साउथ चाइना सी पर चीन का दावा

साल 2016 में दिए गए अंतरराष्ट्रीय अदालत के फ़ैसले के उलट चीन इस क्षेत्र के ज़्यादातर हिस्सों पर अपना दावा करता है और वो लगातार इस क्षेत्र में कृत्रिम द्वीप, सड़कें और अन्य किस्म के निर्माण कार्य कर रहा है.

इनमें से कुछ तो उसके पड़ोसी राज्यों के सामुद्रिक क्षेत्र के काफ़ी करीब है. हाल ही में अमेरिकी और ब्रितानी नौसेना के युद्धपोतों ने साउथ चाइना सी से अपने जहाज़ों को गुज़ार कर इस क्षेत्र पर चीन की संप्रभुता के दावे को सोच समझकर चुनौती दी है.

लेकिन इन सबके बीच कुछ सवाल भी उठ रहे हैं. ब्लैक सी में पिछले दिनों जो कुछ हुआ, क्या साउथ चाइना सी में भी वही घटनाएँ दोहराई जाएँगी?

जून में ब्रिटेन का विध्वंसक युद्धपोत ‘एचएमएस डिफेंडर’ जब विवादास्पद क्राइमियाई प्रायद्वीप के पास से गुज़रा था तो रूसी लड़ाकू विमानों ने उसके रास्ते में रुकावट डाली थी.

ब्रितानी थिंकटैंक रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (रूसी) की सीनियर रिसर्च फेलो वीर्ले नाउवेंस कहती हैं, “चीन अमेरिका के एक प्रमुख सहयोगी के साथ साउथ चाइना सी में सीधा टकराव नहीं चाहेगा लेकिन ये भी साफ़ है कि वो अपने इरादे ज़रूर स्पष्ट करेगा।

लेकिन अगर ब्रिटेन ने साउथ चाइना सी में ‘फ़्रीडम ऑफ़ नैविगेशन’ अभियान को अंज़ाम दिया तो वीर्ले नाउवेंस का मानना है कि साल 2018 में ‘एचएमएस एल्बियोन’ के साथ इस क्षेत्र से गुजरते वक़्त जो कुछ हुआ था, वैसी ही घटना फिर हो सकती है.

उस वक़्त एक चीनी युद्धपोत ने 200 मीटर की दूरी बनाकर ब्रितानी जहाज का पीछा किया था, उसे साउथ चाइना सी छोड़कर जाने की चेतावनी दी थी और चीनी लड़ाकू विमानों ने ‘एचएमएस एल्बियोन’ के ऊपर से काफ़ी नीची उड़ान भरी थी.

इसी हफ़्ते चीन ने इस क्षेत्र में गहन सैनिक अभ्यास किया है. इस सैनिक अभ्यास में जल-थल दोनों ही जगहों पर हमले की प्रैक्टिस की गई है. कुछ विश्लेषक इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि चीन कहीं ताइवान पर हमले की तैयारी तो नहीं कर रहा है.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नौसेना साउथ चाइना सी में ब्रिटेन के कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की मौजूदगी को प्रैक्टिस और ब्रिटेन के नए युद्धपोतों को क़रीब से परखने के अवसर के रूप में इस्तेमाल करेगी।

अख़बार ने लंदन स्थित चीनी दूतावास के प्रवक्ता के हवाले से लिखा है, “फ़्रीडम ऑफ़ नैविगेशन को ख़तरा केवल उन्हीं लोगों से है जो आधी दूनिया की दूरी से साउथ चाइना सी में कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की तैनाती करते हैं और नौसैनिक ताक़त दिखाकर इस क्षेत्र में सैनिक तनाव बढ़ाते हैं।”

हालांकि कैरियर स्ट्राइक ग्रुप के आने पर चीन ने शुरुआती प्रतिक्रिया तल्ख बयानबाज़ी के साथ दी है लेकिन रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (रूसी) के रिसर्च फेलो सिद्धार्थ कौशल इस ओर ध्यान दिलाते हैं कि जब नौसैनिक टकराव की बात आती है तो चीन अपनी कार्रवाई में इस बात का ख़्याल रखता आया है कि बात जंग के मुहाने तक न पहुँच पाए।

‘एचएमएस क्वीन एलिज़ाबेथ’ और उसके साथ पूर्वी एशिया में भेजे जा रहे जंगी जहाजों के बेड़े को वैश्विक सुरक्षा के मंच पर अहम किरदार निभाने की ब्रिटेन की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

दूसरी ओर फ्रांस भी अन्य यूरोपीय देशों की तरह अपना ध्यान साउथ चाइना सी के विवाद की ओर बढ़ा रहा है. उसे भी इस बात का एहसास है कि चीन की बढ़ती हुई सैनिक और आर्थिक ताक़त रुकने वाली नहीं लगती.

चीन ने हाल ही में परमाणु हथियारों से लैस बैलस्टिक मिसाइलों के भंडार को अपग्रेड किया है. वो शिनजियांग में परमाणु मिसाइलों को दागने के लिए नए लॉन्च पैड का निर्माण कर रहा है.

ऐसी रिपोर्टें हैं कि वो हायपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल्स और मिसाइलों का निर्माण कर रहा है जो ध्वनि की गति से आठ गुना तेज़ रफ़्तार पकड़ सकेंगी. इन्हीं हथियारों को ‘कैरियर किलर’ (युद्धपोत विनाशक) करार दिया जा रहा है.

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