नित्यांनंद त्रयोदशी महोत्सव का आयोजन में भक्तों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया

गुरुग्राम।

गुरुग्राम में निर्माणाधीन मंदिर में नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव पर भक्तों को संबोधित करते हुए वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के अध्यक्ष चंचलापति दास ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु को अपना सर्वोत्तम भक्त स्वीकार किया है। नित्यानंद महाप्रभु सभी जीवों के लिए गुरुतत्व है। वही अनादि मूल अक्षर ब्रह्म है। वह तो हमारे रहने का धाम है। जहां नित्यानंद हैं, वहां हम है।

इस अवसर पर अक्षयपात्र के नेशनल प्रेसिडेंट भरत दास ने कहा कि चंद्रोदय मंदिर का ब्रांच गुड़गांव में है जहां यह उत्सव मनाया गया। नित्यानंद प्रभु चैतन्य महाप्रभु के लिए अभिषेक उत्सव हुआ है।

भरत दास ने बताया कि यहां पर ट्रेडिसनल उत्सव मनाया गया है। यहां सभी तरह के अभिषेक किए गए जिसमें पंचाव्रत अभिषेक नवकलेश अभिषेक, फलों का अभिषेक किया गया। अभिषेक के साथ ही महाआरती, सकिर्तन एवं महाप्रसाद का आयोजन किया गया। जिसमें भक्तों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।

गौरतलब है कि मथुरा के वृंदावन में भक्ति वेदांत स्वामी मार्ग स्थित चंद्रोदय मंदिर में नित्यानंद त्रयोदशी महोत्सव को बडे़ ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस अवसर पर भक्तों ने विभिन्न प्रकार के पुष्पों का चयन कर मंदिर को मनोहर रूप में सुसज्जित किया गया। इसके बाद छप्पन भोग, पालकी उत्सव एवं वैदिक मंत्रोच्चारण कर पंचगव्य, फलों के रस, औषधियों एवं पुष्पों से श्रीश्री निताई गौर का महाभिषेक किया गया। 

गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में माघ मास की त्रयोदशी को श्रील नित्यानंद महाप्रभु (जो श्री बलराम अवतार हैं) के आविर्भाव दिवस के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि श्रील नित्यानंद महाप्रभु द्वापर में प्रभु श्रीराम के अनुज लक्ष्मण, त्रेता युग में श्रीकृष्ण के बडे़ भाई बलराम और कलिकाल में नित्यानंद महाप्रभु के रूप में सन् 1474 में पश्चिम बंगाल के बीरभूमि के छोटे से गांव एकचक्र में मुकुंद पंडित एवं पद्मावती के यहां अवतरित हुए थे।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

हिंदू शास्त्रों के अनुसार माघ मास की त्रयोदशी तिथि को नित्यानंद प्रभु का अविर्भाव यानि जन्म हुआ था और ये खास दिन मनाया जा रहा है। बहुत से लोगों को नित्यानंद प्रभु के बारे में जानकारी नहीं होगी, तो आपको बता दें कि कलयुग में गौरांग महाप्रभु, जिन्हें चैतन्य महाप्रभु के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने अवतार लिया था, जोकि भगवान कृष्ण का ही अवतार माना जाता है और उसी के साथ ही उनके भाई बलराम ने भी उनके साथ अवतार लिया था, जिसका नाम नित्यानंद था। इस बात की पुष्टि बहुत से ग्रंथों में पढ़ने को मिलती है। कलयुग में लोगों तक भगवान कृष्ण के नाम का प्रचार करने के लिए उन्होंने ये अवतार लिया था और उन्होंने ने अपना जीवन भगवान का स्मरण व उनके नाम का प्रचार करने में ही व्यतीत किया था। चलिए आगे जानते हैं उनके बारे में विस्तार से-

एक हरि भक्त जिनका नाम नरोत्तम दास ठाकुर है, उनके संदर्भ में कहते हैं कि, “यदि आप भगवद्धाम में श्री श्री राधा-कृष्ण के संग के लिए व्याकुल हैं, तो सर्वोत्तम युक्ति यह है कि आप श्री नित्यानद प्रभु का आश्रय लें।” वे आगे कहते हैं, “से सम्बन्ध नाही जार, बृथा जन्म गेलो तार :

जो श्री नित्यानंद प्रभु के संपर्क में आने से वंचित रहा है उसने अपना बहुमूल्य जीवन ऐसे ही व्यर्थ गंवा दिया है।”

बृथा जन्म गेलो, बृथा अर्थात शून्य, तथा जन्म अर्थात जीवन। गेलो तार अर्थात व्यर्थ।

नित्यानंद, नाम ही सूचक है, नित्य अर्थात शाश्वत, आनंद अर्थात सुख। भौतिक सुख शाश्वत नहीं होता, यही अंतर है। इसलिए जो बुद्धिमान हैं वे इस भौतिक संसार के क्षणिक सुख में रूचि नहीं लेते। जीवात्मा होने के नाते हम सभी सुख की खोज में हैं, परन्तु जो सुख हम खोज रहे हैं वह क्षणिक है, अस्थायी है, यह सुख नहीं है। वास्तविक सुख है नित्यानंद, शाश्वत सुख। अतएव जो नित्यानंद के संपर्क में नहीं है, उसके लिए ऐसा समझना चाहिए कि उसका जीवन व्यर्थ है ।

से सम्बन्ध नाही जार, बृथा जन्म गेलो तार। सेइ पशु बोड़ो दुराचार ॥

नरोत्तम दास ठाकुर बहुत ही कठोर शब्द का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं ऐसा मनुष्य, एक पशु, अनियंत्रित पशु के समान है। जैसे कुछ पशु होते हैं जो वश में नहीं किये जा सकते, तो जो श्री नित्यानदं प्रभु के संपर्क में नहीं आया है उसे जंगली पशु के समान समझना चाहिए।

“विद्या-कुले की कोरिबे तार –

“उस क्षुद्र व्यक्ति को यह नहीं पता कि उसकी शिक्षा, परिवार, संस्कार तथा राष्ट्रीयता क्या सहायता कर पाएंगे ?” ये सब कोई सहायता नहीं कर पाएंगे ? ये सब अनित्य हैं। यदि आपको शाश्वत सुख चाहिए तो श्री नित्यानंद प्रभु से सम्बन्ध स्थापित कीजिए।

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