-अनिता चौधऱी
लीची का बाजार 20-22 दिन होता है लेकिन अपने इतने कम दिनों में लीची का बाजार पूरे वर्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है। विश्व में सबसे गुणकारी लीची का उत्पादन देश में होता है, जिससे कई और उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं।
ग्रीष्मकालीन मौसम आते ही देश भर में अभी मौसमी फलों का बाजार लग जाता है। इस समय बाजार में लीची, आम, तरबूज और खरबूज कहीं भी दिख जाएंगे। इसमें हम एक फल की चर्चा करने जा रहे हैं वह है लीची।
भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा लीची उत्पादक देश है। देश में कुल लीची उत्पादन का 70 फीसदी उत्पादन सिर्फ बिहार के मुजफ्फरपुर में होता है। शाही लीची की ख्याति बिहार के अलावा देश के अन्य राज्यों में ही नहीं, विदेशों में भी है। जहां इस लीची की व्यापक मांग के कारण इसकी आपूर्ति की जाती है।
मुजफ्फरपुर एवं मेहसी से लीची का निर्यात रूस, फ्रांस, यमन, ब्रिटेन, कनाडा, लेबनान, नीदरलैंड, यूनाइटेड अरब अमीरात एवं सऊदी अरब तक किया जाता है। मुजफ्फरपुर में 25 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है एवं उत्पादन तकरीबन तीन लाख टन होता है। एक एकड़ में लीची के 55 से 60 पेड़ होते हैं। जोत-कोड़ से लेकर कीटनाशक छिड़काव तक किसानों का खर्च प्रति एकड़ तकरीबन 25 हजार रुपया आता है। मुजफ्फरपुर की शाही लीची स्वाद एवं रस में चीन की लीची से भी बेहतर मानी जाती है। जबकि चीन ही लीची की मातृभूमि रहा है।
लीची से शराब बनाने के उद्घोषणा के साथ ही किसानों और विशेषज्ञों में हलचल है। बिहार में लीची से कई अन्य उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। उत्पाद बनाने को लेकर उत्साहित कंपनी को यह भी जानना होगा कि क्या इसकी पूर्ति हो पाएगी। किसान आयोग के पूर्व अध्यक्ष रामाधार कहते हैं कि इस पर संदेह है कि यहां को किसान पूर्ति कर पाएंगें क्योंकि लीची की फ्रेश मांग इतनी है कि शायद किसान ही इसकी पूर्ति न कर पाएं। यानी करंट प्रोडक्शन सपोर्ट नहीं कर पाएगा।
राज्य में उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है। अगर उत्पादन नहीं बढ़ेगा तो यह टांय-टांय फिस हो जाएगा। क्योंकि किसानों को सहायता करना ही पहला मकसद होना चाहिए। किसानों के प्रशिक्षण के बिना उत्पादन बढ़ ही नहीं सकता। रामाधार कहते हैं कि कांट्रेक्ट फार्मिंग व किसानों को प्रोडक्ट इनपुट देने की जरूरत है, जिससे किसानों को फायदा मिल सके। रामाधार का कहना है कि चीन लीची का केन एवं पल्प का उत्पादन करता है जो विश्व प्रसिद्ध है, यहां भी चीन जैसे मार्केटिंग करने की जरूरत है। एक्सपोर्ट मार्केटिंग ऑर्गेनाइज करने की आवश्यकता है।
किसान आयोग के पूर्व अध्यक्ष का कहना एक हद तक सही है कि इसके पहले भी लीची के उत्पादन बढ़ाने और मार्केटिंग के लिए कई कंपनियां आई हैं जैसे नीतीश सरकार के पहले साल में कृषि मंत्री रहे नरेंद्र सिह के कार्यकाल में धानुका कंपनी आई, लेकिन कुछ नहीं कर पाई। कंपनी ने यह भी कहा था कि बागानों को गोद ली जाएगी, लेकिन यह बातें केवल कागजों पर ही रह गई और दिखावे के लिए धानुका ने कुछ बागानों में सहायता की, जिससे समस्या जस की तस बनी रहीं। सही मार्केटिंग के अभाव में बची-खुची लीची अपने राज्य में ही सिमटती जा रही है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का कहना है कि किसानों को लीची के उत्पादन बढ़ाने पर मदद भी की थी, जिससे कुछ किसानों ने इसका लाभ भी उठाया। जो लीची 18 ग्राम की होता थी, अब 26 ग्राम की हो रही है। किसानों ने इसका लाभ भी लिया है। आईसीएआर का कहना है कि लीची के खेती का लाभ यह है कि एक एकड़ की खेती में 10 से 12 हजार का मधु का उत्पादन हो जाता है। यहीं कंपोस्ट का उत्पादन किया जा सकता है। इन सभी चीजों के लिए किसानों को और प्रशिक्षण करने की आवश्यकता है।
लीची के हाइड्रो पैकेजिंग करने की आवश्यकता है, जिससे ज्यादा दिन तक लीची रह सके। सबसे बड़ी बात यह कि किसानों को लीची की मार्केटिंग के बारे में प्रशिक्षित किया जाए। इसके लिए इस साल लीची संगम भी लगाया जा रहा है। जहां किसानों को मार्केटिंग का विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। क्योंकि लीची का बाजार 20 से 22 दिनों का ही होता है। इसलिए इसकी मार्केटिंग पर विशेष जोर देने की जरूरत है।
हां यह भी सही है कि बिहार में लीची की बिक्री को लेकर एक भी ऐसी मंडी नहीं है, जहां किसान ले जाकर इसकी बोली लगा सकें। आईसीएआर का कहना है कि पिछले साल कुछ किसानों का कहना प्रशिक्षण दिया था, उसने इसका पूरा लाभ लिया और इनके द्वारा बाहर भेजे गए लीची चार से पांच दिनों तक ज्यादा रह सका। इसका लाभ राज्य के विभिन्न जिलों के किसानों को प्रशिक्षण देने की जरुरत है।
मालूम हो कि बिहार के मोतिहारी, बेतिया, सीतामढ़ी एवं वैशाली समेत राज्य के अन्य जिलों में भी लीची का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर एवं आसपास के इलाकों में फिलहाल सिर्फ पांच फैक्ट्रियां हैं, जो लीची का जूस बनाती है। लेकिन इस वर्ष लीची उत्पादन एवं इसका व्यापार करने वालों में खास उत्साह एवं खुशी देखी जा रही है। इसकी वजह है लीची केन व पल्प जो इसी सीजन में बाजार में उतरने के लिए तैयार है। लिहाजा लीची की खरीद में बड़ी कंपनियों के बीच प्रतियोगिता से किसानों को सीधा लाभ हो रहा है। यहीं वजह है कि लीची उत्पादक किसानों के चेहरों पर खुशी एवं चमक नजर आ रही है। l