गलत तरह टॉयलेट इस्तेमाल करने से हो सकती है कब्ज

क्‍या टॉयलेट इस्‍तेमाल करने के तरीके से भी बीमारियों का कोई संबंध है? तो यहां बताने की जरूरत है कि अगर आप सही तरीके से शौचालय नहीं जा रहे हैं तो आप बीमारियों को न्‍योता दे रहे हैं और ये बीमारियां हल्‍की नहीं हैं बल्कि भयानक और दर्दनाक हैं।

एसएम योग रिसर्च इंस्‍टीट्यूट एंड नेचुरोपैथी अस्‍पताल इंडिया के सचिव और शांति मार्ग द योगाश्रम अमेरिका के फाउंडर व सीईओ योगगुरु डॉ. बालमुकुंद शास्‍त्री कहते हैं कि आजकल की जीवनशैली लोगों को बहुत सारे रोग देकर जा रही है लेकिन इससे भी ज्‍यादा रोग लोग अपनी दिनचर्या के पालन के दौरान रूटीन कामों में गलत तरीकों की वजह से शरीर में बुला रहे हैं टॉयलेट या शौचालय का इस्‍तेमाल करना उन्‍हीं में से एक है।
भारत की बात करें तो यहां दो तरह के टॉयलेट इस्‍तेमाल किए जाते हैं। एक भारतीय या स्‍क्‍वैटिंग टॉयलेट और दूसरा वेस्‍टर्न यानि इंग्लिश कमोड टॉयलेट लेकिन यहां पर दोनों ही टॉयलेट का इस्‍तेमाल सही तरीके से न होने के चलते पेट में कब्‍ज की समस्‍या ज्‍यादातर लोगों में सामने आ रही है। आज दूसरा-तीसरा व्‍यक्ति पेट में कब्‍ज या मोशन साफ न होने की समस्‍या कर रहा है।

डॉ. बालमुकुंद कहते हैं कि शौच के लिए उकडू होकर बैठने का तरीका सही है जो भारत में पहले से इस्‍तेमाल हो रहा है। ऐसा करने से हमारे शरीर की नसें सर से पैर तक खुलती हैं साथ ही पेट पर दवाब पड़ता है जिसकी वजह से मोशन साफ होता है। इसके साथ ही आंत और स्‍पाइन अपनी सही पोजिशन में आते हैं, मल का निकास अच्‍छे से होता है और ज्‍यादा प्रेशर नहीं लगाना पड़ता है हालांकि इसके इस्‍तेमाल में भी अब लोग कई गलतियां करते हैं। जबकि वेस्‍टर्न टॉयलेट या कमोड की बात करें तो इनमें कब्‍ज की समस्‍या भारतीय टॉयलेट के मुकाबले और भी ज्‍यादा है। इसपर बैठने के दौरान स्‍पाइन और आंत अपने सही पोश्‍चर में नहीं रहतीं, पेट पर कोई दवाब नहीं पड़ता, जिसकी वजह से इसके इस्‍तेमाल के दौरान ज्‍यादा प्रेशर लगाना पड़ता है और कब्‍ज के साथ ही पेट की कई बीमारियां पैदा होती हैं।

डॉ. बालमुकुंद शास्‍त्री कहते हैं कि टॉयलेट में बैठने के सही तरीके के न होने के चलते पेट में कब्‍ज की समस्‍या सबसे ज्‍यादा होती है। कई बार देखा गया है कि भारतीय टॉयलेट इस्‍तेमाल करने वाले जब कमोड का इस्‍तेमाल करते हैं तो भी उनका पेट साफ नहीं हो पाता। मलत्‍याग के लिए ज्‍यादा जोर लगाने के चलते इस क्रिया में दर्द, मल में खून आना, मलद्वार के पास सूजन आदि की समस्‍या शुरू हो जाती है। लगातार कई दिनों तक कब्‍ज की वजह से लोगों में हेमरॉयड या बवासीर, एनल फिस्‍टुला या भगंदर, एनल फिशर, एनल कैंसर, प्रोक्‍टाइटिस की समस्‍याएं बहुत जल्‍दी पैदा होती हैं। पेट में गंदगी जम जाने, पाचन शक्ति ठीक न होने की वजह से अल्‍सर, लाइफस्‍टाइल डिसऑर्डर्स जैसे डायबिटीज आदि हो सकते हैं। पेट में कई बैक्‍टीरिया भी पनप सकते हैं। खास बात है कि लगातार पेट में कब्‍ज रहने से हाई ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या भी रहती है।

डॉ. कहते हैं कि जब से शौचालयों में कमोड लगना शुरू हुई हैं तब से लोगों का टॉयलेट में बिताया जाने वाला समय बढ़ गया है। इस दौरान लोग फोन या अखबार लेकर टॉयलेट में जाते हैं जिसकी वजह से आधा घंटे या उससे भी ज्‍यादा समय तक वहां बैठे रहते हैं, जबकि टॉयलेट में कम से कम 1 मिनट से लेकर अधिकतम 15 मिनट ही बिताए जाने चाहिए। इससे कम और ज्‍यादा समय दोनों ही नुकसानदेह हैं. ज्‍यादा समय बिताने पर बैक्‍टीरिया शरीर में घुसते हैं।

डॉ. कहते हैं कि जब भी वेस्‍टर्न यानि कमोड का इस्‍तेमाल करें तो उसका सही तरीका है कि एक स्‍टूल पैरों के नीचे रखें, यह स्‍टूल इतना ऊंचा हो कि आराम से आप इस पर पैर रखकर कमोड पर बैठ पाएं और आपके घुटने नीचे जमीन तक सीधे आने के बजाय थोड़ा मुड़े रहें ऐसा करने के बाद हाथों की कोहनियों को घुटनों पर रखें साथ ही हथेलियों की पीठ को ठोड़ी पर रखें इससे न केवल मोशन साफ होगा बल्कि पेट में कब्‍ज की समस्‍या भी नहीं होगी।

पहले के समय टॉयलेट में बैठते वक्‍त ठोड़ी के नीचे हाथ रखते थे ऐसा इसलिए होता था कि मानव शरीर में 72 हजार नाड़‍ियां होती हैं, जिनमें से कुछ का दवाब बिंदू ठोड़ी में होता है। ऐसे में जब इसपर हाथ का दवाब पड़ता है तो ये नाड़‍ियां क्रियाशील होती हैं और मल का निकास बेहतर तरीके से और आसानी से होता है।

भारतीय टॉयलेट में बैठने का तरीका-वहीं अगर भारतीय टॉयलेट की बात करें जिसमें लोग उकडू होकर बैठते हैं यह तो सही है लेकिन इस दौरान लोग हाथों का मूवमेंट ज्‍यादा करते हैं जबकि यहां भी दोनों कोहनी को घुटनों पर रखना चाहिए और हाथों को ठोड़ी के नीचे रखना चाहिए, जिससे दवाब बना रहे। हालांकि इन टॉयलेट में ज्‍यादा समय तक बैठने के दौरान लोग एड़‍ियों पर ज्‍यादा वजन रख देते हैं, जिसकी वजह से कई समस्‍याएं होती हैं जबकि होना यह चाहिए कि व्‍यक्ति पैर के पंजे और एड़ी दोनों पर शरीर का समान वजन रखे।

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