नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को 3,500 करोड़ का जुर्माना लगाया गया है। एनजीटी ने पश्चिम बंगाल सरकार से ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन का कथित रूप से ठीक से प्रबंधन नहीं करने के लिए यह जुर्माना भरने को कहा है। एनजीटी पैनल ने कहा कि राज्य सरकार सीवेज-ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं की स्थापना को प्राथमिकता नहीं दे रही है। राज्य में स्वास्थ्य के मुद्दों को लंबे समय तक टाला नहीं जा सकता है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करना राज्य और स्थानीय इकाइयों की संवैधानिक जिम्मेदारी है। पीठ ने कहा कि राज्य के शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 2758 मिलियन लीटर सीवेज उत्पन्न होता है, जबकि 44 एसटीपी की स्थापना के माध्यम से राज्य की उपचार क्षमता केवल 1505.85 मिलियन लीटर प्रति दिन है और केवल 1268 मिलियन लीटर सीवेज का प्रतिदिन उपचार किया जाता है। इस प्रकार प्रति दिन 1490 मिलियन लीटर का अंतर है।
पीठ ने कहा कि जीवन का अधिकार एक मौलिक मानवाधिकार है और राज्य सरकार धन की कमी के कारण ऐसी सुविधाएं प्रदान करने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है।
पीठ ने कहा कि कचरा प्रबंधन के संचालन के लिए केंद्र से धनराशि प्राप्त की जा सकती है। हालाँकि, राज्य अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है या इसके कार्यान्वयन में देरी नहीं कर सकता है। अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में पर्यावरणीय मानदंडों को पूरा करना राज्य सरकार के लिए प्राथमिकता का विषय होना चाहिए।
ट्रिब्यूनल की राय है कि ठोस और तरल कचरे के उपचार के लिए अपर्याप्त उपायों ने पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। पीठ ने कहा कि ये निर्देश नगर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुपालन की निगरानी और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अन्य पर्यावरणीय मुद्दों की निगरानी के दौरान जारी किए गए हैं।