व्यंग किन्तु सत्यपरक भाग – 2

व्यंग किन्तु सत्यपरक भाग – 2

मैने कुछ लोगों से चुनाव से सम्बन्धित जानकारी लेने का प्रयास किया था।

मैने पूछा कि चुनाव आ गया है, आप किसे वोट देंगे।

वो बोले मोदी को, मैने कहा आपके क्षेत्र में तो मोदी नही सतपाल सिंह खडे है। फिर मोदी को कैसे दोगे। मतदाताओं का उत्तर सुनकर लगा कि भारत का मतदाता जागरूक हो गया है। उन्होने कहा कि हम देश का प्रधानमंत्री अच्छा चाहते है। सतपाल सिंह को वोट देगे तो मोदी ही मजबूत होगे।

मैने आगे बढकर पुन: पूछा कि आखिर मोदी जी ने किया क्या है ?

उनमें से एक महिला आगे बढकर बोली भाईजी आप अपना वाट्सेप नंम्बर देदो मैने पूछा क्यो? उसने कहा कि हम आपको इतना सब बता नही पायेगे आपको लिखा हुआ भेजते है पढ़ लेना मोदीजी ने क्या किया है।

मैने नम्बर दे दिया उसने जो मोदी सरकार की उपलब्धियां भेजी वो मैं नीचे लिख रहा हूं।

आप भी पढ़ो। और सत्य की खोज करो।

वो अदालत ना भाजपा की थी ना RSS की थी।*
*वो अदालत हिंदुस्तान से लगभग साढ़े छह हजार किलोमीटर दूर स्थित लन्दन की थी।*

शुक्रवार को माल्या केस में सुनवाई करते हुए न्यायधीश एम्मा आर्बथनॉट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, *माल्या की एयरलाइंस कंपनी किंगफिशर को कर्जा देने में भारतीय बैंकों ने अपने ही नियमों-कानून का जबरदस्त उल्लंघन किया, लोन देने में नियमों की धज्जियां उड़ाई गयीं।*
यह बात ‘बंद आंख से भी’ देखी जा सकती है।

लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत की न्यायाधीश एम्मा आर्बथनॉट की उपरोक्त👆🏼टिप्पणी की *तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री चिदम्बरम द्वारा बैंकों की आपत्ति के बावजूद माल्या को कर्ज़ देने का आदेश देनेवाली उन चिट्ठियों को जिनमें बेंकों द्वारा ब्लैकलिस्ट किये जा चुके विजय माल्या को हज़ारों करोड़ का कर्ज और अधिक कर्ज़ देने की पैरवी और सिफारिश स्पष्ट शब्दों में बहुत खुलकर की गयी थी।*

अतः शुक्रवार को लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत की न्यायाधीश एम्मा आर्बथनॉट ने भारतीय बैंकों द्वारा विजय माल्या को कर्ज देने में की गई जिस धांधली और भ्रष्टाचार को खुलकर उजागर किया है उसका जिम्मेदार क्या केवल बैंकों के अधिकारियों को माना जाए। *क्या किसी बैंक अधिकारी को यह अधिकार होता है कि वह देश के प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री द्वारा बाकायदा चिट्ठी लिखकर दिए गए आदेश को नकार दे।*

अतः लंदन की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत की *न्यायाधीश एम्मा आर्बथनॉट ने शुक्रवार को बहुत साफ कर दिया है कि भारत से बैंकों का हज़ारों करोड़ लूटकर भागे विजय माल्या से ज्यादा उस लूट का जिम्मेदार क्यू ना तब के भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ओर वित्तमंत्री पी चिदंबरम को माना जाये*
*राहुल गांधी को लन्दन की उस अदालत की टिप्पणी के बाद शर्म आनी चाहिए* और देश को जवाब देना चाहिए कि कांग्रेसी प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री की जोड़ी ने बैंकों द्वारा ब्लैक लिस्ट हो चुके विजय माल्या को कर्ज देने की सिफारिश चिट्ठी लिखने का वह भ्रष्टाचारी कुकृत्य क्यों किया था जिसकी कलई लन्दन की अदालत में भी खुल रही है।

*आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि कभी भी किसी भी सड़क छाप नेता के बयान को विवादित बताकर उसपर घण्टों बहस करनेवाले न्यूज चैनलों से लन्दन की अदालत की न्यायाधीश के बयान का समाचार गधे के सिर से सींग की तरह गायब है।*

नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति में पिछले सोलह सत्रह वर्षों से जाने जाते हैं । हमारे देश के मूर्धन्य पत्रकारों ने उन्हें गुजरात दंगों के बाद से कुख्यात किया । मीडिया ट्रायल का शास्त्रीय उदाहरण बने नरेन्द्र मोदी । मुझे ध्यान ही नहीं आता कि सेक्यूलर मीडिया के भयावह प्रभुत्व में किसी और राजनेता को इस तरह से मलिन करने का षड़यंत्र रचा गया हो । खैर, यतो धर्म: ततो जय:! मोदी जी इसके जीवंत प्रमाण हैं ।

नरेन्द्र मोदी के सार्वजनिक जीवन के पिछले पच्चीस तीस वर्षों में उपलब्ध साक्षात्कार, संबोधन, वैचारिकी को देख लीजिए । उतना स्पष्ट, धर्मबद्ध, तार्किक कोई और नहीं मिलेगा । उनके विचारों में कोई अंतर नहीं आया है । ना ही दृष्टि बदली है । वे तब भी बिलकुल साफ़ और स्पष्ट थे, आज भी हैं । धर्म, राजनीति,देश, लोकतंत्र इन सभी विषयों पर वे विलक्षण सोचते और विचारते रहे हैं । बहुत सारे साक्षात्कार इसके प्रमाण हैं ।

गुजरात दंगों के बाद से उन्हें षड़यंत्रकारी मीडिया ने बदनाम कर नष्ट करना चाहा । उतनी उलाहनाएं और भर्त्सनाएं सुनकर तो आदमी टूट सकता है पर वे वज्र की तरह खड़े रहे । धर्मनिष्ठ थे इसलिए झूठी लांछनाओं से विचलित नहीं हुए ।ईश्वर साथ थे, समय न्याय कर सका ।

एक घोर संघाती सरकार के दर्जनों कुचक्रों को तोड़कर बेदाग निकलने वाले नरेन्द्र मोदी को किसी पत्रकार का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए । वे लोकतंत्र की संवैधानिक संस्थाओं में अपना उन्नत माथ लिये खड़े रहे हैं । उन्हें देश की छोटी से लेकर सर्वोच्च अदालतों ने बेदाग़ कहा है ।

ताज्जुब है कि नैतिकता से दूर और अति साधारण बुद्धि विवेक वाले पत्रकारों ने उन्हें अपराधी घोषित किया और नग्न, घोषित लुटेरों, लंपटों, वंशवादी पतितों, आकंठ भ्रष्टाचारियों को नायक बनाया । परंतु, मीडिया के बनाए नायक अपना असली रंग दिखला देते हैं । टिकता वही है जिसमें धर्म और सत्य की शक्ति होती है । नरेन्द्र मोदी टिके ही नहीं हैं, निरंतर ऊपर उठ रहे हैं । तुम अपनी कंजी आंखें साफ़ करो पत्रकार महोदय !! वह महानायक है ! उसे तुम रोक नहीं सकोगे !!

*इस पथ का उद्देश्य नहीं है*
*श्रान्त भवन में टिक रहना*
*किन्तु पहुंचना उस सीमा तक*
*जिसके आगे राह नहीं………*


पहले टाडा हटाया, फिर पोटा हटाया और अब देशद्रोह के कानून को भी खत्म करने की तैयारी में गाँधी परिवार ,
ये कांग्रेस कम लश्कर की शाखा ज्यादा लग रही है यह इनका घोषणापत्र नही। भारत की तबाही का दस्तावेज है। अब आप के हाथ में चुनाव है। सोच समझकर वोट करें।
क्योंकि देश है, तो हम हैं। राजनीतिक मतभेदों को छोड़कर , जातिवाद से परे हटकर राष्ट्र निर्माण की सोच रखते हुए फैसला लें।

यहाँ तो राष्ट्र, देश निर्माण की बात है साथियों, राज्य सरकार बनाते समय आपने किसी को भी वोट दे दिया होगा ये आपका विवेक था। ,
मगर अभी देश निर्माण का प्रश्न हैं। देश के टुकड़े होंगे से सहमत इस देशद्रोही गैंग से बचें, हम सबके लिए राजनीति बाद में है देश का स्वाभिमान पहले हैं। आपका दिया हुआ एक एक वोट देश की दिशा तय करेगा। वर्तमान परिस्तिथियों में भारत के सामने प्रधानमंत्री के लिए एक तरफ नरेन्द्र जी मोदी जैसे राष्ट्रवादी इंसान, दूसरी तरफ कन्हैयाकुमार , उमर अब्दुल्ला, समर्थक राहुल जी गाँधी जैसे व्यक्ति हैं।
राजनीतिक लेवल से हटकर, जातिवाद की बेड़ियों को तोड़कर, किसी भी प्रकार के आपसी मतभेदों को छोड़कर, एक बार दिल से गहन चिन्तन करें, तुलना करें, फिर मतदान करें, क्योंकि वोट अमूल्य होता हैं। *देश हैं तो हम हैं,*
आइये एक कदम बढ़ाएं – राष्ट्र निर्माण में हाथ बढ़ाये,
तेरा वैभव अमर रहें माँ- हम दिन चार रहें ना रहें।

जय हो भारत माता की।

सत्य खोजो, आगे की सोचो समझदार मतदाता बनो।

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