कौशल विकास निगम घोटाले में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू को गिरफ्तार किया गया है। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120 (बी), 166, 167, 418, 420, 465, 468, 201 और 109 के साथ-साथ 34 और 37 के तहत मामले दर्ज किए गए हैं। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम- 1988 के तहत भी आरोप लगाए गए हैं।
चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी के बाद कई टीडीपी नेताओं को भी नजरबंद कर दिया गया है। चंद्रबाबू नायडू को इस पूरे मामले में आरोपी नंबर एक बताया गया है। उन पर भ्रष्टाचार और इस घोटाले में कैबिनेट को गुमराह करने का आरोप है। कौशल विकास निगम घोटाला में 371 करोड़ रुपये की चौंका देने वाली सरकारी रकम की हेराफेरी शामिल है। नायडू और मामले में शामिल अन्य लोगों के खिलाफ लगाए गए आरोपों में अनुबंधों में हेरफेर करना, सार्वजनिक धन का दुरुपयोग करना और कौशल विकास निगम की आड़ में एक धोखाधड़ी योजना को अंजाम देना शामिल है।
विचाराधीन परियोजना की कुल लागत रु. 3,356 करोड़ है। जिसमें सरकार का योगदान 10 प्रतिशत है, जबकि सीमेंस 90 प्रतिशत फंडिंग के लिए प्रतिबद्ध है। इस घोटाले में एक प्रमुख पक्ष सीमेंस ने आंतरिक जांच की और एक मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत एक बयान दिया। सीमेंस ने इस बात पर जोर दिया कि उनकी कंपनी की सरकार द्वारा जारी संयुक्त उद्यम (JVO) या एमओयू में कोई भागीदारी नहीं थी।
पता चला है कि इस पैसे से जुड़े 70 से अधिक लेनदेन शेल कंपनियों के जरिये हुए। एक व्हिसिलब्लोअर ने पहले इस कौशल विकास घोटाले की सूचना राज्य में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को दी थी। इसके अलावा एक सरकारी व्हिसलब्लोअर ने जून 2018 में इसी तरह की चेतावनी जारी की थी। दुर्भाग्य से, इन दावों की प्रारंभिक जांच को अलग रखा गया था। जब ये जांच शुरू हुई तो परियोजना से संबंधित नोट की फाइलें कथित तौर पर नष्ट कर दी गईं।