जीवनदायी वृक्षोंं में भी होती है आत्मा – गुरुजी भू

 जीवनदायी वृक्षोंं में भी होती है आत्मा – गुरुजी भू

हमारेंं शास्त्रों के अनुसार वृक्षों और वनस्पतियों में भी आत्मा है। इसलिए हमारे महापुरुषों ने कहा है कि अध्यात्मवादी दृष्टिकोण के अनुसार पेड, पौधों, वनस्पतियों साथ भी हमें प्रेम पूर्वक कुशल व्यवहार ही करना चाहिए। अब तो  आज का विज्ञान भी ये मानने लगा है। वृक्षों को लगाना, उनका पोषण करना बडा ही पुण्य कार्य माना जाता रहा है, ठीक उसी प्रकार पेड काटना और बढ़ने न देना पाप माना गया है।

अध्ययन व स्वाध्याय के लिए पेड़ों के नीचे स्वच्छ वायु में बैठकर अपनी स्मरणशक्ति को अत्याधिक बढाया जा सकता है। अर्थात तत्परतापूर्वक काम करते हुये देखा जा सकता है। बौद्धिक कार्य पेड़ों के नीचे बैठकर अधिक अच्छी तरह पूरे हो सकते हैं।

प्रकृति में वृक्ष मनुष्य परिवार के ही अंग हैं। वे हमें प्राणवायु प्रदान करके जीवित रखते हैं। इतने अधिक मार्गों से हमारी सहायता करते हैं, जिनका मूल्यांकन करना अत्यधिक कठिन है। यह तथ्य स्मरण रखने योग्य है कि यदि वृक्ष न रहेंगे, तो मनुष्य का अस्तित्व भी इस पृथ्वी पर शेष न रहेगा।

वृक्षारोपण तथा पोषण के आध्यात्मिक महत्त्व को समझते हुए प्रत्येक धर्मप्रेमी तथा आध्यात्मिक जिज्ञासु को अपने जीवन में अनेक वृक्ष लगाने चाहिए और उन्हें पुत्र की तरह प्रेम से पालन करना चाहिए और जहाँ तक संभव हो किसी लोभ, लाभ अथवा आवश्यकता से कोई हरा वृक्ष काटना भी नहीं चाहिए।

प्रकृति की अदभुत देन वृक्षों की सघन छाया की यह विशेषता है कि गरमी के दिनों में शीतलता, सर्दी के मौसम में ताप और वर्षा में ऋतु के अनुसार लाभ पहुँचाती है।

प्रकृति में आनन्द के विभिन्न स्वरूप है जैसे मानव को संतान के पालन में जो आनंद आता है, वही पेड़-पौधे लगाने और उन्हें सींचने-बढ़ाने से मिलता है। मानवीय जगत में मनोरंजन के लिए कई प्रकार के पशु-पक्षी पाले जाते हैं। उनके स्थान पर फलते-फूलते वृक्षों का पालन और भी अधिक सुखद होता है।

संकलनकर्ता

श्री गुरुजी भू

प्रकृति शोधार्थी,  समाज सेवी

 

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