योगेद्र यादव ने 17 गोलियां खाकर भी कारगिल पहाड़ी पर फहराया तिरंगा, मिला परमवीर चक्र

कारगिल में परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव ने 17 गोलियां खाकर भी हार नहीं मानी थी और पाकिस्तानियों से लोहा लेते हुए विजय हासिल की थी। योगेंद्र यादव बताते हैं कि उनके 20 साथी देश के लिए कुर्बान हो चुके थे और गोलियों से उनका पूरा शरीर छलनी हो गया था।

आज हम कारगिल विजय दिवस मना रहे हैं और अपने उन जांबाज जवानों को याद कर रहे हैं, जिनके शौर्य के कारण दुश्मन को धूल चटाते हुए कारगिल की चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था।

योगेंद्र यादव मूलरूप से बुलंदशहर के औरंगाबाद थाना क्षेत्र गांव अहीर के रहने वाले हैं। आर्मी से रिटायरमेंट के बाद से वह परिवार के साथ गाजियाबाद के साहिबाबाद थाना क्षेत्र स्थित लाजपत नगर में रह रहे हैं। अब वह स्कूल-कालेजों के स्टूडेंट्स को अपनी शौर्यगाथा के माध्यम से राष्ट्र भक्ति के प्रति जागरूक करने का कार्य करते हैं।

बता दें कि योगेंद्र यादव के खून में ही राष्ट्रभक्ति है। उनके पिता करन सिंह यादव भी आर्मी में थे। उन्होंने भी पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी। वहीं उनके बड़े भाई जितेंद यादव भी आर्मी में रहे हैं।

परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र यादव कारगिल युद्ध को याद करते हुए बताते हैं कि कारगिल के युद्ध में दुश्मन की उन्हें 17 गोलियां लगी थीं। लेकिन, इसके बावजूद उनके कदम पीछे नहीं हटे। वह गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी दुश्मन के हर वार का करारा जवाब देते रहे।

आखिरकार पाकिस्तानी सेना को परास्त करने के बाद ही उन्होंने दम लिया। योगेंद्र का कहना है कि दुश्मनों को बुलेट से ही नहीं, जोश और जज्बे से भी हराया जा सकता है।

योगेंद्र यादव कहते हैं कि 26 जुलाई 1999 का वह मंजर आज भी उनके जहन में फोटो फ्रेम की तरह फिट है। जब जंग जीतने के बाद कारगिल की चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था, तब वह अपना दर्द भूल गए थे और गर्व से सीना चौड़ा हो गया था। उन्होंने कहा कि हमारी सेना सर्वोच्च है। दुनिया की कोई सेना हमारा सामना नहीं कर सकती है।

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