महायोद्धा मल्हारराव होल्करजी की जयंती पर कोटि कोटि नमन

महायोद्धा मल्हारराव होल्करजी की जयंती पर कोटि कोटि नमन

निजाम को घुटने के बल बिठा कर दुर्रानी को ध्वस्त किया फिर भगवा फहरा दिया था मालवा से पंजाब तक।

इतिहास के पन्नो में भुलाया गया एक नाम भारत के इतिहास के परम पराक्रमी राजवंशों में से एक होल्कर राजवंश की स्थापना करने वाले मराठा शासक मल्हार राव होल्कर का शासन मालवा से लेकर पंजाब तक चलता था। इस महान हिन्दू शासक का जन्म आज ही के दिन अर्थात 16 मार्च सन् 1693 को चरवाहों के बेहद गरीब परिवार में पुणे जिले के वीर खांडुजी होलकर के यहां हुआ। मल्हार राव अपने मामा, भोजीराज राव बारगाल के घर में तलोदा (नंदुरबार जिला, खानदेश) में पले और बड़े हुए थे.. मल्हारराव होलकर मराठा साम्राज्य के एक ऐसे सामन्त थे जो परम पराक्रमी और युद्ध कौशल में निपुण होने के साथ साथ मालवा का प्रथम मराठा सूबेदार थे। वह होलकर राजवंश का प्रथम राजकुमार थे जिसने इन्दौर पर शासन किया। समर्पित हिन्दुओं के मराठा साम्राज्य को उत्तर की तरफ प्रसारित करने वाले अधिकारियों में मल्हारराव का नाम मुख्य रूप से अग्रणी है।

उन्होंने सन 1717 में गौतम बाई से शादी की। अपनी क्षमता पर पूरा विश्वास रखने वाले होलकर जी काफी महत्वाकांक्षी थे और इसी के चलते उन्होंने सबसे पहले एक योद्धा के रूप में 1715 में खानदेश के एक सरदार कदम बांदे की सेना में काम किया जिसमे उन्हें अग्रणी योद्धा के रूप में गिना जाता था। अपनी चपलता और युद्ध कौशल के लिए विख्यात होलकर जी 1719 में दिल्ली अभियान का हिस्सा थे और उसके बाद सन् 1720 में बलपुर की लड़ाई में निजाम के खिलाफ बहुत बहादुरी के साथ लड़े, जिसमे प्रतिनिधित्व था बरवानी के राजा का। जहां उन्होंने अपने युद्ध कौशल का लोहा मनवाया…

उनके पराक्रम के चर्चे शीघ्र ही पेशवा के खास लोगों में शुमार होने लगे और यहीं से उन्होंने सफलता के पायदानों को नापना शुरू कर दिया था। उनको उनके चातुर्य और युद्ध कौशल के ही चलते 500 लड़ाकू सैनिकों के दस्ते का प्रभारी बना दिया गया। सन् 1728 में हुई हैदराबाद के निजाम के साथ मराठों की लड़ाई में उन्होंने ही निजाम को घुटने टेकने पर मजबूर किया था क्योकि उनकी ही टुकड़ी ने निजाम के सैनिको को मिलने वाली रसद आदि की आपूर्ति काट दी थी जिसके चलते निजाम के सैनिको को भूखे मरने की नौबत आ गयी थी। इस विजय के बाद पेशवा मल्हार राव से बहुत प्रभावित हुए और होलकर को और बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हुए बड़ा इलाका और बड़ी सेना दी गयी…

धीरे धीरे सन् 1748 तक मल्हार राव होलकर की गिनती बहुत बड़े योद्धाओं में होने के साथ उन्हें किंग मेकर के रूप में जाना जाने लगा और धीरे धीरे इंदौर और आस पास के सभी क्षेत्रों में उनका अपना खुद का कायदा और कानून चलने लगा यद्धपि उन्होंने मराठों के साथ हमेशा ही सहयोग रखा और मराठों के साथ हर युद्ध में शामिल रहे। कालान्तर में इसी रणकौशल के दम पर मैराथन ने मार्च 1758 में मल्हार राव के नेतृत्व में सरहिंद के बाद लाहौर तक जीत कर दुर्रानी की सेनाओं को गाजर मूली जैसे काट डाला था.. ‘अटक’ को जीतने के बाद कहा गया की मराठा राज्य अटक से कटक तक हुआ करता था। होलकर के सहयोग से मिली इस विजय को मराठों की विजयगाथा को आज भी अक्सर ‘अटकेपार झेंडा रोवला’ कह के सम्मानित किया जाता है।

पानीपत की निर्णायक लड़ाई में इस वीर योद्धा मल्हार राव ने लुटेरे और हत्यारे अहमद शाह अब्दाली की सेना को तहस नहस कर दिया था। इस युद्ध में जब विश्वास राव पेशवा वीरगति को प्राप्त हो गये तब मराठों का मनोबल गिरने लगा, ऐसे समय में तत्कालीन मराठों के सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने मल्हार राव को बुला कर उनसे उनकी पत्नी पार्वतीबाई को सुरक्षित जगह ले जाने का आग्रह किया क्योंकि मराठे, अब्दाली की सेना के क्रूर और नारियों के प्रति बेहद ही घृणित नजरिये से वाकिफ थे। इस आदेश का पालन मल्हार राव ने किया जिसे बाद में झोलाछाप चाटुकार इतिहासकारों ने दुसरे रूप में होलकर जी के सैनिक जीवन में भागने की झूठी कहानी गढ़ कर दुष्प्रचारित किया।

कालान्तर में इस पराक्रमी योद्धा मल्हार राव का स्वर्गवास 20 मई 1766 में आलमपुर में हुआ। इस महायोद्धा की एक ही सन्तान थी जो काफी पहले एक युद्ध में बलिदान हो चुकी थी। खांडेराव की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी अहिल्याबाई होलकर को मल्हार राव ने सति होने से रोका था।
अहिल्या के बेटे और मल्हार राव के पोते माले राव को इंदौर की सत्ता मिली। लेकिन कुछ ही महीनों में उसकी भी मृत्यु हो गई। उसके बाद अहिल्याबाई होलकर ने सत्ता संभाली, जो कि एक कुशल शासिका साबित हुई थी।

आज उस महान योद्धा के जन्म दिवस पर उन्हें बारम्बार नमन और वन्दन करते हैं और उनकी वीरगाथा को सच्चे रूप में जनता के आगे रखने का संकल्प भी लेते हैं।

भारत माता की जय
वन्देमातरम्

 

 

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