इतिहास के पन्नों से
मेवाड़ संस्थाप बप्पा रावल:
सिंध जीतने के बाद मोहम्मद बिन कासिम ने ही चित्तौड़ पर हमला किया.हमला होने के बाद बप्पा रावल ने सौराष्ट्र की सहायता से बिन कासिम को हराया और उसे वापस सिंधु के पश्चिमी तट पर (वर्तमान में बलुचिस्तान) धकेल दिया.
कहा जाता है कि इसके बाद बप्पा रावल ने गजनी (अफगानिस्तान) की ओर कूच किया और वहां के शासक सलीम को हराया. गजनी जीतने के बाद बप्पा ने वहां अपना एक प्रतिनिधि नियुक्त किया और खुद वापस चित्तौड़ लौट आए. वापस आने के बाद मोरी राजपूतों ने बप्पा रावल को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उन्हें चित्तौड़ का राजा बना दिया.
इतिहास कहता है कि बप्पा रावल ने कंधार समेत पश्चिम के कंधार, खुरासान, तुरान, इस्पाहन, ईरानी साम्राज्यों को जीतकर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला लिया था.
*इस प्रकार इतिहास के महान योद्धा बप्पा रावल ने हिंदुस्तान को न केवल अरब लुटेरों से बचाया, बल्कि अरब सीमा तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार भी किया.*
बप्पा रावल के सिक्के :
*गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बापा रावल का माना है। इस सिक्के का तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है, बाई ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। सिक्के के पीछे की तरफ चमर, सूर्य, और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बप्पा रावल की शिवभक्ति और उसके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।
ऐसे अनेकों शूरवीर योद्धाओं से भरा है हमारा इतिहास आवश्यकता है हमारे योद्धाओं के इतिहास को जीवित रखने की इसे और प्रशाशक समिति अग्रसर है ….
यदि लेख में कोई गलती हो तो सभी से क्षमा प्रार्थना।