बलात्कार [ व्यभिचार ] को कैसे रोकें ?
भूपेश आर्य
यदि देश में कुछ नियमों के अनुसार सरकार व देश की जनता चले, तो बलात्कार की घटनाएँ पूर्णतः रोकी जा सकती हैं। आइये, देखते हैं कि क्या नियम अपनाने चाहिएँ―
*1) स्त्री को वेद-मर्यादा का पालन करना । स्त्रियों को अपनी वेशभूषा तथा चाल-चलन वैदिक-मर्यादा के अनुसार करना होगा। *बलात्कार* की घटनाओं को रोकने के लिए इस नियम का भी कुछ प्रतिशत तक योगदान है। वेद का आदेश स्त्री के लिए क्या है ?
आइये, देखें―
*अध: पश्यस्व मोपरि सन्तरां पादकौ हर।*
*मा ते कशप्लकौ दृशन् स्री हि ब्रह्मा बभूविथ ।।*
-ऋ० ८।३३।१९
हे नारी ! नीचे देख, ऊपर मत देख। अपने पैरों को संयत करके रख। तेरे शरीर के अंग दिखाई न देने चाहिएं, क्योंकि नारी मानव-समाज की निर्मात्री है।
*2) _महर्षि मनु_ के अनुसार बलात्कारी (अपराधी) को दण्ड मिले*―अगर *महर्षि मनु* के अनुसार अपराधी को दण्ड मिलेगा तो बलात्कार स्वयं ही रुक जाएँगे। *मनुजी* ने बलात्कारी (व्यभिचारी) के लिए क्या दण्ड निर्धारित किया है? आइये, देखिए―
*पुमांसं दाहयेत्पापं शयने तप्त आयसे ।*
*अभ्यादध्युश्च काष्ठानि तत्र दह्येत पापकृत् ।।* ―मनु० ८।३७२
*भावार्थ*― _पर-स्त्री से व्यभिचार (बलात्कार) करनेवाले मनुष्य को लोहे की तप्त (गर्म) शय्या पर सुलाकर, चारों ओर लकड़ी रखकर अग्नि लगा दे जिससे वह पापी भस्म हो जाए।
आगे मनुजी ने कहा है
*गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतम् ।*
*आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन् ।।* ―मनु० ८।३५०
*भावार्थ*― _चाहे गुरु, बालक, वृद्ध, ब्राह्मण वा विद्वान् क्यों न हो, राजा को चाहिए कि आततायी होने की दशा में बिना सोचे इन सबका वध अवश्य करे। इस विषय में कुछ विचार नहीं करना चाहिए।_
यहाँ *आततायी* के लक्षण बताते हैं, बलात्कारी भी आततायी होता है―
*वशिष्ठ स्मृति* के व *मनु ८।३५०* के बाद प्रक्षिप्तांश के अनुसार ―आग लगानेवाला, विष देकर मारनेवाला, हाथ में शस्त्र लेकर वार करनेवाला, धन लूटनेवाला, भूमि पर बलपूर्वक कब्जा करनेवाला तथा स्त्रियों को उठाकर ले-जानेवाला―ये छह आततायी होते हैं।
*3) पुरुषों को भी सदाचारी होना बहुत आवश्यक है*―वैसे तो स्त्रियों का भी सदाचारी होना परम आवश्यक है, परन्तु जब तक पुरुष समाज सदाचारी नहीं होगा, *बलात्कार* [ व्यभिचार ] की घटनाएँ रुकेगी नहीं, ऐसा मेरा मानना है। इसके लिए एक शास्त्रोक्त प्रमाण देता हूँ। उपनिषदों में परम धार्मिक महाराज *अश्वपति* का किस्सा है, महाराज *अश्वपति* ने घोषणा की थी―
*न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः ।*
*नानाहिताग्निर्नाविद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः ।।*
_”हे विद्वान् ब्राह्मणो ! मेरे देश में कोई भी चोर नहीं, दूसरे के धन को छीनने वाला नहीं। यहाँ कोई कंजूस नहीं। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो दान न देता हो। कोई ऐसा नहीं जो शराब पीता हो। ऐसा भी कोई नहीं जो प्रतिदिन यज्ञ न करता हो। कोई मूर्ख, अनपढ़ या अविद्वान् भी नहीं। यहाँ कोई पुरुष व्यभिचारी (चरित्रहीन) नहीं , तब व्यभिचारिणी स्त्री कैसे हो सकती है?”
इस उपनिषद के श्लोक में अन्तिम वाक्यांश में स्पष्ट लिखा है―’यहाँ कोई पुरुष व्यभिचारी [ चरित्रहीन ] नहीं, तब व्यभिचारिणी स्त्री कैसे हो सकती है?’ अर्थात् जब पुरुष ही व्यभिचारी नहीं तो स्त्री तो व्यभिचारिणी हो ही नहीं सकती।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि पुरुष समाज सदाचारी है, चरित्रहीन, व्यभिचारी नहीं है तो इसका प्रभाव स्त्री जाति पर भी पड़ेगा और स्त्रियाँ भी सदाचारिणी होंगी। क्योंकि ताली दो हाथों से बजती है, एक से नहीं।
*4) स्त्रियों को आत्मबल रखना होगा*―कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि महिलाएँ स्वयं को अकेला पाती हैं और वहाँ कोई दुराचारी इस मौके का फायदा उठाता है। इस स्थिति में महिलाओं को दो उपाय अपनाने होंगे। एक तो यह कि कुछ आत्मरक्षा के उपाय सीखें, जैसे–जुड़ो-कराटे आदि; दूसरे अपनी जेब आदि में एक पिसी हुई लाल मिर्च की छोटी सी डिब्बी रखें। इससे मौका पाकर व्यभिचार की कौशिश करनेवाले की आँखों में मिर्च निकालकर डाल दें, जिससे वह तंग आ जाए और महिला भागने में या अपना बचाव करने में सफल हो जाए तथा एक छोटा चाकू जेब में रखना चाहिए। इससे महिलाओं को अपने बचाव की कुछ सम्भावनाएँ तो बढ़ जाएँगी।
*5) अश्लील चलचित्र, साहित्य आदि से दूर रहना होगा*―आजकल टेलिविजन, सिनेमा तथा इण्टरनैट व गन्दे उपन्यासों आदि के माध्यम से जो गन्दे गाने, फिल्मों द्वारा जो अश्लीलता परोसी जा रही है, इससे बच्चे तथा बड़े भी दूर रहें। वेद में कहा है कि ‘हम आँखों से सदा भद्र (अच्छा) देखें और कानों से सदा भद्र (अच्छा) सुनें’ । अतः *बलात्कार* की घटनाओं को बढ़ाने में अश्लीलता को देखना व सुनना इनका भी कम योगदान नहीं है। क्योंकि बच्चा या बड़ा जो भी देखता या सुनता है, वैसा ही वह बनता है। अगर बच्चे अच्छी प्रेरक बातें देखेंगे या सुनेंगे तो उनका चरित्र भी अच्छा ही बनेगा। और अगर गन्दे चलचित्र आदि देखेंगे या सुनेंगे तो ऐसा गन्दा ही उनका चरित्र बनेगा। माँ-बाप को अपने बालक-बालिकाओं पर विशेष ध्यान रखना होगा कि कहीं उनके बच्चे गलत दिशा में तो नहीं जा रहे? इसके लिए बच्चों को टेलीविजन आदि के द्वारा गन्दे दृश्य देखना छुड़वाकर, बच्चों को अच्छे धार्मिक, वैदिक। साहित्य पढ़ाओ और बच्चों को वैदिक सत्सङ्ग में अवश्य लेकर जाओ। कम-से-कम सप्ताह में एक बार तो अवश्य लेकर जाना चाहिए और बच्चों को *सदाचारी* बनने की शिक्षा देनी चाहिए। जैसे―दूसरी लड़की व पराई स्त्री को अपनी माँ, बहन के समान समझना, किसी स्त्री को गलत विचारों से न देखना, सदा सत्य बोलना, चोरी न करना, *ओ३म्* तथा *गायत्री मन्त्र* का सुबह-शाम जाप करना, आदि। अगर बच्चा गलत चले तो माँ-बाप को किसी भी तरह उसका गलत रास्ता छुड़वाना होगा। बच्चों को मारना-पीटना नहीं चाहिए। बच्चों को शान्त भाव से समझाकर उसकी गन्दी आदतें दूर करनी चाहिएँ। अगर डाटना पड़ जाए तो कभी-कभी डाँटना भी चाहिए। तभी बच्चे अच्छाई की राह पर चलेंगे और देश को आर्यावर्त्त बनाने में योगदान देंगे।
*6) अपना आहार सात्विक रखना*― आहार का मनुष्य के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। *तामसिक आहार* से बुद्धि भी तामसिक होगी और व्यक्ति गलत रास्ते पर चल पड़ता है। *तामसिक आहार* जैसे―माँस, मछली, अण्डा, तेज मिर्च-मसाले, तली-भुनी चीजें, बाजारु वस्तुएँ, नूडल्स, ठंडा सोड़ा (पैप्सी, लिम्का आदि बाजारु पेय), तम्बाकू, शराब, बीड़ी-सिगरेट आदि बुद्धिनाशक तामसिक पदार्थ, इन सब बुद्धिनाशक आहार को त्यागना जरुरी है। कामवासना को बढ़ाने में तामसिक आहार का विशेष योगदान है। कामवासना बढ़ेगी तो सम्भव है कि बलात्कार की घटनाएँ भी बढ़ेगी। तामसिक व नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को ये पता नहीं रहता कि वह अच्छा कर रहा है या बुरा।
इन उपर्युक्त कारणों पर विशेष ध्यान देकर *’बलात्कार’* [ व्यभिचार ] की घटनाओं पर अवश्य रोक लग जाएगी। *स्त्री* राष्ट्र की अनमोल नीधि है। जिस राष्ट्र में *स्त्री* दुःखी होगी, वह राष्ट्र कभी पनप नहीं सकता।। अतः सभी को *स्त्री-जाति* का सम्मान करना होगा। क्योंकि *स्त्री* ही माँ, बहन, पत्नी आदि है। मेरा निवेदन है कि *महिलाओं* के उत्थान के लिए हमारी सरकार को भी विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे मातृ-शक्ति सुदृढ़ हो और देश विकास करे।
।। ओ३म् ।।
*भूपेश आर्य*