राजस्थानी अकादमी एवं विभिन्न सामाजिक संस्थाओ के प्रतिनिधियों की सभा में विधानसभा अध्यक्ष राम निवास गोयल ने विधान सभा अर्थात पुराना सचिवालय के इतिहास की जानकारी दी .
राजस्थानी अकादमी के अध्यक्ष श्री गौरव गुप्ता द्वारा आयोजित राजस्थानी अकादमी एवं विभिन्न सामाजिक संस्थाओ के प्रतिनिधियों की सभा का आयोजन दिल्ली विधानसभा के विधायक कक्ष में किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल ने की। भारत में घाना व एक्वाडोर के राजदूत अतिविशिष्ट अतिथि रहे। उनका स्वागत अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल एवं श्री गौरव गुप्ता ने किया।
( Ambassador of Ghana and Amb of Ecuador we’re special guests. They were honoured and felicitated by honourable speaker and lion gaurav Gupta)
पुराना सचिवालय के इतिहास की जानकारी दी
दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष माननीय श्री राम निवास गोयल ने सभापति की भूमिका निभाते हुए इस विधान सभा अर्थात पुराना सचिवालय के इतिहास की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सबसे पहले अंग्रेजों का पूरे भारत का सचिवालय यही था। दिल्ली राज्य विधानसभा का गठन पहली बार 17 मार्च 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम, 1951 के तहत किया गया था। लेकिन 1 अक्टूबर 1956 को इसका उन्मूलन कर दिया गया। फिर सितम्बर 1966 में, विधानसभा की जगह 56 निर्वाचित और 5 मनोनीत सदस्यों वाली एक मेट्रोपोलिटन काउंसिल ने ली। हालांकि, दिल्ली के शासन इस परिषद की भूमिका केवल एक सलाहकार की थी और परिषद के पास क़ानून बनाने की कोई शक्ति नहीं थी।
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की 1991 में मिली नई पहचान
वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 और तत्पश्चात राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 ने केंद्र-शासित दिल्ली को औपचारिक रूप से दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की पहचान दी और विधान सभा एवं मंत्री-परिषद से संबंधित संवैधानिक प्रावधान निर्धारित किये।
विधानसभा पांच साल की अवधि के लिए चुनी जाती है और वर्तमान में दिल्ली विधानसभा चुनाव, 2013 द्वारा चयनित यह पांचवी विधानसभा है।
विधानसभा भवन
ई. मोंटेग थॉमस द्वारा डिज़ाइन किये गए पुराना सचिवालय (ओल्ड सेक्रेटेरिएट) भवन का निर्माण कार्य 1912 में पूरा किया गया। विधान परिषद की पहली बैठक 27 जनवरी 1913 को पुराना सचिवालय के चैंबर में हुई।
भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित होने के बाद इस ईमारत ने एक दशक के लिए भारत सरकार के सचिवालय की भूमिका भी निभाई। पुराना सचिवालय के चैंबर में हुई चर्चाओं एवं विधायी प्रक्रियाओं ने भारत के वर्तमान संसद की नींव रखी।
सभाओं की सूची
चुनावी वर्ष विधानसभा जीतने वाली पार्टी/गठबंधन मुख्यमंत्री
१९९३ पहली विधानसभा भारतीय जनता पार्टी
श्री मदन लाल खुराना,
साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज
१९९८ दूसरी विधानसभा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
श्रीमती शीला दीक्षित
२००३ तीसरी विधानसभा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस श्रीमती शीला दीक्षित
२००८ चौथी विधानसभा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
श्रीमती शीला दीक्षित
२०१३ पांचवी विधानसभा आम आदमी पार्टी
श्री अरविंद केजरीवाल
२०१५ छटी विधानसभा आम आदमी पार्टी
श्री अरविंद केजरीवाल
इससे पहले का इतिहास इस प्रकार है।
दिल्ली नगर ने अपने विकास और विस्तार की अनेक मार्गो को तय किया है। यह यात्रा बहुत ही शानदार रही है। पर हमारे मन में यही सवाल उठता है कि आज की दिल्ली की नींव कैसे पड़ी और इसे सजाने-संवारने में मुख्य भूमिका किसकी रही। तो आईए हम इसकी कुछ ऐसे पहलूओं पर नजर डालते हैं जो सच में काफी रोचक हैं। दिल्ली की नींव आर्किटेक्ट लुटियन ने डाली थी। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने का निर्णय तो समस्या इसके आधुनिकीकरण और नवनिर्माण की थी ताकि यहां अंग्रेज शासक न केवल सुकून से रह सकते, बल्कि इसे देश का रोल मॉडल नगर बना पाते। इस काम की जिम्मेदारी उठाई लुटियंस और बेकर ने। राजधानी को नया रूप देने के शुरुआती सालों में एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर नाम के दो शख्सियतों ने उन तमाम इमारतों के डिजाइन तैयार करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो आज राजधानी को एक अलग भव्यता प्रदान करते हैं। जिन्हें आज हम अपनी ऐतिहासिक धरोहर मानते हैं। ब्रिटेन से एडविन लुटियंस को भारत वर्ष वर्ष 1912 में भेजा गया ताकि वह यहां पहुंचकर भारत की नई राजधानी के लिए बनने वाली आवश्यक भवनों के डिजाइन तैयार करने और निर्माण करवाने के काम को बेहतर तरीके से पूरा करा सकें। तब तक एडविन लुटियंस की मंजे हुए टाउन प्लानर और आर्किटेक्ट के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। पहले कुछ साल तो यह तय करने में ही निकल गए कि नई राजधानी की अहम इमारतों के निर्माण करने के लिए कौन सी जगह उपयुक्त होगी। एडविन लुटियंस ने जहां अपना कैंप ऑफिस बनाया वहां आजकल राजधानी का प्रेस क्लब बना हुआ है। खास बात तो यह है लुटियन ने ही राष्ट्रपति भवन के साथ-साथ इंडिया गेट, राष्ट्रीय अभिलेखागार, जनपथ, राजपथ, दिल्ली जिमखाना क्लब और गोल मार्केट का भी डिजाइन तैयार करने का काम पूरा कराया था। जार्ज पंचम के दरबार में हुई थी राजधानी बनाने की घोषणा 12 दिसंबर की तारीख थी। दिल्ली के बुराड़ी इलाके में जो कोरनेशन पार्क बना हुआ है, इसी दरबार में जार्ज पंचम को हिन्दुस्तान का सम्राट घोषित कर दिया गया। लेकिन इस दरबार में एक ऐसी घोषणा भी हुई जिसे सुनकर वक्त भी सहसा ठिठक सा गया। जब जार्ज पंचम ने यह एलान किया कि अब दिल्ली ही देश की राजधानी होगी तो दरबार में कुछ पलों तक सन्नाटा पसर गया लेकिन कुछ ही क्षणों बाद दरबार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। जानकार बताते हैं कि यह जलसा कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तब दिल्ली की आबादी चार लाख थी और इस जलसे में एक लाख लोग मौजूद थे।
दिल्ली राज्य विधानसभा का गठन पहली बार 17 मार्च 1952 को
दिल्ली राज्य विधानसभा का गठन पहली बार 17 मार्च 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम, 1951 के तहत किया गया था। लेकिन 1 अक्टूबर 1956 को इसका उन्मूलन कर दिया गया। फिर सितम्बर 1966 में, विधानसभा की जगह 56 निर्वाचित और 5 मनोनीत सदस्यों वाली एक मेट्रोपोलिटन काउंसिल ने ली। हालांकि, दिल्ली के शासन इस परिषद की भूमिका केवल एक सलाहकार की थी और परिषद के पास क़ानून बनाने की कोई शक्ति नहीं थी।
वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 और तत्पश्चात राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 ने केंद्र-शासित दिल्ली को औपचारिक रूप से दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की पहचान दी और विधान सभा एवं मंत्री-परिषद से संबंधित संवैधानिक प्रावधान निर्धारित किये।
विधानसभा पांच साल की अवधि के लिए चुनी जाती है और वर्तमान में दिल्ली विधानसभा चुनाव, 2013 द्वारा चयनित यह पांचवी विधानसभा है।
विधानसभा ईमारत
ई. मोंटेग थॉमस द्वारा डिज़ाइन किये गए पुराना सचिवालय (ओल्ड सेक्रेटेरिएट) भवन का निर्माण कार्य 1912 में पूरा किया गया। विधान परिषद की पहली बैठक 27 जनवरी 1913 को पुराना सचिवालय के चैंबर में हुई।
भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित होने के बाद इस ईमारत ने एक दशक के लिए भारत सरकार के सचिवालय की भूमिका भी निभाई। पुराना सचिवालय के चैंबर में हुई चर्चाओं एवं विधायी प्रक्रियाओं ने भारत के वर्तमान संसद की नींव रखी।