सात जन्मों के बंधन में प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रतीक है करवा चौथ – डॉ सुनील उपाध्याय

आगरा।

सात फेरों से बने सात जन्मों के ईश्वरी बंधन में प्रेम, आस्था ,विश्वास और पवित्रता को प्रगाढ़ करने वाला करवा चौथ का व्रत। हिंदू मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ महज एक व्रत नहीं है। यह सात जन्मों के लिए ईश्वरी बंधन में जुड़े पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास की पवित्रता का जश्न है।

कहते हैं जोड़ियां आसमान में बनती हैं, इसलिए इस बंधन की पवित्रता भी देव तुल्य है। ऐसे ही पवित्र भावनाओं को प्रकट करता करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति के अनुसार हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है इस वर्ष यह पवित्र पर्व 1 नवंबर को मनाया जा रहा है।

यह पर्व सुहागन महिलाओं के लिए बहुत खास होता है इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। रात को चांद निकलने पर महिलाएं चांद को और फिर अपने पति को देखती हैं और तब पति अपने हाथों से अपनी पत्नियों को पानी पिलाकर इस व्रत को पूरा करते हैं।

भारत के विभिन्न हिस्सों में यह पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। पंजाब व उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में इस दिन ससुराल से सरगी आती है। इसमें समर्थ के अनुसार कपड़े, गहने, फल व मिष्ठान आदि होते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति का अनुठापन और यहां की रीति रिवाज के मूल्यों में एक अद्भुत आकर्षण है जो हमें एक दूसरे से जोड़ता है यही कारण है की ढेर सारे त्योहारों की अद्भुत परंपरा हमें अपनी जड़ों से अलग नहीं होने देती भले ही हम भारतीय कहीं भी रहे इसका स्पष्ट प्रमाण कभी खुशी कभी गम और बागवा जैसी फिल्मों में भी देखने को मिलता है। बदलते हुए समय कई जगह यह भी देखने को मिलता है कि सात जन्म के बंधन में प्रेम की प्रगाढ़ता बनाए रखने के लिए पति भी अपनी पत्नी के लिए यह व्रत रखते हैं।

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