35 जिला अस्पताल व मेडिकल कॉलेजों में केएमसी कॉर्नर सक्रिय

 

* यहाँ विशेषज्ञ चिकित्सक और प्रशिक्षित नर्स देती हैं प्रशिक्षण
* माँ के साथ परिवार के अन्य सदस्य भी दे सकते हैं केएमसी
* कमजोर नवजात के लिए जीवनरक्षक बना कंगारू मदर केयर

पटना-
राज्य के 35 जिलों के सदर अस्पताल तथा पीएमसीएच, एनएमसीएच, गुरु गोविन्द सिंह अस्पताल सहित दरभंगा, पूर्णिया और पश्चिमी चंपारण के मेडिकल कॉलेजों में कंगारू मदर केयर (केएमसी) कॉर्नर सक्रिय हैं. यहाँ विशेषज्ञ चिकित्सक और प्रशिक्षित नर्स अल्प वजनी नवजातों की माँ और उनके परिजनों को विधिवत प्रशिक्षण देते हैं तथा जच्चा-बच्चा की निगरानी करते हैं. केएमसी कमजोर और अल्प वजनी नवजातों के लिए संजीवनी माना जाता है. इस उपचार पद्धति से नवजात के शरीर में जरूरी ऊष्मा की प्राप्ति होती है और उसे हाइपोथर्मिया जैसे रोग से उबरने में सहायता मिलती है. इसलिए केएमसी कॉर्नर में प्रशिक्षण के दौरान नवजात की माता के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों को भी केएमसी देने के लिए प्रेरित किया जाता है.

केएमसी से नवजात सीखता है स्तनपान : डॉ. निगम प्रकाश नारायण
पीएमसीएच के शिशु रोग विभाग के सेवानिवृत विभागाध्यक्ष डॉ. निगम प्रकाश नारायण ने बताया कि शारीरिक ऊष्मा अथवा नवजात को गर्म रखना किसी भी अल्प वजनी नवजात के लिए सबसे जरूरी है. प्रीमेच्योर एवं अल्प वजनी नवजात के लिए कंगारू मदर केयर (केएमसी) किसी संजीवनी की तरह काम करता है. इससे नवजात जल्दी ही स्वाभाविक रूप से स्तनपान शुरू करता है और उसकी माता को भी सहूलियत होती है. डॉ. नारायण ने बताया कि माता, पिता के अलावा घर का कोई भी सदस्य नवजात को केएमसी दे सकता है.

अस्पतालों के एसएनसीयू में हैं केएमसी कॉर्नर
दरअसल केएमसी कॉर्नर में कमजोर, कुपोषित एवं अल्प वजनी नवजात को कंगारू मदर केयर देकर उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ करने का प्रयास किया जाता है. इसीलिये ये कॉर्नर विशेष रूप से अस्पतालों में स्थित स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में ही बनाये गए हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि इस विधि से नवजात के शरीर में जरूरी ऊष्मा की प्राप्ति होती है और शारीरिक संपर्क से नवजात को हाइपोथर्मिया रोग से उबरने में सहायता मिलती है. इस उपचार विधि में कोई खर्च नहीं आता है.

केएमसी के प्रत्यक्ष लाभ:
• केएमसी से माँ का कन्हर (प्लेसेंटा) जल्दी बाहर आता है
• बच्चे को सीने से लगाने से माँ का दूध जल्दी उतरता है
• नवजात शिशु स्वयं को ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है
• उसका वजन बढ़ता है व शारीरिक विकास बेहतर होता है
• माँ-बच्चे के बीच मानसिक व भावनात्मक जुड़ाव बढ़ता है

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