निजी अस्पताल या जांचघरों में रैपिड डायग्नोस्टिक किट से की गई जांच से डेंगू रोग का सत्यापन नहीं

  • डेंगू की जांच की पुष्टि के लिए स्वास्थ्य विभाग ने जारी किए आवश्यक दिशा-निर्देश
  • डेंगू की आधिकारिक रूप से जांच की प्रक्रिया केवल एलिसा एनएस वन एवं आईजीएम किट से करने का है निर्देश
  • समाज में अनावश्यक भय को दूर करने के लिए विभाग ने जारी किये निर्देश

मुंगेर,17 अक्टूबर । प्रायः निजी जांच घर या अस्पतालों में डेंगू की जांच रैपिड डायग्नोस्टिक किट से होने के बाद एनएस वन पॉजिटिव परिणाम आने पर उसे डेंगू से पीड़ित मरीज घोषित कर दिया जाता है। वास्तव में ऐसा नहीं है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि रैपिड डायग्नोस्टिक किट जांच से लक्षण वाले मरीज चिह्नित किये जा सकते हैं किन्तु यह जांच डेंगू रोग को संपुष्ट नहीं कर सकता है। विभाग के अनुसार इसकी सूचना अखबारों के माध्यम से छपने से अनावश्यक भय उत्पन्न हो रहा है। इसको देखते हुए विभाग ने डेंगू की जांच सबंधी आवश्यक दिशा- निर्देश जारी किए हैं । जिसके अनुसार सभी निजी अस्पताल व जांच घरों को डेंगू के मरीज़ चिह्नित होने पर सीएस को इसकी जानकारी देते हुए जांच में इस्तेमाल की गई किट से भी अवगत कराना है, ताकि डेंगू के मरीज़ पाए जाने पर इसको रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाया जा सके।

अपर निदेशक-सह-राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम ने पत्र जारी कर दिए निर्देश –

मुंगेर के डिस्ट्रिक्ट वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल ऑफिसर डॉ अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के अपर निदेशक सह वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. विनय कुमार शर्मा ने सिविल सर्जन सहित अन्य अधिकारियों को डेंगू की जांच ज़िले के निजी अस्पताल एवं जांच घरों में कराने से संबंधित दिशा-निर्देश दिया है। पत्र में बताया गया है कि निजी अस्पतालों एवं जांच घरों में डेंगू की जांच रैपिड डायग्नोस्टिक किट (आरडीटी किट) से करने के बाद परिणाम आते ही उसे डेंगू मरीज घोषित कर दिया जाता है, जबकि भारत सरकार द्वारा डेंगू की आधिकारिक रूप से जांच की प्रक्रिया केवल एलिसा एनएस वन एवं आईजीएम किट से करने का निर्देश है। इसका अक्षरशः अनुपालन किया जाए।

डेंगू से बचाव के लिए शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना ज्यादा बेहतर –

उन्होंने बताया कि वेक्टर जनित रोगों में वे सभी रोग आ जाते हैं जो मच्छर, मक्खी या कीट के काटने से होते हैं, जैसे: डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, स्क्रब टायफस या लेप्टोस्पायरोसिस आदि। मलेरिया एवं डेंगू या अन्य वेक्टर जनित रोगों से बचने के लिए आवश्यक है कि दिन में भी सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल किया जाय। इसके साथ ही मच्छर भगाने वाली क्रीम या दवा का प्रयोग दिन में भी कर सकते हैं। दिन में भी पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना ज्यादा बेहतर है। घर के सभी कमरों की सफ़ाई के साथ ही टूटे-फूटे बर्तनों, कूलर, एसी, फ्रिज में पानी को स्थिर नहीं होने देना चाहिए और गमला, फूलदान का पानी एक दिन के अंतराल पर जरूर बदलना चाहिए।

बरसात के दिनों में जलजमाव के कारण बढ़ता है मच्छरों का प्रकोप :

उन्होंने बताया कि बरसात के मौसम में जलजमाव के कारण मच्छरों का प्रकोप काफ़ी बढ़ जाता है। इस कारण मलेरिया और डेंगू के मरीजों की संख्या बढ़ने की संभावना भी प्रबल हो जाती है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा ज़िले में मच्छरों से बचाव करने एवं सुरक्षित रहने के लिए मीडिया एवं सोशल मीडिया साइट्स के माध्यम से जागरूकता फैलाई जा रही है। मच्छरों से होने वाली बीमारियों में मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू, जापानी इन्सेफेलाइटिस, जीका वायरस, चिकनगुनिया आदि प्रमुख हैं। वहीं मच्छरों के काटने से सबसे अधिक मामले मलेरिया और डेंगू के ही आते हैं। इसके लिए घर के साथ-साथ सार्वजनिक स्थलों पर सतर्कता बरतना जरूरी है। वहीं मॉल एवं दुकान चलाने वाले लोग भी खाली जगहों पर रखे डिब्बे और कार्टन में पानी जमा नहीं होने दें।

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