महाकाल की नगरी उज्जैन के महादेव के आंगन में सबसे पहले मनती है होली

उज्जैन।

देश के हर क्षेत्र में अलग-अलग परंपराओं के अनुसार होली पर्व को मनाया जाता है। रंगों के उत्सव होली से पहले होलिका दहन करने और पूजन पाठ करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है।

महाकाल बाबा की नगरी उज्जैन के सिंहपुरी में सबसे पहले और सबसे अनूठी होली मनाई जाती है। विश्व भर मे सबसे पहले महाकाल के आंगन में रंग गुलाल उड़ता है। यहीं के सिंहपुरी क्षेत्र में विश्व की सबसे अनूठी वैदिक होली मनाई जाती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। इस बार भी 6 मार्च 2023 को 5000 कंडों से होलिका बनाई जाएगी।

सिंहपुरी में रहने वाले ब्राह्मण जो गुरु मंडली के नाम से प्रसिद्ध है, वह वेद मंत्रों के माध्यम से कंडे (उपले) बनाते हैं। फिर इन्हीं कंडो के जरिए होलिका तैयार की जाती है जिसमें 5000 कंडो (उपले) उपयोग किए जाते है। इस होलिका को पूरी तरह से कंडो (उपलों) से ही तैयार किया जाता है और इस पर रंग गुलाल की सजावट की जाती है।

इसके बाद प्रदोष काल में चारों वेदों के ब्राह्मण मिलकर अलग-अलग मंत्रों से होलिका का पूजन करते हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं यहां पर पूजन अर्चन करने के लिए पहुंचती हैं और फिर चकमक पत्थरों से होलिका दहन किया गया।

भारतीय संस्कृति में मनीषियों ने हजारों साल पहले इस बात को सिद्ध कर दिया था कि पंच तत्वों की शुद्धि के लिए गोबर का विशेष रुप से उपयोग होता है। यही परंपरा यहां तीन हजार साल से स्थापित है। सिंहपुरी की होली का उल्लेश श्रुत परंपरा के साहित्य में तीन हजार साल पुराना है।

पं. यशवंत व्यास और धर्माधिकारी पं. गौरव उपाध्याय ने बताया सिंहपुरी की होली विश्व में सबसे प्राचीन और बड़ी है। राजा भर्तृहरि भी यहां होलिका दहन पर आते थे। पांच हजार कंडों से 50 फीट से भी ऊंची होलिका तैयार की जाती है। होलिका के ऊपर लाल रंग की एक ध्वजा भी भक्त प्रहृलाद के स्वरूप में लगाई जाती है। यह ध्वजा जलती नहीं है और जिस दिशा में यह ध्वजा गिरती है, उसके आधार पर ज्योतिष मौसम, राजनीति और देश के भविष्य की गणना करते हैं।

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