देश की किसी भी अदालत में मुकदमा करने वाले का यानी लिटिगेंट की जाति या फिर धर्म का जिक्र न हो। सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश समूचे देश की अदालतों के कामकाज को प्रभावित करने वाला है। कोर्ट ने ये जनरल ऑर्डर किसी खास मामले के लिए नही बल्कि पूरे देश की अदालतों के सामने पेश होने वाले सभी मामलों के मद्देनजर जारी किया है।
सर्वोच्च अदालत ने अपने ऑर्डर में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री समेत, देश की सभी हाईकोर्ट और दूसरे सब-ऑर्डिनेट कोर्ट में जो भी मुकदमे आगे से आएं, उनके कागजात में ये सुनिश्चित किया जाए कि मुकदमा करने वाले का यानी लिटिगेंट की जाति या फिर धर्म का जिक्र न हो।
ये जनरल ऑर्डर दो जजों की पीठ ने जारी किया. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि इस तरह की जो भी प्रथा है, उसको तुरंत बंद किया जाना चाहिए। कोर्ट का मानना था कि मुकदमा दायर करने वाले की जाति और धर्म का केस के कागजात में जिक्र करने का कोई औचित्य नहीं बनता।
ऐसे ही एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ही के जज अभय एस. ओका और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले में मुकदमा दायर करने वाले की जाति का जिक्र होने पर असहमति जताई थी। तब जस्टिस ओका और जस्टिस मिथल की पीठ ने ये कहा था कि जब कोई अदालत किसी मामले में फैसला करती है तो उसकी जाति या धर्म का उस मामले से कोई लेना-देना नहीं होता। कोर्ट का मानना था कि ऐसे में फैसले के टाइटल पर भी इस तरह की चीजों को नहीं लिखा जाना चाहिए।