भारत में पिछले 10 वर्षों में मर गए 984 बाघ

समाचार एजेंसी पीटीआई ने पिछले सप्ताह एनटीसीए के हवाले से बताया ​था कि बीते साल देश में 126 बाघों की मौत हो गई । हालांकि तब साल बीतने में दो दिन बाक़ी थे।

उसके बाद, 30 दिसंबर को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के जंगलों में एक मादा बाघ को मारे जाने की ख़बर आई। इस तरह 2021 में मरने वाले बाघों की कुल तादाद बढ़कर 127 हो गई।

उससे पहले दिसंबर की 29 तारीख़ को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक बाघ की मौत हो गई थी। मालूम हो कि बाघों की मौत के लिहाज से मध्य प्रदेश देश में सबसे आगे है।

पिछले हफ़्ते भी राज्य के डिंडोरी ज़िले में एक और मादा बाघ मृत पाई गई थी। पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़, शुरुआती छानबीन के आधार पर आशंका जताई गई कि उसे ज़हर देकर मारा गया होगा।

इस तरह पिछले 10 साल के आंकड़ों पर नज़र डालें तो बाघों की मौत के लिहाज से 2021 सबसे घातक साबित हुआ है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के एक अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि मामले की जांच की जा रही है। नाम न बताने की शर्त पर इस अधिकारी ने बताया कि एनटीसीए ने निगरानी गश्त बढ़ाने और शिकारियों की धर-पकड़ जैसे कई उपाय किए हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि बाघों की मौत के कई कारण रहे हैं, क्योंकि भारत में बाघों की संख्या बहुत अधिक थी। हालांकि उन्होंने इस बात से इनकार किया कि डिंडोरी में मरने वाली मादा बाघ को ज़हर देकर मारा गया होगा।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के इस अधिकारी ने कहा, “बाघों की सुरक्षा के लिए निरंतर निगरानी की जा रही है। कई लोगों को अवैध शिकार के आरोप में गिरफ़्तार भी किया गया है लेकिन हमें समझने की ज़रूरत है कि देश के 30 प्रतिशत बाघ अभयारण्यों के बाहर रहते हैं।”

वन्यजीवों पर शोध करने वाले ए.जे.टी जॉन सिंह ने इस बारे में बीबीसी तमिल से बातचीत की है। प्राकृतिक मौत, बिजली के करंट लगने और ज़हर जैसे कारणों से बाघों के मरने पर उन्होंने कहा, ”भारत में बाघों के मरने की संख्या करीब 5 फ़ीसदी है।”

वो कहते हैं कि मध्य भारत में बाघ भी बिजली के तारों में फंसकर मर रहे हैं जो जंगली सूअरों को रोकने के लिए लगाए जाते हैं। बिजली के तारों के उपयोग पर नियंत्रण बहुत ज़रूरी है। बाघ जंगली सूअरों के जाल में फंसकर मारे जाते हैं।

जॉन सिंह ने बताया, “इसी तरह मवेशियों को मारने के चलते बाघों को मारा जाना और उसे ज़हर देना आम बात है। यह चलन सबसे अधिक गोवा में है। जब उनके पशु मारे जाते हैं, तो वे ग़ुस्से में बाघों को ज़हर देकर मारने की कोशिश करते हैं इसलिए लोगों के ग़ुस्से को कम करने के लिए मुआवज़े की मांग की जा रही है।”

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