जाति छोड़ो – भारत जोड़ो

आज जातिवाद का कोई मतलब नहीं, फिर भी हम जातिवाद को सरकारी स्तर पर बनाए रखना क्यों चाहते है?
आज इस व्यवस्था से सभी ऊब चुके है। चाहे वह आरक्षण से पीड़ित है अथवा आरक्षण की आशा में जीवित है।
जातिवादि, सामंतवादी, पूंजीवादी शक्तियों को पराजित करने का रास्‍ता क्‍या है? यह कि हम सभी जातियों के ग़रीब मेहनतकश लोगों को जाति-अन्‍त के आन्‍दोलन के साथ जोड़ दें और उन्‍हें बताएं कि उनके असली शोषक स्‍वयं उनकी जातियों के कुलीन और अमीर हैं, जो कि सारे संसाधनों पर कब्‍ज़ा जमाकर बैठे हैं। समस्‍त मेहनतकशों की वर्ग एकता के बूते ही परिश्रम के बल पर, मेहनतकशों के तौर पर अपने अधिकारों की सुरक्षा की लडाई को भी जीत सकती है। साथ ही जाति-अन्‍त के द्वारा अपनी मुक्ति को प्राप्त कर सकती है। अस्मिताओं के टकराव में हम हमेशा हारेंगे। सभी हारेंगे। इसमें सभी ग़रीब मेहनतकश हार जायेंगे, चाहें वे किसी भी जाति के हों। इसलिए हमारे संघर्ष का आधार अस्मितावाद और पहचान की राजनीति नहीं हो सकती, बल्कि ग़रीबों और मेहनतकशों की एक ऐसा आन्दोलन ही हो सकता है जो कि जाति-अन्‍त के प्रश्‍न को पुरज़ोर तरीके से उठाता हो। वर्तमान में जातिवादी व्यवस्था समाज को कुण्ठित कर रही है। इसी वर्ग-आधारित साझे संघर्ष के ज़रिये ही सभी जातियों के ग़रीब मेहनतकशों के जातिगत पूर्वाग्रहों को भी एक लम्‍बी प्रक्रिया में दोस्‍ताना संघर्ष से जातिवाद समाप्त किया जा सकता है।
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