पाकिस्तान किस गरीब की जोरु है?

डाॅ. वेदप्रताप वैदिक

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारतीय विदेश नीति की खुले-आम तारीफ करके अपना फायदा किया है या नुकसान, कुछ कहा नहीं जा सकता. इस वक्त पाकिस्तान की फौज और उनके गठबंधन के कुछ सांसद उनसे इतने नाराज़ हैं कि उनकी सरकार अधर में लटकी हुई है.
यदि इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) के सम्मेलन में 50 देश भाग लेने के लिए इस्लामाबाद नहीं पहुंच रहे होते तो इमरान सरकार शायद अब तक गुड़क जाती. लगभग उनके दो दर्जन सांसदों ने बगावत का झंडा खड़ा कर दिया हैं. पाकिस्तानी संसद में वे सिर्फ 9 सांसदों के बहुमत से अपनी सरकार चला रहे हैं.
पाकिस्तान के पत्रकारों ने मुझे बताया कि इमरान के बागी सांसद तभी पार्टी का साथ देंगे जबकि इमरान की जगह उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी या परवेज खट्टक को प्रधानमंत्री बना दिया जाए. इनके नामों पर फौज सहमत हो सकती है.
फौज के घावों पर इमरान ने यह कहकर नमक छिड़क दिया है कि पाकिस्तानी विदेश नीति हमेशा किसी न किसी महाशक्ति की गुलामी करती रही है जबकि भारत हमेशा आजाद विदेश नीति चलाता रहा है. भारत ने यूक्रेन के मामले में भी अमेरिका और नाटो देशों का समर्थन नहीं किया है.
अमेरिका के साथ भारत के सामरिक रिश्ते घनिष्ट हैं लेकिन वह रूस से तेल आयात कर रहा है. जो यूरोपीय देशों के राजदूत पत्र लिखकर पाकिस्तान को उपदेश दे रहे हैं कि वह रूस की निंदा करे, वे ये ही सलाह भारत को देने की हिम्मत क्यों नहीं करते ? पाकिस्तान को उन्होंने क्या गरीब की जोरु समझ रखा है ? उन्होंने कहा है कि मैं पाकिस्तान का सिर ऊँचा रखूंगा. न किसी के आगे कभी झुका हूं, न पाकिस्तान को झुकने दूंगा.
इमरान ने यह भी याद दिलाया कि अगस्त में जब अमेरिकी अफगानिस्तान खाली कर रहे थे तो उन्होंने पाकिस्तान से एक सैन्य अड्डे की सुविधा मांगी थी तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया था. प्रधानमंत्री इमरान से जब—जब मेरी भेंट हुई है, भारत के प्रति उनका रवैया अन्य पाकिस्तानी नेताओं से मुझे भिन्न मालूम पड़ा है.
प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद उन्होंने भारत के बारे में जो बयान दिए थे, उसमें भी वह प्रकट हुआ था. लेकिन पाकिस्तान की फौज और नेतागण हमेशा भारत से इतने डरे रहते हैं कि वे कभी अमेरिका या कभी चीन की गोद में बैठकर ही अपने आप को सुरक्षित समझते हैं.
प्रधानमंत्री के तौर पर इमरान खान भी अभी तक इसी नीति पर चलते रहे हैं. दो-चार साल तक प्रधानमंत्री बने रहने पर हर पाकिस्तानी नेता फौज के वर्चस्व से मुक्त होना चाहता है लेकिन हमने बेनजीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ का हश्र देखा है। क्या मालूम, इमरान खान भी उसी तरह उछालकर फेंक दिए जाएं. उन्हें तख्ता-पलट के द्वारा नहीं, वोट-पलट के द्वारा उलट दिया जा सकता है.
SHARE