आदि गुरु शंकराचार्य की विरासत शारदा पीठ के अवशेष अभी पाक अधिकृत कश्मीर में हैं। 13वीं शताब्दी के ग्रंथ मध्विया शंकरा दिग्विजयम में भी इस पीठ का जिक्र मिलता है।
आदि गुरु शंकराचार्य की विरासत के संरक्षण का जिम्मा उठाया है मुस्लिम समुदाय ने। सालों से मुस्लिम समुदाय ही उसकी देखभाल करता आ रहा है। दरअसल, कश्मीर में जिस स्थान पर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी दिग्विजय यात्रा का समापन किया था, वहां तब शारदा पीठ की स्थापना की गई थी, वह जगह पीओके यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पड़ती है, जहां आज भी उस शारदा पीठ के अवशेष मौजूद हैं।
शारदा पीठ एक मंदिर के साथ विश्वविद्यालय के रूप में भी था. अभी उसका एक भव्य मेहराब और एक प्रवेश द्वार दिखता है। शारदा पीठ, भारत-पाक सीमा पर स्थित कुपवाड़ा जिले के केरन गांव से करीब 20 किलोमीटर दूर पड़ता है। शारदा गांव पाक के नियंत्रण वाले कश्मीर का हिस्सा है। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, वहां के स्थानीय मुस्लिम युवकों ने शारदा पीठ के संरक्षण और जीर्णोद्धार की पहल की है।
वहां के स्थानीय शिक्षक ख्वाजा अब्दुल गनी ने इस पर एक किताब भी लिखी है। उनके मुताबिक, हिंदुओं के लिए यह शारदा देवी है, जबकि मुसलमानों के लिए शारदा माई। मुस्लिम भी मंदिर को पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ मानते हैं।
जेएनयू की प्राे सोनालिका कौल के मुताबिक, 7वीं सदी के ग्रंथ निलैनाता पुराण में इसका जिक्र मिलता है. 12वीं सदी के कश्मीर के पहले इतिहास ‘कल्हण की राजतरंगिनी’ में भी इसकी चर्चा है. 8वीं सदी तक यह भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल था. प्रो कौल ने काफी अध्ययन के बाद ‘द मेकिंग ऑफ अर्ली कश्मीर: लैंडस्केप एंड आइडेंटिटी इन राजतरंगिणी’ किताब लिखी है।