साहित्यक संस्था बज़्मे फ़रोगे़ के तत्वावधान में दुबई की साहित्यक संस्था बज़्मे उर्दू दुबई द्वारा कराया गये साहित्यक तरही मुका़बला

फिरोजाबाद।

साहित्यक संस्था बज़्मे फ़रोगे़ के तत्वावधान में दुबई की साहित्यक संस्था बज़्मे उर्दू दुबई द्वारा कराऐ गये एक साहित्यक तरही मुका़बले में पहला स्थान पाने वाले फिरोजा़बाद के निवासी हास्य व्यगं के बा कमाल शायर जी़रो बाँदवी के सम्मान में एक मुशायरे का आयोजन पुराने कारखाने के पास स्थित हाजी ऐजाज़ की रिहाइशगाह पर किया गया, जिसमें जी़रो बा़दवी को शाल ,सनद और मोमेन्टो पेश करते हुऐ संस्थाध्यक्ष असलम अदीब ने कहा कि जी़रो साहब ने अद्भुत कारनामा कर शहर व बज़्मे फ़रोग़-ए-अदब का नाम सारी दुनियाँ में रौशन किया है। हमें उनका सम्मान करते हुऐ गर्व का अनुभव हो रहा है।

इस शानदार मुशायरे की अध्यक्षता गा़लिब उर्दू एकेडमी के सद्र मियाँ बिसारुद्दीन ने की दीप प्रज्वलित अकबराबाद से पधारे दाउद इक़बाल ने किया और मुख्य अतिथि हाजी इरफा़न सादा एवं डाकटर ज़फ़र आलम रहे।

मुशायरे में जहाँ शहर के मशहूर शायरों ने भाग लिया वहीं बाहर के शायरों ने भी शिरकत कर शानदार कलाम पेश किया।

जी़रो बा़दवी ने शेर पढ़ते हुए कहा कि
बेटी दुआऐं करती हैं उम्रे दराज़ की,
बेटे ये सोचते हैं कि कब इंतका़ल हो !

बुजु़र्ग शायर अरमान वारसी ने कहा कि-“
मौत के डर से ही आ जाए पसीना रुख़ पर,
इतना कमजो़र भी ईमान न रक्खा जाए

हाजी असलम अदीब का ये शेर खूब पसन्द किया गया –“
“अगर बचना था इन रुसवाइयों से,
तुम्हें ख्वाबों में आना चाहिये था “

कलीम नूरी ने हालात पर चोट करते हुए कहा –
” हैं हवाओं से वही हाथ मिलाने वाले,
जो चरागो़ के तरफ़दार बने बैठे हैं ” !

सालिम शुजा का ये शेर बहुत पसन्द किया गया उनहोंने कहा-“

“ये नेमत बाद में खै़रात करना,
मुहब्बत पहले अपने साथ करना”

हाजी ऐजाज़ ने ये शेर पढा़-
“ज़रूरत जब भी पड़ती है खु़दा से माँग लेता हूँ-
किसी के सामने मैं हाथ फैलाया नहीं करता “

आगरा से पधारे चाँद अकबराबादी ने शेर पढ़ते हुए कहा – “
ख़बर मिली है सितारों से दोस्ती है तेरी,
पडो़सियों से तेरी बोल चाल ठीक है कि नहीं ” ।

शायर अनवर अमान अकबराबादी ने ग़ज़ल का शेर पढा़ कि –
” वो शोखि़याँ अदाऐं वो नख़रे कहाँ गये,
रहने लगे हैं आप बडी़ सादगी के साथ ” ।

वारिस बदायूँनी ने यूँ कहा –
“ये जुबाँ की है लताफ़त या है खुशबू-ए-सुख़न,
हुस्न-ए-गुल के वास्ते लफ़्ज-ए-मुअत्तर सैकडो़ !

हास्य व्यंग के शायर मंज़र नवाब ने पढा़ कि – ” नफ़रत की ये खाई को कहाँ पाट रहे हैं- रिस्वत का घोटालों का नमक चाट रहे हैं “।

शमीम कौसर का ये शेर खूब पसन्द किया गया-
मैं अंधेरों की मुसाफि़र हूँ मुझे क्या मालूम-
तुम को उम्मीद-ए-सहर है तो मेरे साथ चलो ,

हादी जावेद ने हालात का शेर पढ़ते हुए कहा कि-
” वतन, ईमान,घर बाजा़र रिश्ते,
हमैं कि़स्तों में काटा जा रहा है”

अक्बराबाद के दाऊद इक़बाल ने पढा़ -“मुझे चश्मे निगहबानी में रक्खा,
मुसलसल यूँ परीशानी में रक्खा,

सीमाब इक़बाल ने कहा-
” तुम फ़र्ज़ कभी ये तो अदा कर लिया करो ,
किस हाल में हैं हम ये पता कर लिया करो,

आकिफ़ शुजा ने यूँ कहा
” ज़माना हम से आकिफ़ जल रहा है-
हमारा वक़्त अच्छा चल रहा है “

मुशायरे में मुसव्विर सीमाब ने भी बहतरीन कलाम पेश कर वाहवाही लूटी
आखि़र में सद्र मियां बिसारुद्दीन साहब ने हाजी असलम अदीब ,हाजी ऐजाज और बज़्म के तमाम सदस्यों का शुक़्रिया अदा किया।
मुशायरे की कार्यवाही हाजी असलम अदीब ने की एंव संचालन डाक्टर सालिम शुजा अंसारी ने किया।
मुशायरे को कामयाब करने में अफ़जा़ल कामनी ,आमिर बाँदवी ,अतहर फी़रोजा़बादी ,सालिम शुजा का योगदान रहा।

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