विशुद्ध मनुस्मृति है कहाँ ?
भारतीय संस्कृति में मनुस्मृति न्याय और जीवन दर्शन का उत्तम ग्रंथ है, जिसे मैक्समूलर ने छेड़छाड़ करके विकृत किया और वामपंथी षड्यंत्रकारियों तथा अब तक की सत्ता भोगी सरकारों ने भारतीय समाज को विखंडित करने का बडा कार्य किया है।
आज के भारत का संविधान शुद्र के पुत्र को सदैव के लिए शुद्र ही बनाता है तथा प्रमाण पत्र लिख-लिख कर देता है कि आप शुद्र हो, आप SC हो, आप ST हो, आप OBC हो, आप सामान्य हो। ये घटियापन मनुस्मृति में नही है। जिसके बाबा साहेब अम्बेडकर भी पक्ष में नही थे।
लेकिन महानुभावों मनुस्मृति कहती है कि शुद्र का बेटा अपने कर्मो से ब्राह्मण बन सकता है और ब्राह्मण भी अपने चरित्र हीन आचरण से शूद्र हो सकता है। अर्थात सब कर्म प्रधान है, कोई जातिवाद मनुस्मृति में नहीं है।
तो जरा सोचिये कि आज जातिवाद कौन फैला रहा है।
जिन लोगो ने कभी वास्तविक मूल मनुस्मृति पढ़ी नहीं, पढ़ना तो छोडिएंं देखी तक नही, तो समझते कैसे, जानते कुछ नही वो इस षड्यंत्र में शामिल होकर इसका विरोध कर रहे है।
मनुस्मृति के बारे में कुछ आश्चर्यजनक तथ्य
असली मनुस्मृति में कर्माधारित वर्णव्यवस्था है न कि जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था।
असली मनुस्मृति को जातिवादी मानने पर पूरी रचना ही व्यर्थ हो जायेगी। मनु महाराज की सारी तपस्या ही व्यर्थ हो जायेगी।
कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों के द्वारा शूद्र से ब्राह्मण और ब्राह्मण से शूद्र बन सकता है। इतना ही नहीं कोई भी व्यक्ति अपने गुण-कर्म-योग्यता के अनुसार चारों वर्णों में से कोई भी वर्ण चुन सकता है। जैसे आज।
प्राचीन काल से आज तक के प्रचलित विभिन्न जातियों में एक ही गोत्र पाये जाने का रहस्य केवल मनुस्मृति ही सुलझा सकती है।
मूल मनुस्मृति वेदों पर आधारित है और वेदों में जाति व्यवस्था का नाम तक नहीं है।
आजकल की दलित, पिछड़ी और जनजाति कही जाने वाली जातियों को मनुस्मृति में कहीं भी शूद्र नहीं कहा गया है।
मनु के द्वारा दिये गये शूद्रों की परिभाषा आज के कथित शूद्रों पर लागू ही नहीं होती।
मनुस्मृति में शूद्र कहीं भी अछूत (अस्पृश्य) नहीं, दास नहीं बल्कि शूद्र सवर्ण हैं।
वृद्ध शूद्र को अन्य वर्णों से पहले सम्मान देने की बात मनु ने कही है।
शूद्रों को धर्म-पालन की पूरी स्वतन्त्रता।
मनुस्मृति की दण्डव्यवस्था में शूद्रों को सबसे कम दण्ड और ब्राह्मणों को सबसे अधिक।
शूद्र आर्य हैं और ये आर्यों के चार वर्णों के अन्तर्गत आते हैं इसलिये शूद्र सवर्ण हैं। जो इन चारों से भिन्न है वह अनार्य है।
पुत्र और पुत्री एक समान हैं। पिता की सम्पत्ति में दोनों का समान अधिकार है और माता की सम्पत्ति पर केवल पुत्री का।
जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं, यह विश्वप्रसिद्ध कथन मनुस्मृति का है।
बलात्कारियो को चटाई में लपेटकर जला देने की बात मनु ने कही है। नारियों के प्रति होने वाले अपराधों में कठोरतम दण्ड का प्रावधान।
भारतीय संस्कृति में स्त्रियों को वैवाहिक स्वतन्त्रता का अधिकार रहा है। वह अपना वर स्वयं चुनें एसा प्रावधान उस समय के संविधान अर्थात शास्त्रों में सदैव रहा है। इसमें अन्य कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। मनुस्मृति में भी ये ही लिखा है।
वेदों मेंं स्त्रियों को समस्त यज्ञ याग्, वेद पाठन, मन्त्र पाठ तथा समस्त धार्मिक क्रियाओं के पालन की पूर्ण स्वतन्त्रता थी। फिर मनु ने भी उसी भाव को अपनी मनुस्मृति में स्त्रियों को सम्मान दिया था।
अंग्रेजों का लेडिज फर्स्ट अर्थात् स्त्रियों को प्राथमिकता (जो उन्होंने भारतीय संस्कृति से सीखी) के जनक वेद ही है जिसे महर्षि मनु ने भी पूरी मान्यता हैं।
कालान्तर में कुछ कुटिल स्वार्थियों, मूर्खों, धूर्थो, जातिवादियों, सम्प्रदायिकों, अंग्रेजों ने मनुस्मृति में कुछ अक्षम्य मिलावटें की जिसके कारण महर्षि मनु को गालियाँ दी जाती हैं।
आप भी मूल मनुस्मृति पढ़ें और सत्य का प्रचार करें।
श्री गुरु जी भू
प्रकृति प्रेमी, भारतीय संस्कृति के शोधार्थी है।