बेहद जटिलप्रतियोगी परीक्षा नीट के बाद पेरेंट्स या हॉस्टल वार्डन हो सकते है एकाकीपन बच्चो की लाइफलाइन
-पेरेंट्स /हॉस्टल वार्डन को आगामी कुछ माह तक रहना होगा सचेत
रखनी होगी बच्चो के हाव भाव स्ट्रेस पर नजर
रिपीटर्स और फर्स्ट अटेम्प्ट स्टूडेंट्स और वित्तीय कमजोर परिवारों के बच्चो पर देना होगा खास ध्यान
जैसा की विदित है की देश की सबसे जटिलतम एवं बड़ी परीक्षा मेडिकल नीट यूजी 2024 की आगामी 5 मई को सम्पन्न हुई है . .नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के अनुसार परीक्षा में 26 लाख से ज्यादा प्रतियोगी छात्र शामिल हुए .लाखो बच्चो की कई वर्षो की मेहनत इस एग्जाम में तिकी हुई है . वन नेशन वन एग्जाम थीम पर हो रही इस सबसे जटिल परिक्षानुरूप भारी तादाद में स्टूडेंट की भरमार ने इस परीक्षा को और चर्चित बना दिया है ,क्योकि वर्तमान में कई हजारो लाखो स्टूडेंट आठवीं क्लास की स्कूलिंग के बाद से ही इस परीक्षा हेतु स्वयं को टारगेट कर बेसिक्स मजबूत कर मजबूत टारगेट नीट परीक्षा हेतु वर्षो से तैयारी में संलग्न रहने लगे है ,इससे एक और ऐसे स्टूडेंट के सही स्कोर प्राप्त करने की संभावना बाद जाती है तो वही दूसरी और ऐसे स्टूडेंट्स के लगातार स्ट्रिक्ट शेडूल के साथ स्टडी करने से उसके तनाव का कारन के साथ पहले एटेम्पट में एग्जाम स्कोर करने की महत्वकांशा ज्यादा बढ़ती जाती है ,और अति महत्वकांशा से ही पूरी न होने या पेपर स्कोर की संभावना की शंका होने पर या एग्जाम बिगड़ जाने पर तनाव की संभावना बढ़ जाती है ,इस कंडीशन से बचने हेतु , सुसाइड प्रिवेंशन में लगातार सक्रिय कोटा शिक्षा नगरी के ग्लोबल लाइफ कोच युवा मैनेजमेंट डेवलपमेंट प्रेक्टिशनर डॉ नयन प्रकाश गाँधी मानते है की पेरेंट्स ,हॉस्टल वार्डन इसमें मुख्य भूमिका निभा सकते है .ऐसी कंडीशन में पेरेंट्स को एक्जाम के होने के बाद कुछ माह तक अपने बच्चो को व्यक्तिगत अटेंशन के साथ मेन्टल स्ट्रेस होने न पाए उसके लिए नियमित पॉजिटिव टाक करने एवं बच्चो के वीक सब्जेक्ट्स टॉपिक्स पर सेपरेट इंडिविजुअल टीचर से जोड़ने या पूर्व में पंजीकृत कोचिंग सेंटर में जाकर बच्चे के कमजोर सब्जेक्ट से सम्बन्धित उपयुक्त सब्जेक्ट एक्सपर्ट से काउंसलिंग कर बच्चो में आगामी प्रेपरेशन हेतु मजबूत हौसला देने की जरूरत है .एक आंकड़ों के अनुसार फर्स्ट अटेम्प्ट नए स्टूडेंट्स जिनके कांसेप्ट क्लियर जल्दी नहीं होते पेपर लगातार वर्ष भर या दो साल स्टडी के बावजूद पेपर बिगड़ जाता है ,या दूसरी और यु कहे रिपीटर्स स्टूडेंट्स जो लगातार कई वर्षो से तैयारी कर रहे है और कुछ मार्क्स इनक्रीस करने हेतु रिपीट पर रिपीट एक्जाम लगातार सेल्फ प्रेपरेशन या टेस्ट सीरीज से देते है ऐसे स्टूडेंट्स भी एक्जाम में बाद थोड़े से भी कुछ प्रश्न आशानुरूप सही नहीं जाने पर लगातार अंदर ही अंदर तनाव में आने लगते है ,और मानसिक शिकार हो जाते है क्योकि ऐसे बच्चो से माता पिता को ज्यादा हॉप होती है ,और जब वह पूरी नहीं होते दिखाई देती है तो अभी तक पूरा सक्सेज पॉजिटिव मोटिवेशन नकारात्मक आसान सेल्फ सु साइड में बदल जाता है .गाँधी मानते हैं की ऐसे बच्चो को हॉस्टल वार्डन को बच्चे के मनोभाव से भापकर पेरेंट्स को तुरत सूचित कर देना चाहिए .वैसे पेरेंट्स को लगातार बच्चोंके पास ही रहना आवश्यक है .तीसरा पहलु वित्तीय पारिवारिक कमजोर स्थति वाले बच्चे अधिकतर तनाव में देखे गए है क्योकि पेरेंट्स की बच्चे की महत्वकांशा ऐसे बच्चो पर ज्यादा देखि गयी है .इसलिए इस स्थिति में भी पेरेंट्स को साथ में रहना अति आवश्यक है .