तेजस्वी की कुर्सी को बचाए रखने के लिए लालू डेढ़ साल तक सारे कड़वे घूंट पीते रहे फिर भी नीतीश ने पलटी मार दी। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार महागठबंधन का नाता तोड़कर फिर से एनडीए के साथ जाने की तैयारी कर ली है। इस तरह लालू यादव की सारी कोशिशें फेल होती दिख रही हैं।
लालू यादव ने अपने मंत्रियों को हटाया, कई मंत्रियों के विभाग बदले और किसी मंत्री के कार्य पर नीतीश ने उंगली उठाई तो उस पर कार्रवाई करने में देर नहीं की। इस तरह से गठबंधन धर्म या फिर तेजस्वी यादव की कुर्सी को बचाए रखने के लिए लालू यादव डेढ़ साल तक जहर का हर घूंट पीते रहे, लेकिन, जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार आखिरकार पलटी मारने की तैयारी कर ली।
नीतीश कुमार 2013 में बीजेपी से अलग हुए तो लालू यादव ही सियासी सहारा बने। इसके पीछे लालू का सियासी मकसद था, वो अपने बेटे तेजस्वी यादव को स्थापित करना चाहते थे। 2015 में लालू यादव की सियासी ख्वाहिश काफी हद तक पूरी हुई, जब उन्होंने अपने बेटे तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनाने में सफल रहे। आरजेडी का सियासी उभार फिर शुरू हुआ, लेकिन 2017 में नीतीश के एनडीए में जाने और लालू यादव के जेल जाने के चलते आरजेडी की सियासत मझधार में फंस गई। इसके बाद 2022 में फिर से बिहार की सियासत ने करवट ली। आरजेडी और जेडीयू ने मिलकर सरकार बनाई, कांग्रेस सत्ता में हिस्सेदार बनी, लेकिन लेफ्ट ने बाहर से समर्थन दिया।
लालू यादव ने गठबंधन की सियासी मजबूरी या फिर बेटे तेजस्वी यादव की सियासत के लिए जरूरी समझकर जहर का हर घूंट डेढ़ साल तक पीते रहे, लेकिन नीतीश कुमार ने सियासी पाला बदलने में जरा भी गुरेज नहीं किया। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फिर से एनडीए खेमे में जाने की तैयारी कर ली है, जिसके लिए 28 जनवरी का दिन भी तय हो गया है। नीतीश मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर बीजेपी के समर्थन से 28 जनवरी को सीएम पद की शपथ ले सकते हैं।