर्जा का सदुपयोग करें, तो उन्होंने देवगन और से और राक्षस गणों से यह निवेदन किया कि आप ऊर्जा का सदुपयोग करें। ऊर्जा का सदुपयोग करके आप सबको धन की प्राप्ति होगी रत्नों की प्राप्ति होगी और आप संपन्न हो जाएंगे आपको विवाद भी नहीं करना पड़ेगा आपस में लड़ना भी नहीं पड़ेगा क्योंकि मैं मानता हूं लड़ने की प्रवृत्ति हमें ब्रह्मांड ऊर्जा से मिलती तो है क्योंकि ब्रह्मांड में यह जिसको हम लड़ाई समझते हैं यह ब्रह्मांड का एक खेल है। यह खेल ब्रह्मांड के चारों ओर चलता ही रहता है। इस ब्रह्माण्ड में करोड़ों चाँद, तारे, सितारे, सूर्य जैसे लाखों सूर्य करोड़ों सूर्य है। इस ब्रह्मांड में हमारे सौरमंडल जैसे अनगिनत सौरमंडल इस आकाश में है तो यह सब उस उर्जा का ही परिणाम है। विखंडन खंडन यह सब उस ऊर्जा का खेल है जिसके कारण यह संचालित होता है। इसी खेल से समस्त ब्रह्मांड विस्तार रूप धारण करता है। इसी खेल से समस्त ब्रह्मांड में ऊर्जा का संचार होता है। इसी खेल से समस्त ब्रह्मांड एक दूसरे से बंधा रहता है और उस उर्जा का सदुपयोग होता रहता है। ब्रह्मांड का बनना, बिगड़ना ग्रहों का बनाना, बिगड़ना, चलना, दौड़ना, धूमिल हो जाना धूल में चलना, वर्षा में परिवर्तित होना, आकाशीय पिंड बन जाना, अग्नि बन जाना, अग्नि के इस तरीके की क्रिया प्रतिक्रिया पूरे ब्रह्मांड में कोने कोने में कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ अवश्य होता रहता है। उस क्रिया प्रतिक्रिया के लिए यह समझना आवश्यक है कि हम पूरे तरीके से समझदारी से यह समझे कि उस उर्जा का सदुपयोग कैसे करना है। हमारे ऋषि-मुनियों का उद्देश्य यही था कि इस ऊर्जा का सदुपयोग कर दिया जाए जो यह आपस में लड़ने में लगा रहे हैं इतनी लंबी वार्ता का उद्देश्य यही है कि आपको यह बात ठीक से समझ में आ जाए।
अब थोड़ा और आगे बढ़ते हैं कृषि क्रांति की जननी गाय अर्थात जो कृषि आज हम देख रहे हैं यह कृषि जब हमने प्रारंभ की तो पहले हमने गाय से प्रारंभ की अर्थात सबसे पहले हमने गाय को समझा हमारी संस्कृति का गाय हिस्सा बनी गाय का दूध पीकर काम चलाना हमारे पूर्वजों ने सीख लिया था उससे पहले राक्षस गण गाय व अन्य जीवो को मारकर खा जाते थे खाने का काम शुरू किया और उसके बाद जब हमारे ऋषि-मुनियों ने उन से निवेदन किया कि शोध करिए अनुसंधान करिए इसके दूध पीकर आप पूरा जीवन बिता सकते हैं और यह आपके जीवन में संजीवनी बनेगी तो गाय पर शोध व अनुसंधान हुआ गाय का दूध पिया जाने लगा गाय के बछड़े पाले जाने लगे अब गाय का दूध पीना तो यह लोग सीख गए उस से दही बनाना भी शायद सीख गए थे और दूध दही से ही यह दुकान चला रहे थे लेकिन तदुपरांत घी बनाने का मक्खन बनाने की कला हमारे समाज में विकसित हुई और जब यह मक्खन बनाने की कला विकसित हुई तो मक्खन का स्वाद और मक्खन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभप्रद था है आज भी है तब पता चला कि गाय कितनी उपयोगी है उसको मार कर काट कर खा जाना तो गोरी मूर्खता थी तो समाज में जागृति आई गो क्रांति की जननी गाय कैसे बनी यह समझना अत्यंत आवश्यक है जब गाय का दूध दही और मक्खन तक समाज पहुंच गया हमारे ऋषि-मुनियों शोध करने में आगे बढ़ गए तब एक और आगे कांति बड़ी कि हम खेती में गाय के बछड़े को भी प्रयोग करने लगे क्योंकि गाय तो दूध देती थी लेकिन बछड़ा किसी काम का नहीं था तब उन बछड़ों को प्रशिक्षित किया गया प्रशिक्षण दिया गया और उनको हल के द्वारा खेती करने में प्रयोग किया जाने लगा गाड़ी में जोता जाने लगा बैलगाड़ी बनाई गई और उनको गाड़ी के द्वारा चौथा जाने लगा और गाड़ियों में सामान की लेना-देना नहीं पहुंचाना यह सब कार्य शुरू हुआ और यह कृषि के लिए अत्यंत ही लाभप्रद सिद्ध हुआ लाभदायक सिद्ध हुआ और कृषि में एक नई क्रांति आ गई रिसर्च करने वाले मनन करने वाले नित्य प्रति समाज को कुछ नया देने वाले हमारे जो ऋषि मुनि थे उन्होंने इस क्रांति में अपना भरपूर सहयोग दिया वह ज्ञात है अनजान है आज उनके नाम को कोई जानता नहीं है किसके नाम पर कौन सा शोध और अनुसंधान रजिस्टर्ड है पंजीकृत है कॉपीराइट है पेटेंट है ऐसा कुछ भी नहीं है क्योंकि हमारे ऋषि मुनि किसी लालच मैं आकर कार्य नहीं करते थे वह समाज के कल्याण के लिए निरंतर कार्य करते थे बिना किसी लालच के बिना किसी नाम के बहुत से ऋषि मुनि तो अपने गुरुओं के नाम से ही पुस्तके लिखते रहे शास्त्र लिखते रहे बहुत से लोगों ने अपने नाम से लिखी अब प्रश्न यह आता है कि जब को कृषि क्रांति हो गई गाय हमारे बहु उपयोगी कायर तक गोवंश पूरा गोवंश गाय भी बछिया भी बछड़ा भी हमारे हुए तरीके से पूरा परिवार हमारे पूरे परिवार के लिए काम आने लगा फिर गौ हत्या क्यों अब एक और प्रश्न उठता है कि जब उनकी उपयोगिता संपूर्ण उपयोगिता हमें पता चल गई हमारे ऋषि-मुनियों ने शोध अनुसंधान कर के अविष्कार करके हमें बता दिया की गाय हमारे लिए कितनी उपयोगी है तो फिर हमने गाय को काटना खाना बंद क्यों नहीं किया हमारे समाज में यह बंद हो जाना चाहिए था क्योंकि यह केवल धर्म से जुड़ी हुई आस्था से जुड़ी हुई बात नहीं है यह है मानव से जुड़ी हुई मानवीय मूल्यों से जुड़ी हुई मानवीय स्वास्थ्य से जुड़ी हुई और मानव के संपूर्ण कल्याण से जुड़ी हुई बात इसलिए गौ हत्या का बंद होना अत्यंत आवश्यक है आवश्यकता और आवश्यक रहेगा जब तक गाय काटी जाएगी तब तक समाज में शांति स्थापित नहीं हो पाएगी|
बहु उपयोगी मूल्यवान स्वास्थ्य वर्धक गाय गाय बहुत योगी है, क्योंकि गाय के दूध से, दही से, घी से और अब तो पनीर भी बनने लगा है। पनीर के अलावा गोमूत्र और गोबर से भी उस दिए प्रयोग किए जाते हैं। जीवन को स्वस्थ रखने हेतु इन सब चीजों की आवश्यकता है। जब मानव के लिए औषधि की आवश्यकता होती है तो आयुर्वेद में अधिकतर औषधियों में गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है। औषधि की शुद्धि के लिए, औषधि के प्रारंभिक शुद्धि के लिए औषधि में के कीटाणु नाश करने के लिए गोमूत्र में डूबाना या गोमूत्र का किसी भी तरीके से प्रयोग किया जाना औषधि की गुणवत्ता को बढ़ाता है। यह गाय के मूत्र से अर्थात गोमूत्र से ही संभव है। अन्य किसी पशु का या मानव का भी मूत्र इस योग्यता में नहीं है। इसलिए गोमूत्र का, गोबर का महत्व बढ़ जाता है। जब गोमूत्र और गोबर का महत्व बढ़ जाता है तो गाय का महत्व स्वतः ही बढ़ जाता है। गाय हमारी माता है इसलिए ही कहा जाता है।
गाय के बारे में अर्थात गाय के घर में अर्थात गाय जहां रहती है उसी स्थान पर ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है उसी स्थान पर रोगाणुओं की कीटाणुओं की क्षमता समाप्त हो जाती है रो गानों की तनु नहीं रह पाते हैं क्योंकि गोबर और गोमूत्र उनको गानों को कीटाणुओं को दूर-दूर तक भी टिकने नहीं देता उसकी गंद जो होती है उससे रोगाणु और कीटाणु जो भी रोग को बढ़ाने वाले तंत्र हैं वह सब भाग जाते हैं और गाय के दूध में भी जो रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है उससे अधिक होती है गोमूत्र में भी रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है और बहुत सारे लवण एवं खनिज पदार्थ भी होते हैं इसलिए कुछ लोग गोमूत्र का सेवन करते हैं नित्य प्रति और उससे वह स्वस्थ रहते हैं यहां तक परिणाम आए हैं देखने में आया है जो शोध और अनुसंधान के परिणाम आए हैं कि कैंसर तक के रोगी गोमूत्र से ठीक हो गए हैं और यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है|
इस तरह के प्रयोग हमारे गोपालक घोषाल आएं वैद्य प्राकृतिक चिकित्सक जितने भी भारतीय संस्कृति की भारतीय विधाओं पर भारतीय विद्या ऊपर वैज्ञानिक विधाओं पर वैज्ञानिक संस्कृति की वैज्ञानिक विधाओं पर काम करने वाले लोग हैं गुस्सा भी इन चमत्कारिक गुणों से प्रभावित हुए हैं और इन पर नित्य प्रति शोध अनुसंधान और आविष्कार की प्रक्रियाओं में लगे हुए हैं।
गाय में सूर्यकेतु नाड़ी होने के कारण गाय का दूध सुनहरा होता है। सूर्य की आभा लिये कुछ पीलेपन पर होता है। उसमें विशेष तरह के खनिज और लवण होते हैं। इसलिए गाय के दूध को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। भैंस के दूध के मुकाबले गाय का दूध बहुत ही लाभप्रद होता है। गाय का दूध हल्का होता है। पाचक होता है और शरीर में पौष्टिक तत्वों की पूर्ति करता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। बच्चों को कुशाग्र बुद्धि बनाता है। उनके मन और मस्तिष्क का ठीक से विकास करने में सक्षम है।
एक और वैज्ञानिक शोध सामने आया कि जितने भी लोग डिप्रेशन के शिकार है या मनोरोगी हैं या उनके मन को शांत नहीं किया जा रहा है। उनका चित शांत नहीं है मन भारी रहता है। भटका रहता है, उथल पुथल रहती है। हलचल रहती है। शरीर के अंदर कोई भी बेचैनी बनी रहती हो। ऐसे में गाय की पीठ को जिसे उसका पुठ्ठा बोलते हैं, उसको टाट भी बोलते हैं। उसको सहलाने से 15 से 20 मिनट आधा घंटा गाय की पीठ को सहलाएं वहां से एक ऐसी ऊर्जा निकलती है जिस ऊर्जा से डिप्रेशन के लक्षण समाप्त हो जाते हैं। अवसाद समाप्त हो जाता है। 15 से 20 दिन में रोगी अपने आप को स्वस्थ महसूस करने लगेंगे। आभास हो जाएगा कि मैं स्वस्थ हो रहा हूं। मुझे कुछ नहीं है और मैं इस मानवीय धरोहर का मानवीय शरीर का बहुत ही अच्छा उपयोग कर सकता हूं। अवसाद, डिप्रेशन एक ऐसी चीज है जिससे कि व्यक्ति को अंदर ही अंदर से डर लगता है। अपने विचारों में डूबने लगता है। एक दिन वह आत्महत्या तक करने के लिए बाध्य हो जाता है। क्योंकि उसका मनोबल से टूट गया होता है। उसका मनोबल बहुत ही कमजोर हो गया होता है। उस मनोबल को बढ़ाने में यह गाय वाला प्रयोग जितने भी लोगों ने किया अधिकतम परिणाम सकारात्मक आए हैं। लोग ठीक हुए हैं और अभी भी ठीक हो रहे हैं कोई दवाई खाने की इसमें आवश्यकता नहीं है क्योंकि नींद की गोली के सिवा इसका कोई उपचार है भी नहीं। इसलिए आपका कुछ बिगड़ेगा नहीं कोई पैसा नहीं लगेगा इसमें डिप्रेशन का अर्थात अवसाद का मनोबल को बढ़ाने का बहुत ही अच्छा उपाय है। गाय की टाट को, गाय के पुट्ठे को, गाय की पीठ को सहलाना इससे बड़ा उपचार अभी तक कोई नहीं है। यह उपचार भी है, यह उपाय भी है, उपाय अर्थात आपके मन को शांत करने का उपाय। उपाय अर्थात शास्त्रीय उपाय। उपाय उपचार और उपाय दोनों इसके अंतर निहित है, समाहित है और यह बहुत ही लाभप्रद सिद्ध हुआ है।
गौ अर्थव्यवस्था
अब हम बात करेंगे आर्थिक महत्व की गाय का आर्थिक महत्व आखिर है क्या? गाय हमारी अर्थव्यवस्था में क्या भूमिका निभा सकती है और क्या निभा रही है? यह समझना अत्यंत ही आवश्यक है। भारतीय अर्थव्यवस्था में गाय की एक बहुत बड़ी भूमिका है। हो सकती है और आगे भी रहेगी क्योंकि एक कृषि प्रधान देश में गाय की अत्यंत आवश्यकता होती है। गाय के बछड़े बैलगाड़ी और हल के लिए प्रयोग किए जाते थे। जो स्थान आजकल ट्रैक्टर ने ले लिया है लेकिन ट्रैक्टर खर्चीला है। गाय के बछड़े कम खर्चे में हैं। गाय अर्थात गौकृषी से खाद्य पदार्थों में पौष्टिकता की गारंटी है सुनिश्चित करते हैं। पौष्टिकता क्योंकि बछड़े रहेंगे गोवंश रहेगा तो गोबर होगा गोमूत्र होगा और उस गोबर गोमूत्र से हमारे खेतों में जो फसलें लहलहाएंगी वह शुद्ध होंगी। केमिकल मुक्त होंगी, रसायन मुक्त होगी और हमारे बच्चे उन फसलों के उत्पाद को खाकर स्वस्थ रहेंगे। हमारा देश स्वस्थ बनेगा और जब देश स्वस्थ होगा तो अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। स्वास्थ्य का रहना इसलिए आवश्यक है एक तो व्यक्ति की कार्य क्षमता बढ़ जाती है। दूसरा जो स्वास्थ्य पर खर्चा होता है वह बचता है। शारीरिक कष्ट भी नहीं होता। इसलिए अगर आपको अपने घर की जीडीपी अच्छी रखनी है, अपने बच्चों को कुशाग्र बुद्धि बनाना है, अपने घर की अर्थव्यवस्था अच्छी रखनी है और हर व्यक्ति को अपने को स्वस्थ भी रखना हो, स्वास्थ्य के साथ-साथ अपने बजट को भी ठीक करना हो, अपने गांव की, देश की अर्थव्यवस्था ठीक रखनी हो तो एक गाय पाल लीजिए। उससे आपके घर में बहुत सारी परेशानियों का समाधान स्वयं ही हो जाएगा। 1 से अधिक गाय पाल लेंगे तो और भी अच्छा नगरों में यह संभव नहीं है। गांव में हमें गाय अवश्य पालनी चाहिए क्योंकि नगरों में हमारे पास स्थान कम है। लोगों के हृदय भी छोटे होते चले जा रहे हैं और घरों में भी स्थान कम होता चला जा रहा है। स्वस्थ रहना है तो गांव ही अति उत्तम है श्रेष्ठ है, श्रेयस्कर है। सत्य तो यह है कि हम गाय नहीं पालते, वरन गाय हमें पालती है। गाय हमारी अर्थव्यवस्था को ठीक करती है। गाय हमारे स्वास्थ्य को ठीक करती है। इसलिए हम गाय पालकर गाय पर उपकार नहीं कर रहे हैं वरन गाय का, गौ माता का हम पर उपकार है कि हम उसके सहारे स्वस्थ रह सकें, हम उसके सहारे ठीक रह सकें और हमारी अर्थव्यवस्था भी ठीक हो सके।
जब हमारे घर की अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी तो हमारे गांव की अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी। जब गांव की अर्थव्यवस्था ठीक होने लगेगी तो आसपास के क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था भी ठीक होगी। उसी तरीके से सबकी अर्थव्यवस्थ ठीक होने लगेगी। यह गांव, क्षेत्र, ब्लॉक, तहसील, जनपद, राज्य मिलकर ही तो देश बनता है। तो जब यह सब अपने आप में समृद्ध हो जाएंगे तो राष्ट्र स्वत: ही समृद्ध हो जाएगा, आत्मनिर्भर हो जाएगा। यह अर्थव्यवस्था भी पटरी पर आ जाएगी। यह अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनाना अत्यंत ही आवश्यक है। इसे पटरी पर लाने का उपाय गौ पालन ही है। क्योंकि जितने भी कार्य वर्तमान में हो रहे हैं वह विकास कार्य हैं और उनमें विकास के पीछे विनाश भी छिपा है। अगर वनों की कटाई होती है, अगर वृक्षों की कटाई होती है तो प्राणवायु की कमी पड़ना स्वाभाविक है। अभी हमारे देश में प्रति व्यक्ति केवल 28 वृक्ष है। हमारे देश में प्रदूषण की स्थिति प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। इसलिए अगर प्रदूषण कम करना है तो वृक्षारोपण के साथ-साथ गोपालन भी करना होगा। स्वस्थ रहना है तो भी गोपालन करना होगा। अगर आप अपने बच्चों को और अपने अपनों को स्वस्थ रखना चाहते हैं, सुरक्षित रखना चाहते हैं तो गोपालन अत्यंत ही आवश्यक है। गोकृषि करनी होगी। ऋषि कृषि करनी होगी। वैदिक कृषि के सूत्र अपनाने पड़ेंगे। वैदिक कृषि को, जैविक कृषि कुछ भी शुद्ध करने के लिए चलेंगे तो वहां गाय की निरंतर आवश्यकता पड़ेगी ही। बिना गाय के, बिना गोबर के, बिना गोमूत्र के, बिना बछड़ों के जैविक खेती करना संभव नहीं है। इसलिए मानव का पहला काम है कि वह शुद्ध जल, शुद्ध वायु और शुद्ध आहार अपनाएं। अपने जीवन को सुखी, समृद्ध व स्वस्थ बनाएं।
यह सब गाय के बिना संभव नहीं है। गाय की उपयोगिता इस लेख से समझ आ जाती है कि हमारे लिए गाय कितनी उपयोगी है। उसका उपयोग हम किस किस तरीके से कर सकते हैं। अभी और भी बहुत सी बातें हैं वैज्ञानिक तथ्य व आधार हैं, वैज्ञानिक शोध के परिणाम हैं। वह सब हम जो कि हम अगले लेख में बताएंगे।
गुरुजी भू
(लेखक: वरिष्ठ पत्रकार, आध्यात्मिक/ ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के शोधार्थी, टीवी चैनल के पूर्व प्रमुख संस्थापक, प्रकृति प्रेमी, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक है )