मातृभाषा में शिक्षा की जरूरत पर अमित शाह का जोर

स्थानीय भाषा में शिक्षा प्रदान करने के समर्थक केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की राष्ट्र शिक्षा नीति (एनईपी) में रवींद्रनाथ टैगोर के दर्शन की अमिट छाप है, जो स्थानीय भाषा में शिक्षा प्रदान करने पर जोर देती है।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने हमेशा अपनी मातृभाषा में शिक्षा पर बहुत जोर दिया। एक बच्चे की सोचने और अनुसंधान करने की क्षमता गंभीर रूप से प्रतिबंधित हो जाती है यदि वह अपनी मातृभाषा में बात नहीं कर सकता/सकती है। गृह मंत्री शाह के दिमाग की उपज नई शिक्षा नीति में गुरुदेव के विचारों से प्रेरणा ली गई है और मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया गया है।

रवींद्रनाथ की अमर कृतियों के उत्साही पाठक, शाह गुरुदेव के सच्चे शिष्य हैं और राजनीति सहित विभिन्न पहलुओं पर उनके दर्शन में दृढ़ विश्वास रखते हैं। नई शिक्षा नीति को टैगोर के दर्शन पर आधारित किया गया है ताकि बच्चे की सोचने, शोध करने और उसके आंतरिक स्व का पता लगाने की क्षमता को प्रज्वलित करने में मदद मिल सके।

शिक्षा प्रदान करने के लिए मातृभाषा का उपयोग करने का गुरुदेव का विचार दुनिया भर में अनुकरणीय है। गुरुदेव का मानना था कि विदेशी शिक्षा और विश्वविद्यालयों का महिमामंडन करना हमारी शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य नहीं होना चाहिए। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने शिक्षा के इस नए विचार को रटने वाली शिक्षा के विपरीत प्रस्तुत किया।

शाह ने कहा कि, ‘शांतिनिकेतन में टैगोर ने प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली को आधुनिक शिक्षण तकनीकों के साथ मिलाने का काम किया। टैगोर ने मातृभाषा में शिक्षा को सर्वाधिक प्रोत्साहन दिया। वह जानते थे कि कोई भी अपनी मातृभाषा के उपयोग के बिना अपने भीतर की खोज नहीं कर सकता। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन पहलुओं से बहुत प्रेरित हुए और उन्हें नई शिक्षा नीति में शामिल किया।’

शाह ने कहा कि नोबेल पुरस्कार की राशि से शांतिनिकेतन का गठन उन दिनों कम क्रांतिकारी नहीं था। टैगोर ने दुनिया को भारत की भावना से परिचित कराया। उनके निरंतर प्रयास बाधाओं को तोड़ने, युवा छात्रों को सबक रटने से मुक्त करने और किसी की आत्मा के अंदर ज्ञान का दीपक जलाने के लिए थे।

शाह ने कहा कि ‘अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई शिक्षा प्रणाली और निश्चित रूप से तोता की तरह रटने के तरीके नहीं बल्कि कविगुरु ने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की शुरुआत की जो शांतिनिकेतन के माध्यम से मानव क्षमता के अनंत विकास को सुनिश्चित कर सके। यह एक विरासत है जिसे हम सभी को संजोना चाहिए और दुनिया के सामने गौरवान्वित महसूस करना चाहिए। एक तरह से गुरुदेव ने भारत की आत्मा को पूरी दुनिया से परिचित कराया।’
शाह ने कहा कि वह यह जानकर आश्चर्यचकित हैं कि बंगाल के जमींदार परिवार के पुत्र होने के बावजूद रवींद्रनाथ इस धरती के आम लोगों के विचारों को इतनी स्पष्टता से कैसे व्यक्त कर सकते हैं।

रवींद्रनाथ को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शाह ने कहा कि कविगुरु सच्चे अर्थों में एक वैश्विक व्यक्तित्व थे और उन्होंने न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर विभिन्न विषयों में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
शांतिनिकेतन में किए गए शैक्षिक प्रयोग दुनिया भर के शिक्षाविदों के लिए अनुकरणीय हैं और पूरी दुनिया के लिए शिक्षा की एक नई दृष्टिकोण को प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों को शांतिनिकेतन के प्रयोग को मजबूत करने और विश्व स्तर पर इस पर जोर देने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। शाह ने कहा कि विश्वविद्यालय को विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक सक्रिय माध्यम के रूप में कार्य करना चाहिए।

शाह ने कहा कि गुरुदेव के विचार आज भी हमारे राष्ट्र का मार्गदर्शन करते हैं। राजनीति, सामाजिक जीवन, कला और देशभक्ति के लिए गुरुदेव का स्वतंत्र विचार उस संकीर्ण मानसिकता से अलग है जो वर्तमान राजनीति में देखने को मिलता है। शाह ने कहा कि गुरुदेव के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं। साथ ही, उनके विचार भारत और पूरी दुनिया के लिए बहुमूल्य धन हैं।

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