भारत की अराकू कॉफी की डिमांड दुनियाभर में है। इसकी पैदावार का करीब 90% निर्यात हो जाता है। इसकी सबसे ज्यादा मांग स्वीडन में है। वहीं संयुक्त अरब अमीरात, इटली, स्विट्जरलैंड और अन्य देशों में भी इसकी डिमांड बढ़ रही है. इतना ही नहीं पेरिस को भी अब इसका स्वाद चढ़ रहा है। करीब 4 अरब रुपए की अराकू कॉफी का एक्सपोर्ट भारत हर साल कर रहा है।
अराकू कॉफी को सिर्फ उसका स्वाद ही नहीं, बल्कि इसके व्यापार का तरीका भी इसे खास बनाता है। इस कॉफी को छोटे-छोटे प्लॉट्स पर उगाया जाता है। इस पर लगने वाली कॉफी चेरी को अपना पूरा रंग पकने तक पौधे पर ही रहने दिया जाता है। इसकी खेती का यही तरीका इसे 100% अरेबिका कॉफी बनाता है।
एक और खास बात ये है कि इसकी पैदावार से लेकर इसके व्यापार तक का काम खुद आदिवासी ही करते हैं। ये एक तरह का को-ऑपरेटिव बिजनेस मॉडल है। इस वजह से कॉफी की छंटाई, पकाई, बिनाई और भुनाई से लेकर इनकी पैकेजिंग और मार्केटिंग तक, किसी में भी मिडिलमैन का दखल नहीं है।
अराकू कॉफी की की जाए, तो इसकी पैदावार आंध्र प्रदेश में नीलगिरी के पहाड़ी इलाकों में होती है। इसे काली मिर्च की खेती के बीच प्लांटेशन के तौर पर उगाया जाता है। शायद यही वजह है कि इसका स्वाद काफी अनोखा है।