जातिवाद भारत का कोढ़ है। अब जातियों का कोई अर्थ नहीं, बदल चुकी है जातियों की परिभाषा – श्री गुरूजी भू 

आज जातिवाद भारत का कोढ़ है। अब जातियों का कोई अर्थ नहीं। बदल चुकी है जाति की परिभाषा – श्री गुरूजी भू

हम भारतीय स्वयं अपनी दुर्गति के लिए उत्तरदायी है।

 कभी भारत में सबके पास कच्चा या पक्का घर अवश्य होता था। अब देश में बेघर लोगो की संख्या अत्यधिक बढ़ गयी है। भारत में जातिवाद नहीं उद्योगवाद था जिन्हे उनके काम के नाम से पुकारा जाता था।
21 राज्यों में जावेद हबीब के 300 शानदार एयरकंडीशन सैलून खुल गये, और असली नाई दलित OBC बन के नौकरी के लिए धक्के खा रहा है।
26 राज्यो सहित 30 देशों में चमड़े के जूते और चप्पलों का कारोबार करने वाली 600 करोड़ की कंपनी मेट्रो शूज के मालिक फराह मलिक अरबपति बन गए।
देश विदेश में चमड़ों और जूते चप्पलों का कारोबार करके मिर्जा ट्रेनर्स में मालिक मिर्जा बन्धु अरबपति हो गए।

बहुत बडे षडयंत्र के अन्तर्गत भारतीय सांस्कृतिक वैज्ञानिक उद्यमिता को मिटाया: 

भारतीय उद्योगों के एकछत्र राजा कभी चर्मवंशी, चर्मकार का एकाधिकार वाले चमड़े, जूते, चप्पलें, और चमड़े से अन्य कई सामान बनाने वाले उद्योगपति थे। जिन्हे कच्चे मॉल के कोई पैसे नहीं देने पड़ते थे। आज किसी भी उद्योग में कच्चा मॉल निशुल्क नहीं मिलता। ऐसे ही नाई की दुकान आदि जो थे वो वामपंथीयो, फर्जी मुस्लिमों व अम्बेडकरवादियो के षड़यंत्र के कारण असली उद्यमियों की कला उनके हाथ से निकलकर कब में षडयंत्रकारियों के हाथ मे चली गयी पता भी नहीं चला।
एक समय खादिम शूज वाले बर्मन परिवार ने इनको अच्छी टक्कर दी थी लेकिन आफताब अंसारी ने उनका अपहरण कर लिया, करोड़ो की फिरौती वसूली गयी फिर उन्होंने दशकों तक विस्तार नही किया, अब कर रहे है जब इस मार्केट में एकाधिकार हो चुका है।
ये काम वोट लुटेरो ने, तथाकथित नेताओं, बैंक माफिया और उसके पैसों से पैदा किए हुए नमाजवादियों व दलितवादी नेताओं ने भारत के असली उद्यमियों चर्मकार, लुहार, कुम्हकार, माली,  नाई आदि के मन में विष घोलते हुये उनसे कहा कि ब्राह्मण जनसंख्या में इतने कम हैं, पर सबसे अधिक सत्ता के मजे यही ले रहे हैं, तुमको सदियों सदियों तक नाई बनाकर रखना चाहते हैं – मत करो ये काम। बच्चों को तो पढ़ाओ लिखाओ, सरकारी नौकरी दिलवाओ, और सुनो, जाति प्रमाण पत्र अवश्य बनवा लेना। अपनी जाति मत छोडना लेकिन जिस काम के कारण ये वैज्ञानिक सांस्कृतिक जाति की पहचान है उस काम को छोड दो। सरकार तुमको OBC में जोड़ देगी, आरक्षण दे देगी, मौज करो, इन ब्राह्मणों पण्डितों के चक्कर में मत फँसो। ये विष भोले भले लोगो पर काम कर गया। वोट लुटेरों को वोट तो मिली लेकिन नौकरी नहीं मिली। सरकार किसी की भी आजाये सबको सरकारी नौकरी नहीं दे सकती।
हिन्दू नाई ने सोचा – आरक्षण मिलेगा, सरकारी नौकरी मिलेगी, इसलिए दुकान बंद कर दी, शहर चला गया। अपना बड़ा सा घर छोड़ा, किराए पर एक कमरे में गुजारा किया, बच्चों को गली के अंग्रेजी स्कूल में डाला, जब बच्चे जॉनी जॉनी यस पापा गाते थे, हिन्दू नाई सोचता था, बच्चे कम से कम IAS तो कर ही जाएँगे।
उसने एक फैक्ट्री में 7 – 8000 में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली, जब जब तथाकथित नेताओं ने बुलाया, धरने प्रदर्शन आंदोलन में गया भी, सरकारी नौकरी कितने नाईयों लुहारों बढ़ईयों धोबियों को मिल सकेगी, बेटे बेरोजगार घूमने लगे तो घर में झगड़ा बढ़ने लगा। जो भी हो, 20 साल बीत गए, बच्चे अब भी बेरोजगार थे।
नाई से रात को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी होती नहीं थी, नींद लग जाती थी, नौकरी छूट गयी, नाई वापस गाँव लौट आया, उसने फिर से अपनी बाल काटने की दुकान खोलनी चाही, पास के कस्बे में जाकर देखा, जहाँ 20 साल पहले 2 सैलून थे, वो भी  नाईयों के, अब उसी कस्बे में 50 सैलून खुल चुके थे और सारे के सारे सैलून गैर नाईयों के थे।
 नाई ने रोजगार छोड़ा तो गैर नाई ने उस व्ययसाय/बाजार पर कब्ज़ा कर लिया।
 बढ़ई ने अपना काम छोड़ा तो गैर बढई ने उस व्ययसाय/बाजार पर कब्ज़ा कर लिया।
लुहार ने अपना काम छोड़ा  तो गैर लुहार ने उस व्ययसाय/बाजार पर कब्ज़ा कर तरह तरह के यन्त्र व वेल्डिंग आदि की दुकानें खोल कर पूरा बाजार कब्ज़ा लिया।
धोबी ने सरकारी नौकरी के चक्कर में कपड़े धोने छोड़े, गाँव के घर घर से परिचय टूटा, नाते टूटे  तो गैर धोबी ने उस व्ययसाय/बाजार पर कब्ज़ा कर लिया।  ड्राईक्लीन और जीन्स की रंगाई में छा गए।
 चर्मकार उद्यमी ने जूते बनाने छोड़ दिए, तो आज अरबों रुपए का चमड़े माँस, चर्बी, हड्डी और सारा का सारा जूता बाजार मुस्लिमों के कब्जे में है।

आरक्षण का लॉलीपॉप:

वोट लुटेरें आरक्षणवादी लोग भारत को विशेषकर हिन्दुओं को सामान्य, OBC और SC/ST में बाँट कर उनके पेट पर लात मार रहे हैं| आरक्षण का लॉलीपॉप किसी के काम आने वाला नहीं है। हमें आत्मनिर्भर अपने काम से ही बानना होगा।
आरक्षण और सरकारी नौकरी के लालच में कितने लोगों को रोजगार मिला, करोड़ों युवा मैकाले सिस्टम में फंसकर एक कागज का टुकड़ा जिसे डिग्री कहते है लेकर सड़क पर मारा मारा घूम रहे हैं।
हम भारतियों के पारंपरिक रोजगार इतने बुरे थे क्या? जिसमे अधिकतर कच्चा माल नि:शुल्क मिलता था। तैयार मॉल के दाम मिलते थे। ऐसी व्यवस्था क्यों तोड़ी इसका उत्तर किसी के पास नहीं है।
ये वामपंथियों व तथाकथित बुद्धिजीवियों का कमाल है।
भारतीयों आंखें खोलें सत्य को पहचानें  विश्वगुरु भारत आज इतना कमजोर क्यों मन जा रहा है।
याद रखें ! न तो आप दलित है, न SC, ST, OBC और न ही सामान्य आप केवल और केवल भारतीय हैं।
जय भारत से जय जगत। 
आओ चले प्रकृति की ओर
विचारक
श्री गुरुजी भू
मुस्कान योग के प्रणेता,
प्रकृति प्रेमी, विश्व चिंतक,
बहुविध-बहुआयामी शोधार्थी
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