हरियाणा सरकार को हाईकोर्ट से लगा है एक बडा झटका। हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसदी पद हरियाणा वासियों के लिए आरक्षित करने के कानून को रद्द कर दिया है।
हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान में स्पष्ट है कि जन्म के स्थान या स्थायी पते के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता है। स्थानीय लोगों को आरक्षण देने के लिए कानून निजी कंपनियों पर लागू किया गया है जबकि राज्य सरकार के पास इसका अधिकार नहीं है। यह विषय केंद्र की 81 वीं एंट्री का है और ऐसे में राज्य कानून नहीं बना सकता।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत कंपनियों को हर तीन महीने में कर्मचारियों के बारे में रिपोर्ट भेजने का प्रावधान किया गया है। साथ ही अधिकारी को अधिकार दिया गया है कि वह एक दिन का नोटिस देकर कंपनियों का निरीक्षण कर उस पर जुर्माना लगाए। यह प्रावधान सीधे तौर इंस्पेक्टर राज की याद दिलाते हैं, जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने कहा कि राज्य इस कानून के माध्यम से कंपनियों को वह कार्य करने के लिए कह रहा है जिसके लिए संविधान इजाजत नहीं देता है। इससे कंपनियों के सांविधानिक अधिकारों का हनन होता है।